Question 1 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br> <br> यह शाश्वत सत्य है कि भाषा, मनुष्य के भावों व विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त साधन है। यह भी देखने में आया है कि संसार में जितने भी राष्ट्र हैं, प्राय: उनकी राजभाषा वही है जो वहां की संपर्क भाषा है तथा वही राष्ट्रभाषा है जो वहां की राजभाषा है। भारत विविधताओं से भरा देश है जहां अनेकता में एकता झलकती है, उदाहरण के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के प्रत्येक राज्य में सुसंस्कारित एवं समृद्ध राज्य-भाषाएं एवं अनेक उपभाषाएँ बोली जाती हैं, अत: यह कहना समीचीन होगा कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। इस परिदृश्य में किसी एक भाषा को महत्व देना कठिन हो जाता है, लेकिन आजादी के बाद सभी भारतीय भाषाओं मे जो भाषा मनोरंजन, साहित्यिक एवं संपर्क भाषा के रुप में उभरी है वह हिंदी ही है। <br> आज हिन्दी को जिस रूप में हम देखते हैं उसकी बाहरी आकृति भले ही कुछ शताब्दियों पुरानी हो, किन्तु उसकी जड़ें संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश रूपी गहरे धरातल में फैली हैं। व्याकरण की अत्यधिक <b>जटिलता</b> और नियमबद्धता के कारण इन अपभ्रंश भाषाओं से पुनः स्थानीय बोलचाल की भाषाओं का जन्म हुआ जिन्हें हम आज की आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप में जानते हैं। <br> हिन्दी भाषा के विकास की प्रक्रिया आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास के साथ ही प्रारंभ होती है। आजादी से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी या हिन्दुस्तानी ही सामान्य बोलचाल की एकमात्र ऐसी भाषा थी जो किसी न किसी रूप में देश के ज्यादातर भागों में समझी और बोली जाती थी। अत: एक राष्ट्र और एक राष्ट्रभाषा की भावना यहां जागृत हो उठी और हिन्दी सबसे आगे निकलकर राष्ट्र भाषा, संपर्क भाषा और मानक भाषा बनती चली गई। इस अभियान में गांधी जी की भूमिका अहम रही जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में राजनीतिक और सामाजिक मान्यता व संरक्षण प्रदान किया तथा इसका परिणाम यह रहा कि उत्तरी भारत में हिंदी साहित्य सम्मेलन और दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा जैसी हिन्दी सेवा संस्थाओं का जन्म हुआ, जिसके माध्यम से हजारों अहिंदी भाषी भारतीयों ने स्वैछ्चिक तौर पर हिन्दी को सीखना और अपनाना शुरू किया। <br> राजनीतिशास्त्र के कई विद्वानों ने इस बात को दोहराया है कि जब कोई देश किसी दूसरे देश को पराजित कर अपना गुलाम बना लेता है, तो वह पराजित देश की सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि को नष्ट करने का भरसक प्रयास करता है, पराधीन देश पर आक्रांताओं द्वारा अपनी भाषा को राजकाज की भाषा के रुप में जबरदस्ती थोपा जाता है ताकि पराधीन देश की आने वाली पीढ़ी यह भूल जाए कि वे कौन थे, उनकी संस्कृति एवं राजभाषा क्या थी। हिन्दी को राजभाषा का स्थान केवल इसलिए नहीं दिया गया कि वह देश की एकमात्र संपर्क भाषा है, बल्कि अंग्रेजी शासन को जड़ों से उखाड़ने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि क्रांतिकारियों के बीच में कोई एक भाषा हो जिसमें वह अपनी बात एक दूसरे को समझा सके। यह वह दौर था जब देश अंग्रेजो के शासन से त्रस्त था, लोग आज़ादी के लिए तरस रहे थे। अंग्रेजी विदेशी भाषा थी, जो विदेशी शासन का अनिवार्य अंग थी, अंग्रेजी शासन का विरोध करने के साथ-साथ अंग्रेजी का विरोध करना या उससे संबंधित वस्तुओं का विरोध भी आवश्यक हो गया था। <br> अतः स्वाधीनता संग्राम के वक्त राष्ट्रीय नेताओं ने स्वदेशीपन या राष्ट्रीय भावना को जागृत करने का प्रयत्न किया। देशवासियों के बीच एकता का संचार करने वाली भाषा के रुप में हिन्दी उभर कर सामने आई। देश को आजादी मिलने के बाद यह सामने आया कि देश में संचार की भाषा कोई हो सकती है तो वह हिन्दी ही है। संपर्क या व्यवहार की भाषा के रूप में हिन्दी की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया जाने लगा। <br> <br>निम्न में से कौनसा विकल्प गद्यांश में प्रयुक्त “ <b>सामान्य</b>” शब्द का विलोम शब्द है?
Question 2 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्दों को मोटे अक्षरों में मुद्रित किया गया है, जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। गद्यांश के अनुसार, दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।</b> <br> <br> आजकल अवसाद की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। 17 प्रतिशत से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं, जिनमें युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। अगर आपका मन किसी काम में नहीं लग रहा, आप लोगों से कटे-कटे से रहने लगे हैं, थकान, आलस और उदासी ने आपको घेर रखा है तो हो सकता है कि आप डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार हो गए हों। महानगरों में यह समस्या काफी तेजी से बढ़ रही है। आमतौर पर यह बीमारी 13 सें 35 वर्ष की उम्र में अधिक देखने को मिल रही है। हमारे देश में ही नहीं, विश्वभर में अवसादग्रस्त लोगों की बढ़ती संख्या के कारण ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अवसाद यानी डिप्रेशन को डिप्रेशन ऑफ ग्लोबल क्राइसिस की संज्ञा दी है। जब मस्तिष्क को पूरा आराम नहीं मिल पाता और उस पर हमेशा एक दबाव बना रहता है तो समझिए कि तनाव ने आपको अपनी चपेट में ले लिया है। तनाव को 20वीं सदी के सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। डॉक्टरी भाषा में तनाव यानी शरीर के होमियोस्टैसिस में गड़बड़ी। यह वह अवस्था है, जो किसी व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली को गड़बड़ा देती है। तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन का स्तर बढ़ता जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं। लगातार तनाव की स्थिति अवसाद में बदल जाती है। अवसाद एक गंभीर स्थिति है। हालांकि यह कोई रोग नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि आपका शरीर और जीवन असंतुलित हो गया है। यह याद रखना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब आप अवसाद को एक बीमारी के रूप में देखना प्रारंभ करते हैं, तब आप सोचते हैं कि आपको दवा लेने की आवश्यकता है। किसी बीमारी या भावनात्मक आघात के कारण दो सप्ताह तक अवसाद में रहना सामान्य बात है। इन समस्याओं से उबरने के बाद अवसाद के लक्षण अपने आप ही कम होने लगते हैं और व्यक्ति सहज अनुभव करने लगता है। अगर दो सप्ताह के बाद भी लक्षण बढते रहें तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है। दुख, उत्तेजना, क्रोध, मूड स्विंग, असहाय अनुभव करना, नकारात्मक सोच, अकेलापन महसूस करना अवसाद के भावनात्मक लक्षण हो सकते हैं। अत्यधिक थकान, ऊर्जा की कमी, अत्यधिक सोना या कम सो पाना, भूख अधिक या कम लगना, अपच, अनियमित मासिक चक्र, दर्द आदि अवसाद के शारीरिक लक्षण हैं। <br> <br> अवसाद के कारण- इंडियन साइकाइट्रिक सोसायटी के अनुसार अवसाद के दो कारण हो सकते हैं, जैविक और अजैविक। यदि अवसाद की वजह जैविक है तो उसका उपचार दवा के द्वारा करने की जरूरत होती है, पर अजैविक कारणों से हुए अवसाद को काउंसलिंग, योग और ध्यान के जरिए दूर किया जाता है। अवसाद के कुछ अन्य कारण- भावनात्मक समस्याएं, हार्मोन परिवर्तन, विशेषकर गर्भावस्था और मेनोपॉज के बाद आनुवंशिक कारण, मोटापा, जीवन से मिले नकारात्मक अनुभव, कठिनाइयों और अभावों में बिता बचपन, ट्रॉमा या गंभीर नुकसान, विशेष रूप से जीवन के शुरुआती दिनों में, दवाइयों के दुष्प्रभाव, अल्कोहल या ड्रग्स का सेवन, अवसाद के उपचार के लिए दवा जितनी कारगर होती है, उससे अधिक कारगर मनोवैज्ञानिक उपचार होते हैं, लेकिन दोनों का ही अपना-अपना महत्व है। गहरे अवसाद से पीडित लोगों में आत्महत्या की भावना आने लगती है। उन्हें लगता है कि यही एक रास्ता है, जिससे उन्हें उनकी सारी समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। भारत में प्रतिदिन करीब 95-100 लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें 40 प्रतिशत युवा होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के अनुसार युवा लोगों में आत्महत्या मृत्यु की सबसे बड़ी वजह है और आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह है डिप्रेशन अर्थात अवसाद। <br> <br> अवसाद से बचने के लिए संतुलित भोजन खाएं अर्थात ताजे फल, सब्जियों, साबुत अनाज व स्वस्थ वसा मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी हैं। दिन में तीन बार अधिक भोजन खाने की बजाए 5 या 6 बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा खाएं। इससे रक्त में शर्करा का स्तर कम नहीं होता। मस्तिष्क का उपयोग करें अर्थात - मानसिक व्यायाम मस्तिष्क की नई कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर उनका पैनापन बढ़ाता है। नई चीजें सीखें। सुडोकू, क्रॉस वर्ड अच्छे व्यायाम हैं। नियमित रूप से व्यायाम करें अर्थात मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए प्रतिदिन कम-से-कम 30 मिनट का व्यायाम जरूर करें। आप जितने अधिक फिट होंगे, शरीर में फील गुड हार्मोन एंडोरफिन का स्तर उतना अधिक बेहतर रहेगा। तनाव न लें, लगातार तनाव की स्थिति मस्तिष्क की कोशिकाओं और हिप्पो कैम्पस को नष्ट कर देगी। हिप्पो कैम्पस मस्तिष्क का वह क्षेत्र है, जो नई यादों को बनाने और पुरानी यादों को संजोए रखने का काम करता है। ध्यान करें -वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि अवसाद, उत्तेजना, अनिद्रा की समस्या में राहत दिलाने में ध्यान बहुत उपयोगी है। खूब आराम करें। <br> <br>उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, लगातार तनाव की स्थिति किस अवस्था में परिवर्तित हो जाती है?
