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5 विकास का शिर:पदाभिमुख दिशा सिद्धान्त व्याख्या करता है कि विकास, इस प्रकार आगे बढ़ता है, (1) भिन्नों से एकीकृत कार्यों की ओर, (2) सिर से पैर की ओर, (3) ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर, (4) सामान्य से विशिष्ट कार्यों की ओर, 6, भाषा विकास के लिए सबसे संवेदनशील समय निम्नलिखित में से कौन-सा है?, (1) मध्य बचपन का समय, (2) वयस्कावस्था, (3) प्रारम्भिक बचपन का समय, (4) जन्मपूर्व का समय, 7 एक 6 वर्ष की लड़की खेलकूद में असाधारण योग्यता का प्रदर्शन करती है।, उसके माता-पिता दोनों ही खिलाड़ी हैं, उसे नित्य प्रशिक्षण प्राप्त करने, भेजते हैं। सप्ताहांत में उसे प्रशिक्षण देते हैं। बहुत सम्भव है कि उसकी, क्षमताएँ निम्नलिखित दोनों के बीच परस्पर प्रतिक्रिया का परिणाम होंगी, (1) वृद्धि और विकास, (2) स्वास्थ्य और प्रशिक्षण, (3) अनुशासन और पौष्टिकता, (4) आनुवंशिकता और पर्यांवरण, 8 निम्नलिखित में कौन-से समाजीकरण के गौण वाहक हो सकते हैं?, (1) विद्यालय और पास-पड़ोस, (2) विद्यालय और निकटतम परिवार के सदस्य, (3) परिवार और रिश्तेदार, (4) परिवार और पास-पड़ोस, 9 किसी विद्यालय में 360 विद्यार्थी हैं जिनमें से दो-तिहाई लड़कियाँ हैं और, 9., *शेष लड़के हैं लड़कों की संख्या के तीन-चौथाई खिलाड़ी हैं, जो, खिलाड़ी नहीं हैं, उन लड़कों की संख्या है।, (1) 60, (2) 75, (3) 25, (4) 30, 10 हरीश ने एक स्कूटर 49553 में खरीदा। उसने 8076 का नकद, *भुगतान किया तथा शेष रकम को 37 बराबर किस्तों में देने पर राजी, हुआ। प्रत्येक किस्त की राशि है।, (1) 1201, (3) 1021, (2) र 1339, (4) र 1121, narzo Shot on narzo
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16, .भाषा अर्जन में महत्त्वपूर्ण है, [CTET Nov 2012], (1) भाषा के विभिन्न रूपों का प्रयोग, (2) भाषा का व्याकरण, (3) पाठ्य-पुस्तक, (4) भाषा का शिक्षण, 7 बच्चे अपने परिवेश से स्वयं भाषा अर्जित, करते हैं। इसका एक निहितार्थ यह है कि, [CTET Nov 2012], (1) बच्चों को अत्यन्त सरल भाषा का परिवेश, उपलब्ध कराया जाए, (2) बच्चों को बिल्कुल भी भाषा न पढ़ाई जाए, (3) बच्चों को समृद्ध भाषिक परिवेश उपलब्ध, कराया जाए, (4) बच्चों को केवल लक्ष्य भाषा का ही परिवेश, उपलब्ध कराया जाए, प्राथमिक स्तर पर 'भाषा सिखाने' से, 18. तात्पर्य है, [CTET July 2013], (1) भाषा वैज्ञानिक तथ्य स्पष्ट करना, (2) भाषा का व्याकरण सिखाना, (3) उच्च स्तरीय साहित्य पढ़ाना, (4) भाषा का प्रयोग सिखाना, एवं, I9...... से प्राप्त बोलचाल की भाषा के, अनुभवों को लेकर ही विद्यालय आते हैं।, ....., 9 कक्षा 'एक' के बच्चे अपने, [CTET Feb 2014], (1) घर-परिवार, पड़ोसी, (2) घर-परिवार, परिवेश, (3) घर-परिवार, दोस्तों, (4) घर-परिवार, टी वी
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गद्यांश, 'गोदान' प्रेमचन्द जी का एक ऐसा क्रान्तकारी उपन्यास है, जिसमें तत्कालीन, युग अपनी समस्त विकृतियों, विडम्बनाओं एवं सच्चाइयों के साथ चित्रित हो, गया है। उसमें अपने समय का यथार्थ ही चित्रित नहीं हुआ है वरन् तत्कालीन, भारतीय कृषक वर्ग का इतिहास भी संरक्षित हुआ है। प्रेमचन्द जी अपने युग, और उसकी परिस्थितियों से पूर्णतः परिचित थे। इसी कारण छोटे-छोटे प्रसंग, भी उनकी दृष्टि से ओझल नहीं रहे हैं। अपने समाज की यह पहचान और, इसे औपन्यासिक परिस्थितियों से अनुस्यूत कर देने की क्षमता बिरले लोगों में, ही होती है। 'वे यह जानते थे कि एक निष्क्रिय समाज पतन के लिए किस, बिन्दु पर खड़ा है तथा वही समाज सामाजिक जागृति पाकर जब जागता है,, तो वह किस तरह अपने अतीत और वर्तमान के संकटों के बीच भविष्य के, प्रति आशावादी होता है। सामाजिक चेतना के महीन बिन्दुओं को,, सामाजिकों के बीच प्रेमचन्द ने पहचाना था, जिन्होंने उस चेतना को, स्वाभाविक रूप में प्राप्त किया।, उन, डॉ. गंगा प्रसाद विमल इसी प्रसंग में लिखते हैं-उपन्यास कथा, होरी जैसे, साधारण किसान को केन्द्र बनाकर चलती है, किन्तु केन्द्रीय कथा में होरी, मात्र नायक के रूप में ही प्रस्तावित नहीं है, अपितु वह स्वयं एक कथा सत्य, के रूप में स्थापित होता है। होरी की कथा में नगर एवं गाँव दोनों के, अर्थतन्त्र का खुला हिसाब प्रतीत होता है, परन्तु इन आधारों पर गोदान केवल, एक विचारकथा या समस्याओं की कथा नहीं है, बल्कि वह मानवीय संघर्ष, की कथा है। ऐसी कथा जिसमें स्वाधीनता युग की स्वर क्रान्ति की लहरी का, ज्वार भी है, तो सारी लड़ाई का पराजय बोध भी। वस्तुतः पराजय बोध के