Question 3 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br> <br> भारत सदा से ही संतों, महापुरुषों एवं वीरों की जन्मस्थली रहा है। कहा गया है कि जब-जब संसार में अधर्म की वृद्धि एवं धर्म की हानि होती है तो समाज का उद्धार करने के लिए किसी महापुरुष का जन्म होता है। गौतम बुद्ध का नाम भी ऐसे ही महापुरुष के रूप मैं विख्यात है। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक बार महारानी महामाया ने स्वप्न देखा कि वे हिमालय के शिखर पर हैं और देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत अपनी सुंड् में शतदल कमल लिए उनकी परिक्रमा कर रहा है। राजा को रानी के इस स्वप्न का जब पता चला तो राज- ज्योतिषियों को बुलाया गया। उन्होंने बताया कि यह स्वप्न मंगलसूचक है। महारानी की इच्छा देखकर राजा शुद्धोधन ने उन्हें उनके पिता के पास भेजने की व्यवस्था कर दी। महारानी महामाया नेपाल की थीं। मार्ग में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी वन में गर्भवती महामाया एक बालक को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। इस बालक को महामाया की छोटी बहन गौतमी ने पाला। बालक के जन्म ने पिता के मनोरथ को पूरा किया, इसलिए इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। बालक सिद्धार्थ की जन्म कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक महापुरुषों के गुण लेकर जन्मा है। निश्चय ही यह महायोगी सन्यासी और महान साधक के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा। यदि किसी प्रभाव से इसका मन परिवार मैं रम गया तो यह महाप्रतापी राजा बनेगा और अपना नाम उज्जवल करेगा। महाराजा शुद्धोधन ने यह सुना तौ वे चिंताग्रस्त हो उठे। पुत्र की परवरिश राजसी ठाठ के साथ विशेष सावधानी के साथ होने लगी। लेकिन जो योग लैकर पुत्र उत्पन्न हुआ उसका प्रभाव बचपन से ही उसकी प्रवृत्तियों पर स्पष्ट झलकने लगा। बालक सिद्धार्थ बचपन से ही गंभीर प्रकृति के थे। उनका मन राजसी वैभव में नहीं अपितु उद्यान में एकांत चिंतन में लगता था। पिता ने यह देखा तौ राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की राजकुमारी से कर दिया। राजकुमार सिद्धार्थ कुछ दिन तो इस नए पन को देखते-समझते रहे। इसी बीच इनके यहां राहुल नाम के पुत्र ने जन्म लिया। लेकिन विधि को तो कुछ ओर ही स्वीकार था। पत्नी तथा परिवार भी उन्हें मोह-बंधन में न बांध सके। ‘ एक दिन भ्रमण करते हुए राजकुमार सिद्धार्थ को एक रोगी मिला, एक दिन एक बूढा और एक बार उन्हें एक शवयात्रा देखने को मिली। पूछने पर पता चला कि कोई मर गया है। इस तरह इन्हें रोग की भीषणता, वृद्धावस्था की लाचारी और मृत्यु की अनिवार्ययता ने इतना व्यथित किया कि इनका मन संसार से <b>विरक्त</b> हो गया। ये आत्मचिंतन में लीन हो गए। एक दिन रात्रि के तीसरे पहर में पत्नी तथा पुत्र को छोड़ गृह त्याग कर साधना मार्ग पर बढ़ गए। प्रात: काल यशोधरा ने शैथ्या पर जब इन्हें नहीं देखा तो वह सब कुछ समझ गई। पति के इस प्रकार से जाना यशोधरा को गहरा दु :ख हुआ। यशोधरा की इसी पीड़ा को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यशोधरा काव्य ने बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णित किया है। अनेक स्थानों की यात्रा करते, ज्ञान-पिपासा में राजकुमार सिद्धार्थ ‘ गया ‘ पहुंचे। वहां एक वट वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए। वहीं इन्हें ज्ञान हुआ कि सादा जीवन ही उत्तम है। दु :ख का मूल कारण तृष्णा है। सत्य ही तप है। व्यक्ति को आत्म-परिष्कार से ही शांति मिलेगी। इस जीवन मैं कोई छोटा-बड़ा नहीं है। प्रत्येक को भक्ति का पूजा-अर्चना का पूर्ण अधिकार है। इन सबका बोध होने पर वे ‘ बुद्ध ‘ के नाम से विख्यात हुए। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान मिला उसे बोद्धिवृक्ष कहा जाता है। ‘गया’ मैं बुद्ध सारनाथ गए। यहां से उन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया। उनके द्वारा चलाया गया धर्म ही बौद्ध धर्म कहलाया। जातिबंधन तोड़ने के कारण सभी वर्गों विशेषकर छोटे वर्ग के लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। भारत में सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के उपदेश को चीन, मध्य एशियाई तथा पूर्व एशियाई देशों में फैलाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। आज भले ही समाज में सनातन धर्म, आर्य समाज का प्रबल प्रभाव हो किंतु मानव धर्म की दृष्टि से बौद्ध धर्म का अपना महत्त्व है। गौतम बुद्ध को उनके इस जीवन मंत्र के आधार पर ही भगवान बुद्ध कहा जाता है। <br> <br>गद्यांश के अनुसार, दुःख का मूल कारण क्या है?
Question 4 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br> इस समय जनसत्ता संसार के प्रत्येक देश के दरवाजे पर दस्तक दे रही है और आज वह अपने मजबूत हाथों में भारतवर्ष के दरवाजे की जंजीर भी खटखटाती हुई उस अत्यंत प्राचीन भूमि के निवासियों से प्रश्न करती है कि बतलाओ, तुम नवयुग का स्वागत किस प्रकार करना चाहते हो? इस देश के युवकों से और उन सभी प्रकार के लोगों से जो कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण हो चुके हैं, उसका संसार के अत्याचारों और अनाचारों की ओर अंगुली उठाते हुए स्पष्ट प्रश्न है कि क्या उस समय, जबकि संसार में न्याय और अन्याय का ऐसा घमासान युद्ध छिड़ा हुआ है, तुम निष्क्रिय और चुपचाप हाथ पर हाथ रखे हुए बैठे रहना ही उचित समझते है? क्या उस समय जबकि राष्टों के होनहार नैनिहाल केवल 'निकृष्ट' श्रेणियों में जन्म लेने के कारण जबर्दस्तों की स्वार्थ वेदी पर बेदर्दी से बलिदान किये जा रहे हैं, जब केवल जाति या रंग के कारण मनुष्य, मनुष्य की गर्दन काट रहा है, तुम चुपचाप बैठे हुए इस विभीषिका को देखते रहना अपना धर्म समझते हो? क्या उस समय जब व्यक्तियों के स्वेच्छाचारों के अंत की घोषणा संसार भर में गूँज उठी है और स्वेच्छाचार अपनी धाक की समाप्ति के पश्चात् अब अपने जाने की गंभीरतापूर्वक तैयारी कर रहा है, तब उन घटनाओं को चुपचाप देखना ही तुम्हारा कर्तव्य है? <br>गद्यांश के अनुसार, किस युग के स्वागत करने की बात कही गयी है?
Question 5 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br>निम्न में से कौनसा विकल्प हिंदी भाषा शिक्षण के उपचारात्मक शिक्षण में शामिल नहीं किया जा सकता?
Question 6 :
निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए- <br>निम्न में से शिक्षण के प्रकार हैं-
Question 7 :
<b> नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br> हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हड़प्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था। सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रति वर्ष लायी गयी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी कृषि हेतु महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। इन उपजाऊ मैदानों में मुख्य रूप से गेहूँ और जौ की खेती की जाती थीं, सिंधु घाटी की यही फ़सल भी थी। अभी तक 9 फ़सलें पहचानी गयी हैं। चावल केवल गुजरात, लोथल में और संभवतः राजस्थान में भी, जौ की दो किस्में , गेहूँ की तीन किस्में, कपास खजूर, तरबूज मटर और एक ऐसी किस्म जिसे ‘ब्रासिक जुंसी‘ की संज्ञा दी गयी है। इसके अतिरिक्त मटर, सरसों, तिल एवं कपास की भी खेती होती थी। लोथल में हुई खुदाई में धान तथा बाजरे की खेती के अवशेष मिले है। बणावली में मिट्टी का बना हुआ एक खिलौना मिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा के लोग लकड़ी के हल का प्रयोग करते थे। सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने सर्वप्रथम कपास उगाना प्रारम्भ किया। लोथल से आटा पीसने की पत्थर की चक्की के दो पाट मिले हैं। पेड़-पौधों में पीपल, खजूर, नीम, नीबू एवं केले के साक्ष्य मिले हैं। मुख्य पालतू पशुओं में डीलदार एवं बिना डील वाले बैल, भैंस, गाय, भेड़-बकरी, कुत्ते, गधे, खच्चर और सुअर आदि है। हाथी और घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके हैं। लोथल एवं रंगपुर से घोड़ी की मृण्मूर्तियों के अवशेष मिले हैं। सूरकोटदा से सैन्धव कालीन घोड़े की अस्थिपंजर के अवशेष मिले हैं। कुछ पशु-पक्षियों, जैसे बन्दर, खरगोश, हिरन, मुर्गा, मोर, तोता, उल्लू के अवशेष खिलौनों और मूर्तियों के रूप में मिले हैं। उस समय तांबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था। तांबा राजस्थान के खेतड़ी से, टिन अफ़गानिस्तान से मंगाया जाता था। इस सभ्यता के लोगों द्वारा नाव बनाने के भी साक्ष्य मिले हैं। इस समय बनने वाले सोने, चांदी के आभूषणों के लिए सोना, चांदी सम्भवतः अफ़गानिस्तान से एवं रत्न दक्षिण भारत से मंगाया जाता था। बालाकोट तथा लोथल में सीप उद्योग अपने विकसित अवस्था में था। हड़प्पाई लोग सिंधु सभ्यता के क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु शल्क आदि का व्यापार करते थे, लेकिन वे जो वस्तुएं बनाते थे उसके लिए अपेक्षित कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं था। अतः उन्हें बाह्य देशों से व्यापारिक सम्पर्क स्थापित करना पड़ता था। तैयार माल की खपत की आवश्यकता ने व्यापारिक संबंधो को प्रगाढ़ बनाया। व्यापार में धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे वरन वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही उनके व्यापार आधारित थे। व्यापारिक वस्तुओ की गांठों पर शिल्पियों एवं व्यापारियों द्वारा अपनी मुहर की छाप थी तथा दूसरी ओर भेजे जाने वाले का निशान अंकित था। बाट-माप एवं नाप तोल का व्यापारिक कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। तौल की इकाई संभवतः 16 अनुपात में थी। मोहनजोदाड़ों से सीप का तथा लोथल से हांथी दांत का निर्मित एक-एक पैमाना मिला है। सैधव सभ्यता के लोग यातायात के रूप में दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी अथवा भैसागाड़ी का उपयोग करते थे। उनकी बैलगाड़ी में प्रयुक्त पहिये ठोस आकार के होते थे। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक मुहर पर अंकित नाव का चित्र एवं लोथल से मिट्टी की खिलौना नाव से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस सभ्यता के लोक आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार में मस्तूल वाली नावों का उपयोग करते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध राजस्थान, अफ़गानिस्तान, ईरान एवं मध्य एशिया के साथ था। हड़प्पा संस्कृति में कही से किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है। मोहनजोदाड़ो एवं हडप्पा से भारी मात्रा में मिली मिट्टी की मृण्मूर्तियों में से एक स्त्री मृण्मूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है, इससे यह मालूम होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मान कर इसकी पूजा किया करते थे। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है। उसके सिर तन सींग हैं, उसके बाँयी ओर एक गैंडा और भैंसा है तथा दांयी ओर एक हाथी, एक व्याघ्र एवं हिरण है। इस चित्र से ऐसा प्रतीत होता है आज के भगवान शिव की पूजा उस समय ‘पशुपति‘ के रूप में होती रही होगी। हड़प्पा के भगवान शिव की पूजा उस समय के ‘पशुपति‘ कि रूप में होती रही होगी। <br>गद्यांश के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता में तांबे में टिन मिलाकर कांसा बनाया जाता था, यह तांबा कहाँ से आता था?
Question 8 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br>भाषा शिक्षण की विधियाँ मुख्य रूप से किस पर निर्भर करती है?
Question 9 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर देने के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए।</b> <br> <br>कहानियाँ बच्चों के भाषा-विकास में किस प्रकार सहायक हैं?
Question 10 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br> <br>प्राथमिक स्तर पर भाषा की कक्षा का माहौल कैसा होना चाहिए?
Question 11 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br> इस समय जनसत्ता संसार के प्रत्येक देश के दरवाजे पर दस्तक दे रही है और आज वह अपने मजबूत हाथों में भारतवर्ष के दरवाजे की जंजीर भी खटखटाती हुई उस अत्यंत प्राचीन भूमि के निवासियों से प्रश्न करती है कि बतलाओ, तुम नवयुग का स्वागत किस प्रकार करना चाहते हो? इस देश के युवकों से और उन सभी प्रकार के लोगों से जो कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण हो चुके हैं, उसका संसार के अत्याचारों और अनाचारों की ओर अंगुली उठाते हुए स्पष्ट प्रश्न है कि क्या उस समय, जबकि संसार में न्याय और अन्याय का ऐसा घमासान युद्ध छिड़ा हुआ है, तुम निष्क्रिय और चुपचाप हाथ पर हाथ रखे हुए बैठे रहना ही उचित समझते है? क्या उस समय जबकि राष्टों के होनहार नैनिहाल केवल 'निकृष्ट' श्रेणियों में जन्म लेने के कारण जबर्दस्तों की स्वार्थ वेदी पर बेदर्दी से बलिदान किये जा रहे हैं, जब केवल जाति या रंग के कारण मनुष्य, मनुष्य की गर्दन काट रहा है, तुम चुपचाप बैठे हुए इस विभीषिका को देखते रहना अपना धर्म समझते हो? क्या उस समय जब व्यक्तियों के स्वेच्छाचारों के अंत की घोषणा संसार भर में गूँज उठी है और स्वेच्छाचार अपनी धाक की समाप्ति के पश्चात् अब अपने जाने की गंभीरतापूर्वक तैयारी कर रहा है, तब उन घटनाओं को चुपचाप देखना ही तुम्हारा कर्तव्य है? <br>गद्यांश के अनुसार, कौन अपनी धाक की समाप्ति के पश्चात् अब अपने जाने की गंभीरतापूर्वक तैयारी कर रहा है?
Question 12 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। कुछ शब्दों को मोटे अक्षरों में मुद्रित किया गया है, जिससे आपको कुछ प्रश्नों के उत्तर देने में सहायता मिलेगी। गद्यांश के अनुसार, दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन कीजिए।</b> <br> <br> आजकल अवसाद की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। 17 प्रतिशत से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं, जिनमें युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। अगर आपका मन किसी काम में नहीं लग रहा, आप लोगों से कटे-कटे से रहने लगे हैं, थकान, आलस और उदासी ने आपको घेर रखा है तो हो सकता है कि आप डिप्रेशन यानी अवसाद के शिकार हो गए हों। महानगरों में यह समस्या काफी तेजी से बढ़ रही है। आमतौर पर यह बीमारी 13 सें 35 वर्ष की उम्र में अधिक देखने को मिल रही है। हमारे देश में ही नहीं, विश्वभर में अवसादग्रस्त लोगों की बढ़ती संख्या के कारण ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अवसाद यानी डिप्रेशन को डिप्रेशन ऑफ ग्लोबल क्राइसिस की संज्ञा दी है। जब मस्तिष्क को पूरा आराम नहीं मिल पाता और उस पर हमेशा एक दबाव बना रहता है तो समझिए कि तनाव ने आपको अपनी चपेट में ले लिया है। तनाव को 20वीं सदी के सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। डॉक्टरी भाषा में तनाव यानी शरीर के होमियोस्टैसिस में गड़बड़ी। यह वह अवस्था है, जो किसी व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली को गड़बड़ा देती है। तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन का स्तर बढ़ता जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं। लगातार तनाव की स्थिति अवसाद में बदल जाती है। अवसाद एक गंभीर स्थिति है। हालांकि यह कोई रोग नहीं है, बल्कि इस बात का संकेत है कि आपका शरीर और जीवन असंतुलित हो गया है। यह याद रखना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब आप अवसाद को एक बीमारी के रूप में देखना प्रारंभ करते हैं, तब आप सोचते हैं कि आपको दवा लेने की आवश्यकता है। किसी बीमारी या भावनात्मक आघात के कारण दो सप्ताह तक अवसाद में रहना सामान्य बात है। इन समस्याओं से उबरने के बाद अवसाद के लक्षण अपने आप ही कम होने लगते हैं और व्यक्ति सहज अनुभव करने लगता है। अगर दो सप्ताह के बाद भी लक्षण बढते रहें तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती है। दुख, उत्तेजना, क्रोध, मूड स्विंग, असहाय अनुभव करना, नकारात्मक सोच, अकेलापन महसूस करना अवसाद के भावनात्मक लक्षण हो सकते हैं। अत्यधिक थकान, ऊर्जा की कमी, अत्यधिक सोना या कम सो पाना, भूख अधिक या कम लगना, अपच, अनियमित मासिक चक्र, दर्द आदि अवसाद के शारीरिक लक्षण हैं। <br> <br> अवसाद के कारण- इंडियन साइकाइट्रिक सोसायटी के अनुसार अवसाद के दो कारण हो सकते हैं, जैविक और अजैविक। यदि अवसाद की वजह जैविक है तो उसका उपचार दवा के द्वारा करने की जरूरत होती है, पर अजैविक कारणों से हुए अवसाद को काउंसलिंग, योग और ध्यान के जरिए दूर किया जाता है। अवसाद के कुछ अन्य कारण- भावनात्मक समस्याएं, हार्मोन परिवर्तन, विशेषकर गर्भावस्था और मेनोपॉज के बाद आनुवंशिक कारण, मोटापा, जीवन से मिले नकारात्मक अनुभव, कठिनाइयों और अभावों में बिता बचपन, ट्रॉमा या गंभीर नुकसान, विशेष रूप से जीवन के शुरुआती दिनों में, दवाइयों के दुष्प्रभाव, अल्कोहल या ड्रग्स का सेवन, अवसाद के उपचार के लिए दवा जितनी कारगर होती है, उससे अधिक कारगर मनोवैज्ञानिक उपचार होते हैं, लेकिन दोनों का ही अपना-अपना महत्व है। गहरे अवसाद से पीडित लोगों में आत्महत्या की भावना आने लगती है। उन्हें लगता है कि यही एक रास्ता है, जिससे उन्हें उनकी सारी समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। भारत में प्रतिदिन करीब 95-100 लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें 40 प्रतिशत युवा होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के अनुसार युवा लोगों में आत्महत्या मृत्यु की सबसे बड़ी वजह है और आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह है डिप्रेशन अर्थात अवसाद। <br> <br> अवसाद से बचने के लिए संतुलित भोजन खाएं अर्थात ताजे फल, सब्जियों, साबुत अनाज व स्वस्थ वसा मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी हैं। दिन में तीन बार अधिक भोजन खाने की बजाए 5 या 6 बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा खाएं। इससे रक्त में शर्करा का स्तर कम नहीं होता। मस्तिष्क का उपयोग करें अर्थात - मानसिक व्यायाम मस्तिष्क की नई कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर उनका पैनापन बढ़ाता है। नई चीजें सीखें। सुडोकू, क्रॉस वर्ड अच्छे व्यायाम हैं। नियमित रूप से व्यायाम करें अर्थात मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए प्रतिदिन कम-से-कम 30 मिनट का व्यायाम जरूर करें। आप जितने अधिक फिट होंगे, शरीर में फील गुड हार्मोन एंडोरफिन का स्तर उतना अधिक बेहतर रहेगा। तनाव न लें, लगातार तनाव की स्थिति मस्तिष्क की कोशिकाओं और हिप्पो कैम्पस को नष्ट कर देगी। हिप्पो कैम्पस मस्तिष्क का वह क्षेत्र है, जो नई यादों को बनाने और पुरानी यादों को संजोए रखने का काम करता है। ध्यान करें -वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि अवसाद, उत्तेजना, अनिद्रा की समस्या में राहत दिलाने में ध्यान बहुत उपयोगी है। खूब आराम करें। <br> <br>उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, किस अवधि तक अवसाद में रहना एक सामान्य बात है?
Question 13 :
<b>निम्नलिखित अपठित काव्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दें।</b> <br> <br> यदि फुल नहीं बो सकते तो काँटे कम से कम मत बोओ। <br> “क्या करोगे अब? <br> समय का <br> जब प्यार नहीं रहा <br> सर्वहारा पृथ्वी का <br> आधार नहीं रहा <br> न वाणी साथ है <br> न पानी साथ है <br> न कही प्रकाश है स्वच्छ <br> जब सब कुछ मैला है आसमान <br> गंदगी बरसाने वाले <br> एक अछोर फैला है <br> कही चले जाओ <br> विनती नहीं है <br> वायु प्राणपद <br> आदमकद आदमी <br> सब जगह से गायब है” <br> <br>काव्यांश के अनुसार, कवि ने धरती के बारे में क्या कहा है?
Question 14 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br>बालक के भाषा विकास में सहायक-
Question 15 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br> <br>प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा की कक्षा में बालकों द्वारा प्रश्न करना और परिचर्चा में भाग लेना क्या बताता है?
Question 16 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए।</b> <br> शब्द की आकर्षण शक्ति न्यूटन की आकर्षण शक्ति से लवमात्र भी कम नहीं कही जा सकती। बल्कि शब्द की इस शक्ति को न्यूटन की आकर्षण शक्ति से विशेष कहना चाहिए। इसलिए कि जिस आकर्षण शक्ति को न्यूटन ने प्रकट किया है वह केवल प्रत्यक्ष में काम दे सकती है। सूर्य पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है, पृथ्वी चंद्रमंडल को; यों ही जितने बड़े पदार्थ हैं, सब छोटे को आकर्षित कर रहे हैं। किंतु एक पदार्थ दूसरे को तभी आकर्षित करता है, जब वे दोनों एक दूसरे के मुकाबले में हों। पर शब्द की आकर्षण शक्ति में यह आवश्यक नहीं है क्योंकि शब्द की आकर्षण शक्ति तभी ठहर सकती है जब नेत्र भी वहाँ योग देता हो। इन शब्दों का जितना ही अधिक समूह बढ़ता जाएगा उतनी ही उनमें आकर्षण शक्ति भी अधिक होती जाएगी। प्रत्येक जाति के धर्म ग्रंथ इसके प्रमाण हैं। वेदादि धर्म-ग्रंथ जो इतने माननीय हैं सो इसीलिए की उनमें धर्म का उपदेश ऐसे शब्द समूहों में है जो चित्त को अपनी ओर खींच लेते हैं और ऐसा चित्त में गड़ के बैठ जाते हैं कि हटाए नहीं हटते। न्यूटन ने जिस आकर्षण शक्ति को प्रकट किया वह उनके पहले किसी के दिलों को आकर्षित न कर सकती थी। वृक्ष से फल का टूट कर नीचे गिरना साधारण-सी बात है पर किसी के मन में इसका कोई असर नहीं होता। न्यूटन के चित्त में अकस्मात् आया कि ‘‘यह फल ऊपर न जा कर नीचे को क्यों गिरा।’’ अवश्य इसमें कोई बात है। देर तक सोचने के उपरांत उसने निश्चय किया कि इसका कारण यही है कि ‘‘बड़ी चीज छोटी को खींचती है।’’ पर शब्द की आकर्षण शक्ति में इतना असर है कि वह मनुष्य की कौन कहे वन के मृगों को भी मृग्ध कर देती है। <br>गद्यांश के अनुसार कौन किसे आकर्षित कर रहा है?
Question 17 :
‘तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’, इस पंक्ति में कौन सा अलंकर है? <br>
Question 18 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br> <br> यह शाश्वत सत्य है कि भाषा, मनुष्य के भावों व विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त साधन है। यह भी देखने में आया है कि संसार में जितने भी राष्ट्र हैं, प्राय: उनकी राजभाषा वही है जो वहां की संपर्क भाषा है तथा वही राष्ट्रभाषा है जो वहां की राजभाषा है। भारत विविधताओं से भरा देश है जहां अनेकता में एकता झलकती है, उदाहरण के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के प्रत्येक राज्य में सुसंस्कारित एवं समृद्ध राज्य-भाषाएं एवं अनेक उपभाषाएँ बोली जाती हैं, अत: यह कहना समीचीन होगा कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। इस परिदृश्य में किसी एक भाषा को महत्व देना कठिन हो जाता है, लेकिन आजादी के बाद सभी भारतीय भाषाओं मे जो भाषा मनोरंजन, साहित्यिक एवं संपर्क भाषा के रुप में उभरी है वह हिंदी ही है। <br> आज हिन्दी को जिस रूप में हम देखते हैं उसकी बाहरी आकृति भले ही कुछ शताब्दियों पुरानी हो, किन्तु उसकी जड़ें संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश रूपी गहरे धरातल में फैली हैं। व्याकरण की अत्यधिक <b>जटिलता</b> और नियमबद्धता के कारण इन अपभ्रंश भाषाओं से पुनः स्थानीय बोलचाल की भाषाओं का जन्म हुआ जिन्हें हम आज की आधुनिक भारतीय भाषाओं के रूप में जानते हैं। <br> हिन्दी भाषा के विकास की प्रक्रिया आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास के साथ ही प्रारंभ होती है। आजादी से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी या हिन्दुस्तानी ही सामान्य बोलचाल की एकमात्र ऐसी भाषा थी जो किसी न किसी रूप में देश के ज्यादातर भागों में समझी और बोली जाती थी। अत: एक राष्ट्र और एक राष्ट्रभाषा की भावना यहां जागृत हो उठी और हिन्दी सबसे आगे निकलकर राष्ट्र भाषा, संपर्क भाषा और मानक भाषा बनती चली गई। इस अभियान में गांधी जी की भूमिका अहम रही जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में राजनीतिक और सामाजिक मान्यता व संरक्षण प्रदान किया तथा इसका परिणाम यह रहा कि उत्तरी भारत में हिंदी साहित्य सम्मेलन और दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा जैसी हिन्दी सेवा संस्थाओं का जन्म हुआ, जिसके माध्यम से हजारों अहिंदी भाषी भारतीयों ने स्वैछ्चिक तौर पर हिन्दी को सीखना और अपनाना शुरू किया। <br> राजनीतिशास्त्र के कई विद्वानों ने इस बात को दोहराया है कि जब कोई देश किसी दूसरे देश को पराजित कर अपना गुलाम बना लेता है, तो वह पराजित देश की सभ्यता, संस्कृति, भाषा आदि को नष्ट करने का भरसक प्रयास करता है, पराधीन देश पर आक्रांताओं द्वारा अपनी भाषा को राजकाज की भाषा के रुप में जबरदस्ती थोपा जाता है ताकि पराधीन देश की आने वाली पीढ़ी यह भूल जाए कि वे कौन थे, उनकी संस्कृति एवं राजभाषा क्या थी। हिन्दी को राजभाषा का स्थान केवल इसलिए नहीं दिया गया कि वह देश की एकमात्र संपर्क भाषा है, बल्कि अंग्रेजी शासन को जड़ों से उखाड़ने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि क्रांतिकारियों के बीच में कोई एक भाषा हो जिसमें वह अपनी बात एक दूसरे को समझा सके। यह वह दौर था जब देश अंग्रेजो के शासन से त्रस्त था, लोग आज़ादी के लिए तरस रहे थे। अंग्रेजी विदेशी भाषा थी, जो विदेशी शासन का अनिवार्य अंग थी, अंग्रेजी शासन का विरोध करने के साथ-साथ अंग्रेजी का विरोध करना या उससे संबंधित वस्तुओं का विरोध भी आवश्यक हो गया था। <br> अतः स्वाधीनता संग्राम के वक्त राष्ट्रीय नेताओं ने स्वदेशीपन या राष्ट्रीय भावना को जागृत करने का प्रयत्न किया। देशवासियों के बीच एकता का संचार करने वाली भाषा के रुप में हिन्दी उभर कर सामने आई। देश को आजादी मिलने के बाद यह सामने आया कि देश में संचार की भाषा कोई हो सकती है तो वह हिन्दी ही है। संपर्क या व्यवहार की भाषा के रूप में हिन्दी की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया जाने लगा। <br> <br>गद्यांश के अनुसार, स्वाधीनता संग्राम के वक्त राष्ट्रीय नेताओं ने किसे जागृत करने का प्रयत्न किया?
Question 19 :
एक बालक जरूरत से ज्यादा अपने आपको असमर्थ समझ रहा है, वह हीन भावना ग्रन्थि से पीड़ित है और आत्मविश्वास खो बैठा है। एक शिक्षक के नाते आप उसका उपचार करेंगे-
Question 21 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।</b> <br> हल चलाने वाले और भेड़ चराने वाले प्रायः स्वभाव से ही साधु होते हैं। हल चलाने वाले अपने शरीर का हवन किया करते हैं। खेत उनकी हवनशाला है। उनके हवनकुंड की ज्वाला की किरणें चावल के लंबे और सफेद दानों के रूप में निकलती हैं। गेहूँ के लाल-लाल दाने इस अग्नि की चिनगारियों की डालियों-सी हैं। मैं जब कभी अनार के फूल और फल देखता हूँ तब मुझे बाग के माली का रुधिर याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिरकर उगे हैं और हवा तथा प्रकाश की सहायता से मीठे फलों के रूप में नजर आ रहे हैं। किसान मुझे अन्न में, फूल में, फल में आहुति हुआ सा दिखाई पड़ता है। कहते हैं, ब्रह्माहुति से जगत् पैदा हुआ है। अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके ईश्वरी प्रेम का केंद्र है। उसका सारा जीवन पत्ते-पत्ते में, फूल-फूल में, फल-फल में बिखर रहा है। वृक्षों की तरह उसका भी जीवन एक प्रकार का मौन जीवन है। वायु, जल, पृथ्वी, तेज और आकाश की निरोगता इसी के हिस्से में है। विद्या यह नहीं पढ़ा; जप और तप यह नहीं करता; संध्या-वंदनादि इसे नहीं आते; ज्ञान, ध्यान का इसे पता नहीं; मंदिर, मस्जिद, गिरजे से इसे कोई सरोकार नहीं नहीं; केवल साग-पात खाकर ही यह अपनी भूख निवारण कर लेता है। ठंडे <b>चश्मों</b> और बहती हुई नदियों के शीतल जल से यह अपनी प्यास बुझा लेता है। प्रातःकाल उठकर यह अपने हल-बैलों को नमस्कार करता है और खेत जोतने चल देता है। दोपहर की धूप इसे भाती है। इसके बच्चे मिट्टी ही में खेल-खेलकर बड़े हो जाते हैं। इसको और इसके परिवार को बैल और गाँवों से प्रेम है। उनकी यह सेवा करता है। पानी बरसाने वाले के दर्शनार्थ आँखें नीले आकाश की ओर उठती हैं। नयनों की भाषा में यह प्रार्थना करता है। सायं और प्रातः दिन और रात विधाता इसके हृदय में अचिंतनीय और अद्भुत आध्यात्मिक भावों की <b>वृष्टि</b> करता है। यदि कोई इसके घर आ जाता है तो यह उसको मृदु वचन, मीठे जल और अन्न से तृप्त करता है। धोखा यह किसी को नहीं देता। यदि इसको कोई धोखा दे भी दे, तो इसका इसे ज्ञान नहीं होता; क्योंकि इसकी खेती हरी-भरी है; गाय इसकी दूध देती है; स्त्री इसकी आज्ञाकारिणी है; मकान इसका पुण्य और आनंद का स्थान है। पशुओं को चराना, नहलाना, खिलाना, पिलाना, उसके बच्चों की अपने बच्चों की तरह सेवा करना, खुले आकाश के नीचे उसके साथ रातें गुजार देना क्या स्वाध्याय से कम है? दया, वीरता और प्रेम जैसा इन किसानों में देखा जाता है, अन्यत्र मिलने का नहीं। गुरु नानक ने ठीक कहा है - ''भोले भाव मिलें रघुराई'', भोले भाले किसानों को ईश्वर अपने खुले दीदार का दर्शन देता है। उनकी फूस की छतों में से सूर्य और चंद्रमा छन-छनकर उनके बिस्तरों पर पड़ते हैं। ये प्रकृति के जवान साधु हैं। जब कभी मैं इन बे-मुकुट के गोपालों के दर्शन करता हूँ, मेरा सिर स्वयं ही झुक जाता है। जब मुझे किसी फकीर के दर्शन होते हैं तब मुझे मालूम होता है कि नंगे सिर, नंगे पाँव, एक टोपी सिर पर, एक लँगोटी कमर में, एक काली कमली कंधे पर, एक लंबी लाठी हाथ में लिए हुए गौवों का मित्र, बैलों का हमजोली, पक्षियों का हमराज, महाराजाओं का अन्नदाता, बादशाहों को ताज पहनाने और सिंहासन पर बिठाने वाला, भूखों और नंगों को पालने वाला, समाज के पुष्पोद्यान का माली और खेतों का <b>वाली</b> जा रहा है। <br>उपर्युक्त गद्यांश में “चश्मों” से क्या अभिप्राय है?
Question 23 :
<b>निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके अनुरूप उत्तर दीजिए।</b> <br> चमकीली है सुबह आज आसमान में <br> निश्चय कल की सुबह और चमकीली होगी <br> बेचैनी की बाँहों में कल फूल खिलेंगे <br> घुटन गमकती साँसों की आवाज सुनेगी। <br> कुंठाओं की टहनी छिन्न-भिन्न होगी फिर <br> आशा अपने हाथों से अब कुसुम चुनेगी <br> चटकीली है आज चहकती हुई चाँदनी <br> कल चंदा की किरण और चटकीली होगी <br> खुल जाएँगें अब सबके दिल के दरवाजे <br> आँखें अपनी आँखों को पहचान सकेंगी। <br>कवि को विश्वास है कि -
Question 24 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।</b> <br> हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रथम विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर भारत के सभी नागरिकों को ‘कम खाओ, सही खाओ’ मुहिम को जन आंदोलन बनाने का आह्नान किया है। मंत्रालय ने कहा कि आज हमें एक भी दाना बर्बाद नहीं करने का संकल्प लेना चाहिए तथा अपने स्तर पर और अपने संस्थानों में, खाद्य सुरक्षा में योगदान देना सुनिश्चित करना चाहिए। इससे गरीबी, भूख और कुपोषण को जड़ से मिटाने में मदद मिलेगी। विदित हो कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस दिशा में निर्देश देते हुए कहा है कि सभी वैवाहिक स्थल, होटल, मोटल और फार्म हाउसों में होने वाली शादी-समारोहों में भोजन की बर्बादी को रोका जाना चाहिए। <br> मानव सभ्यता के आरंभ से ही अन्न का विशेष महत्त्व रहा है। परंपरागत रूप से देखा जाए तो हमारे यहाँ भोजन का अर्थ केवल पेट भरना नहीं रहा है, बल्कि अन्न को सम्मान देने की भी परंपरा रही है। किंतु अकसर यह देखा गया है कि घरों में ही नहीं बल्कि बाहरी कार्यक्रमों में भी जैसे- विवाह, जन्म, मरण आदि समारोहों में भोजन की खूब बर्बादी होती है। उल्लेखनीय है कि ऐसे आयोजनों में बर्बाद होने वाला भोजन इतना होता है कि उससे लगभग एक अरब से ज्यादा लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। इस प्रकार इस प्रवृत्ति से कहीं न कहीं ‘भोजन का अधिकार’ प्रभावित हो रहा है। नतीजतन कुपोषण और भुखमरी बढ़ी है। प्रस्तुत लेख में हम अन्न बर्बादी का विश्लेषणात्मक अध्ययन करेंगे। <br> भोजन की बर्बादी से न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं। दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है, उसका एक-तिहाई (लगभग 1 अरब 30 करोड़ टन) अन्न बर्बाद हो जाता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व का हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। अगर खाद्य की बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। विश्व भूख सूचकांक 2018 के अनुसार, भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर पहुँच गया है। भारत की वर्तमान स्थिति चीन, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे कई पड़ोसी देशों से भी खराब हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 के बाद से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट आई है। वर्ष 2014 में भारत जहां 55वें पायदान पर था, तो वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और 2017 में 100वें पायदान पर आ गया था। यह आंकड़े भी विचारणीय हैं कि हमारे देश में हर साल उतना गेहूँ बर्बाद होता है, जितना ऑस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। नष्ट हुए गेहूँ की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ रुपये होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। देश में 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं है। वहीं देश में उत्पादित कुल फल और सब्जी का एक बड़ा हिस्सा (40 प्रतिशत) परिवहन के उचित साधनों की कमी के कारण समय पर मंडी तक नहीं पहुँच पाता है। <br> भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 23 मिलियन टन दाल, 12 मिलियन टन फल और 21 मिलियन टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं। विदित हो कि औसतन हर भारतीय एक साल में छह से ग्यारह किलो अन्न बर्बाद करता है। जितना अन्न हम एक साल में बर्बाद करते हैं, उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जिससे फल-सब्जी को सड़ने से बचाया जा सके। भारत में बढ़ती समृद्धि के साथ लोग भोजन के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं। खर्च करने की बढ़ती क्षमता के साथ ही लोगों में भोजन फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ी है। आज कई मध्यवर्गीय परिवारों में भोजन पर व्यर्थ व्यय करने का चलन बढ़ा है नतीजतन उनका बजट बढ़ा है। समाज में दिखावेपन के कारण शादियों, त्योहारों या महोत्सवों में भोजन की बर्बादी सामान्य बात हो गई है। आम तौर पर दो प्रकार के अपशिष्ट होते हैं पहला जो लोग प्लेट में बिना खाए भोजन छोड़ते हैं और दूसरा जब उम्मीद से कम व्यक्ति पार्टी/भोज में खाने के लिए आते हैं। वर्तमान समय में समाज के सभी लोगों को मिलकर भोजन की बर्बादी रोकने के लिये सामाजिक स्तर पर जागरुकता लानी होगी तभी भोजन की बर्बादी को रोकने का अभियान सफल हो पायेगा। <br>गद्यांश के अनुसार, भारत में किस कारण से लोग भोजन के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं?
Question 25 :
खेल द्वारा शिक्षण विधि के अन्तर्गत उच्च कक्षाओं के लिए-किस विधि का उपयोग उत्तम है?
Question 26 :
भाषा शिक्षण पर हुए शोध बताते हैं कि द्वितीय /विदेशी भाषा में दक्षता सीखने वाले की .......................... और ................................... पर ही ज्यादा निर्भर करती है।
Question 27 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए।</b> <br> <br> दुःख और असंतोष का कारण केवल गरीबी ही नहीं है। मनुष्य एक बहुत ही विचित्र प्राणी है, वह अन्य समस्त जीवधारियों से मौलिक रूप से भिन्न है। उसको विकास की अनन्त सम्भावनायें, अदम्य आशायें, रचनात्मक, शक्तियाँ तथा आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। उसको वे समस्त सुख-सुविधा के साधन प्राप्त हो जायें, जो सम्पत्ति प्रदान कर सकती है, परन्तु यदि उसकी रचनात्मक और आध्यात्मिक शक्तियाँ अविकसित एवं अतृप्त रह जाती हैं, तो वह जीवन को जीने योग्य कदापि नहीं समझ पायेगा, बर्नार्डशा, एच.जी. वैल्स, मैथ्यू आर्नोल्ड, गाल्सवर्दी आदि मानववादी महान् लेखकों ने आधुनिक जीवन की दुर्बलताओं, असफलताओं एवं विसंगतियों का खुलकर वर्णन किया है और इस कारण वे भविष्य द्रष्टा लेखक भी कहे जाते हैं, परन्तु उन्होंने मानव के मन की गहराईयों की उपेक्षा कर दी है और कहीं-कहीं उन्हें गलत रूप में प्रस्तुत भी कर दिया है। उन्होंने जिन बातों का विरोध किया है, उनके स्थान पर अपनी ओर से विकल्प प्रस्तुत नहीं किये हैं और इस प्रकार प्राचीन परम्पराओं, नैतिक मान्यताओं, धार्मिकता की रिक्तता के स्थान पर संशय और संदेह से युक्त भावनाओं को स्थान दे दिया है। हमारे बाह्य जीवन में जो अनियमितता और अनिश्चितता व्याप्त है। वे वस्तुतः हमारे मन-मानस में व्याप्त संदेह और व्याकुलता के प्रतिफलन हैं। सामाजिक मूल्यों की स्थापना के लिए हमारे आदर्शों तथा हमारे द्वारा मान्य जीवन मूल्यों में आवश्यक परिवर्तन होना चाहिए। हम जिस अनुपात में स्वयं अपने आपको बदल सकते हैं। उसी अनुपात में हम अपने भविष्य को सुरक्षित बना सकते हैं। हमारे इस युग में भौतिक दृष्टि से कोई कमी नहीं है। यदि अभाव है, तो आत्मा का। हम आत्मा की रूग्णता से पीड़ित हैं। हमें अपने मूल की वृद्धि करनी चाहिए तथा पारलौकिक सत्य के प्रति विश्वास जगाना चाहिए। इससे हमारे जीवन में व्यवस्था अनुशासन, एकता सोद्देश्यता एवं सद्भावना का समावेश होगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो संकट के समय टूट जायेंगे, जिस प्रकार बाढ़ तूफान, आँधी आने पर बड़े-बडे़ पेड़ और मकान गिर पड़ते हैं। <br> <br>गद्यांश के अनुसार, हमारे जीवन में व्याप्त संदेह और व्याकुलता किसके प्रतिफलन हैं?
Question 28 :
यदि भाषाओं को विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें, तो भाषाओं के बीच मूलतः
Question 29 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br> <br>निम्न से से क्या भाषा विकास को प्रभावित करने वाला व्यैक्तिक कारक नहीं है?
Question 31 :
अक्षय अक्सर मास को मांस एवं श्याम का शाम लिखता है इसका कारण है-
Question 33 :
उच्च प्राथमिक स्तर पर हिन्दी भाषा शिक्षण का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य है
Question 34 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए- </b> <br>बालकों में किस सिद्धांत के माध्यम से भाषा अर्जन की कला अधिक होती है?
Question 35 :
<b>निम्नलिखित प्रश्न के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए-</b> <br> <br>‘एला’ का तद्भव रूप क्या है?
Question 36 :
नाटक-शिक्षण में सतत और व्यापक मूल्यांकन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ?
Question 37 :
प्राथमिक स्तर पर बहु-सांस्कृतिक पृष्टभूमि वाली कक्षा में बच्चे आवेग के क्षणों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने लगते हैं क्योंकि-
Question 38 :
<b>गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए:</b> <br> पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा व्यवस्था के प्रति जिन विचारकों ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की, उसके दलित-शोषित पक्ष की ओर ध्यान देने वाले विचारकों में ज्योतिबा फुले, नारायण गुरु और भीमराव अंबेडकर का नाम सर्वोपरि है। हंटर कमीशन को भेजे गए ज्ञापन में शिक्षा के जिन लोकतांत्रिक मूल्यों की ओर फुले ने ध्यान आकृष्ट किया था, वह इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इस धारा की अगली कड़ी यानी हाशिए के समाज की चिंता को आगे बढ़ाने वाले दूसरे उल्लेखनीय विचारक हैं - अंबेडकर। हम ऐसा कह सकते हैं कि डॉ. भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के ऐसे विचारक के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिन्होंने वर्चस्व प्रेरित शिक्षा की असलियत को न सिर्फ बेनकाब किया बल्कि भारतीय शिक्षा में आमूल-चूल बदलाव कैसे संभव है, इस मुद्दे पर ठोस ढंग से विचार किया। भारतीय राष्ट्रवाद की प्रचलित अवधारणा में प्रायः दलित-आदिवासी स्वरों की अनदेखी की गई। यानी एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की गई जिसकी बुनियाद में सवर्णहित की परिकल्पना को स्थापित करने की रणनीतियाँ सक्रिय थीं। ऐसी रणनीतियों को अमली जामा पहनाने के लिए राष्ट्र निर्माण के दलित स्वरों की प्रायः अनदेखी की गई। यह अकारण नहीं है कि हाल तक पाठ्यचर्याओं, पाठ्यपुस्तकों, सवालों के निर्माण आदि में दलित हितों की अनदेखी नजर आई। यह अलग बात है कि 'राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005' और उसके बाद बने आधार पत्रों में ऐसी चिंताएँ मुखर होना शुरू हो गईं। <br> दलित-आदिवासी उत्पीड़न के विभिन्न संदर्भों ने भारतीय राष्ट्र की जो छवि बनाई उसकी व्याख्याएँ परस्पर विरोधी रूपों में हुई। एक व्याख्या वह थी जिसने वर्णवाद, पुनर्जन्म के आलोक में और तथाकथित महान परंपराओं के वारिस के रूप में भारत की छवि को समझा। दूसरी व्याख्या वह थी, जिसने इन अवधारणाओं की असली मंशा यानी सवर्णहित की चतुराइयों को बेनकाब किया। आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय राष्ट्र की पुनर्व्याख्या की जाए और अभिजनवादी स्थापनाओं के समानांतर हाशिए के समाज या दलित संदर्भों की हकीकतों से रूबरू हुआ जाए। डॉ. अंबेडकर ने जातिवाद, सांप्रदायिकता, ब्राह्मणवाद और विषमता के खिलाफ जंग छेड़ी। डॉ. भीमराव अंबेडकर इसी अर्थ में भारतीय शिक्षा के इतिहास में परिवर्तनकामी विचारक के रूप में नजर आते हैं। डॉ. अंबेडकर ने वर्ण-जाति आधारित ब्राह्मण या सवर्ण पोषित परंपरा से जब दलित-मुक्ति का सपना देखा, तब उन्होंने चिंतन परंपरा के अनेक स्रोतों से स्वयं को संपन्न किया। <br>लेखक के अनुसार, हाल तक किसमें दलित हितों की अनदेखी नजर आई?
Question 41 :
<b>निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए सबसे उचित विकल्प चुनिए।</b> <br/>हिन्दी भाषा के सतत् और व्यापक मूल्यांकन के संदर्भ में कौन-सा कथन उचित नहीं है?<br/>
Question 42 :
<b>निम्नलिखित प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर देने के लिए उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br/>वर्तमान हिंदी का प्रचलित रूप है-<br/>
Question 43 :
निम्नलिखित में से कौन-सा विशिष्ट गुण शिक्षक को प्रेरणा का स्त्रोत बनने में सहायक है?<br/>
Question 44 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br/> भारत सदा से ही संतों, महापुरुषों एवं वीरों की जन्मस्थली रहा है। कहा गया है कि जब-जब संसार में अधर्म की वृद्धि एवं धर्म की हानि होती है तो समाज का उद्धार करने के लिए किसी महापुरुष का जन्म होता है। गौतम बुद्ध का नाम भी ऐसे ही महापुरुष के रूप मैं विख्यात है। गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक बार महारानी महामाया ने स्वप्न देखा कि वे हिमालय के शिखर पर हैं और देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत अपनी सुंड् में शतदल कमल लिए उनकी परिक्रमा कर रहा है। राजा को रानी के इस स्वप्न का जब पता चला तो राज- ज्योतिषियों को बुलाया गया। उन्होंने बताया कि यह स्वप्न मंगलसूचक है। महारानी की इच्छा देखकर राजा शुद्धोधन ने उन्हें उनके पिता के पास भेजने की व्यवस्था कर दी। महारानी महामाया नेपाल की थीं। मार्ग में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी वन में गर्भवती महामाया एक बालक को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। इस बालक को महामाया की छोटी बहन गौतमी ने पाला। बालक के जन्म ने पिता के मनोरथ को पूरा किया, इसलिए इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। बालक सिद्धार्थ की जन्म कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक महापुरुषों के गुण लेकर जन्मा है। निश्चय ही यह महायोगी सन्यासी और महान साधक के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा। यदि किसी प्रभाव से इसका मन परिवार मैं रम गया तो यह महाप्रतापी राजा बनेगा और अपना नाम उज्जवल करेगा। महाराजा शुद्धोधन ने यह सुना तौ वे चिंताग्रस्त हो उठे। पुत्र की परवरिश राजसी ठाठ के साथ विशेष सावधानी के साथ होने लगी। लेकिन जो योग लैकर पुत्र उत्पन्न हुआ उसका प्रभाव बचपन से ही उसकी प्रवृत्तियों पर स्पष्ट झलकने लगा। बालक सिद्धार्थ बचपन से ही गंभीर प्रकृति के थे। उनका मन राजसी वैभव में नहीं अपितु उद्यान में एकांत चिंतन में लगता था। पिता ने यह देखा तौ राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की राजकुमारी से कर दिया। राजकुमार सिद्धार्थ कुछ दिन तो इस नए पन को देखते-समझते रहे। इसी बीच इनके यहां राहुल नाम के पुत्र ने जन्म लिया। लेकिन विधि को तो कुछ ओर ही स्वीकार था। पत्नी तथा परिवार भी उन्हें मोह-बंधन में न बांध सके। ‘ एक दिन भ्रमण करते हुए राजकुमार सिद्धार्थ को एक रोगी मिला, एक दिन एक बूढा और एक बार उन्हें एक शवयात्रा देखने को मिली। पूछने पर पता चला कि कोई मर गया है। इस तरह इन्हें रोग की भीषणता, वृद्धावस्था की लाचारी और मृत्यु की अनिवार्ययता ने इतना व्यथित किया कि इनका मन संसार से<b>विरक्त</b> हो गया। ये आत्मचिंतन में लीन हो गए। एक दिन रात्रि के तीसरे पहर में पत्नी तथा पुत्र को छोड़ गृह त्याग कर साधना मार्ग पर बढ़ गए। प्रात: काल यशोधरा ने शैथ्या पर जब इन्हें नहीं देखा तो वह सब कुछ समझ गई। पति के इस प्रकार से जाना यशोधरा को गहरा दु :ख हुआ। यशोधरा की इसी पीड़ा को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यशोधरा काव्य ने बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णित किया है। अनेक स्थानों की यात्रा करते, ज्ञान-पिपासा में राजकुमार सिद्धार्थ ‘ गया ‘ पहुंचे। वहां एक वट वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए। वहीं इन्हें ज्ञान हुआ कि सादा जीवन ही उत्तम है। दु :ख का मूल कारण तृष्णा है। सत्य ही तप है। व्यक्ति को आत्म-परिष्कार से ही शांति मिलेगी। इस जीवन मैं कोई छोटा-बड़ा नहीं है। प्रत्येक को भक्ति का पूजा-अर्चना का पूर्ण अधिकार है। इन सबका बोध होने पर वे ‘ बुद्ध ‘ के नाम से विख्यात हुए। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान मिला उसे बोद्धिवृक्ष कहा जाता है। ‘गया’ मैं बुद्ध सारनाथ गए। यहां से उन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया। उनके द्वारा चलाया गया धर्म ही बौद्ध धर्म कहलाया। जातिबंधन तोड़ने के कारण सभी वर्गों विशेषकर छोटे वर्ग के लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। भारत में सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के उपदेश को चीन, मध्य एशियाई तथा पूर्व एशियाई देशों में फैलाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। आज भले ही समाज में सनातन धर्म, आर्य समाज का प्रबल प्रभाव हो किंतु मानव धर्म की दृष्टि से बौद्ध धर्म का अपना महत्त्व है। गौतम बुद्ध को उनके इस जीवन मंत्र के आधार पर ही भगवान बुद्ध कहा जाता है।<br/> <br/>गद्यांश के अनुसार, सिद्धार्थ का विवाह किस राजकुमारी से हुआ था?<br/>
Question 45 :
<b>नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्न के उत्तर के रूप में उचित विकल्प का चयन कीजिए। </b> <br> जंगल में जिस प्रकार अनेक लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं। जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं; उसी प्रकार राष्ट्रीय जीवन की अनेक विधियाँ संस्कृत में समन्वय प्राप्त करती हैं। समन्वययुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है। <br>राष्ट्रीय जीवन में समन्वय का अर्थ है-
Question 46 :
<b> नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। </b> <br/> हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हड़प्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था। सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रति वर्ष लायी गयी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी कृषि हेतु महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी। इन उपजाऊ मैदानों में मुख्य रूप से गेहूँ और जौ की खेती की जाती थीं, सिंधु घाटी की यही फ़सल भी थी। अभी तक 9 फ़सलें पहचानी गयी हैं। चावल केवल गुजरात, लोथल में और संभवतः राजस्थान में भी, जौ की दो किस्में , गेहूँ की तीन किस्में, कपास खजूर, तरबूज मटर और एक ऐसी किस्म जिसे ‘ब्रासिक जुंसी‘ की संज्ञा दी गयी है। इसके अतिरिक्त मटर, सरसों, तिल एवं कपास की भी खेती होती थी। लोथल में हुई खुदाई में धान तथा बाजरे की खेती के अवशेष मिले है। बणावली में मिट्टी का बना हुआ एक खिलौना मिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा के लोग लकड़ी के हल का प्रयोग करते थे। सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने सर्वप्रथम कपास उगाना प्रारम्भ किया। लोथल से आटा पीसने की पत्थर की चक्की के दो पाट मिले हैं। पेड़-पौधों में पीपल, खजूर, नीम, नीबू एवं केले के साक्ष्य मिले हैं। मुख्य पालतू पशुओं में डीलदार एवं बिना डील वाले बैल, भैंस, गाय, भेड़-बकरी, कुत्ते, गधे, खच्चर और सुअर आदि है। हाथी और घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके हैं। लोथल एवं रंगपुर से घोड़ी की मृण्मूर्तियों के अवशेष मिले हैं। सूरकोटदा से सैन्धव कालीन घोड़े की अस्थिपंजर के अवशेष मिले हैं। कुछ पशु-पक्षियों, जैसे बन्दर, खरगोश, हिरन, मुर्गा, मोर, तोता, उल्लू के अवशेष खिलौनों और मूर्तियों के रूप में मिले हैं। उस समय तांबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था। तांबा राजस्थान के खेतड़ी से, टिन अफ़गानिस्तान से मंगाया जाता था। इस सभ्यता के लोगों द्वारा नाव बनाने के भी साक्ष्य मिले हैं। इस समय बनने वाले सोने, चांदी के आभूषणों के लिए सोना, चांदी सम्भवतः अफ़गानिस्तान से एवं रत्न दक्षिण भारत से मंगाया जाता था। बालाकोट तथा लोथल में सीप उद्योग अपने विकसित अवस्था में था। हड़प्पाई लोग सिंधु सभ्यता के क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु शल्क आदि का व्यापार करते थे, लेकिन वे जो वस्तुएं बनाते थे उसके लिए अपेक्षित कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं था। अतः उन्हें बाह्य देशों से व्यापारिक सम्पर्क स्थापित करना पड़ता था। तैयार माल की खपत की आवश्यकता ने व्यापारिक संबंधो को प्रगाढ़ बनाया। व्यापार में धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे वरन वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही उनके व्यापार आधारित थे। व्यापारिक वस्तुओ की गांठों पर शिल्पियों एवं व्यापारियों द्वारा अपनी मुहर की छाप थी तथा दूसरी ओर भेजे जाने वाले का निशान अंकित था। बाट-माप एवं नाप तोल का व्यापारिक कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है। तौल की इकाई संभवतः 16 अनुपात में थी। मोहनजोदाड़ों से सीप का तथा लोथल से हांथी दांत का निर्मित एक-एक पैमाना मिला है। सैधव सभ्यता के लोग यातायात के रूप में दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी अथवा भैसागाड़ी का उपयोग करते थे। उनकी बैलगाड़ी में प्रयुक्त पहिये ठोस आकार के होते थे। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक मुहर पर अंकित नाव का चित्र एवं लोथल से मिट्टी की खिलौना नाव से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस सभ्यता के लोक आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार में मस्तूल वाली नावों का उपयोग करते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध राजस्थान, अफ़गानिस्तान, ईरान एवं मध्य एशिया के साथ था। हड़प्पा संस्कृति में कही से किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले है। मोहनजोदाड़ो एवं हडप्पा से भारी मात्रा में मिली मिट्टी की मृण्मूर्तियों में से एक स्त्री मृण्मूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है, इससे यह मालूम होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मान कर इसकी पूजा किया करते थे। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है। उसके सिर तन सींग हैं, उसके बाँयी ओर एक गैंडा और भैंसा है तथा दांयी ओर एक हाथी, एक व्याघ्र एवं हिरण है। इस चित्र से ऐसा प्रतीत होता है आज के भगवान शिव की पूजा उस समय ‘पशुपति‘ के रूप में होती रही होगी। हड़प्पा के भगवान शिव की पूजा उस समय के ‘पशुपति‘ कि रूप में होती रही होगी।<br/>गद्यांश के अनुसार, लोथल में किस खेती के अवशेष मिले हैं?<br/>
Question 47 :
<b>निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर इन प्रश्नों के उत्तर दीजिए- </b> <br/> वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सँभालो<br/> चट्टानों की छाती से दूध निकालो।<br/> है रुकी जहाँ भी धार, शिलाएँ तोड़ो,<br/> पीयूष चंद्रमाओं को पकड़ निचोड़ो।<br/> चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे।<br/> योगियों नहीं, विजयी के सदृश्य जियो रे।<br/> छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए<br/> मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।<br/> दो बार नहीं यमराज कंठ धरता<br/> मरता है जो, एक ही बार मरता है।<br/> नत हुए बिना जो अशनि घात सहती है<br/> स्वाधीन जगत में वही जाती रहती है।<br/>कवि किसे छोड़ने की बात करता है?<br/>