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दृढ़ पिण्ड गरतिकी], 7.1, दृढ़ पिण्ड गतिी, (DYNAMICS OF RIGID BODY), 7, СHAPTER, 7.1, घूर्णन गति की विशेषताएँ-, घूर्णन गति में पिण्ड के सभी कण अपने- अपने वृत्ताकार पथों में एक तल, पर गति करते हैं जिनके केन्द्र तल के लम्बवत् घूर्णन अक्ष पर स्थित होते, हैं।, प्रस्तावना (Introduction ), 1., इस अध्याय में हम कणों के निकाय की द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति,, गति का अध्ययन करेंगे। साथ ही विभिन्न नियमित ज्यामितीय आकृति, के पिण्डों जैसे वलय, चकती, बेलन, गोला आदि से संबंधित जड़त्व, आघूरणों तथा इनकी गति का अध्ययन करेंगे।, 7.2, घूर्णन अक्ष पर स्थित सभी कण विरामावस्था में होते हैं ।, जो कण घूर्णन अक्ष के पास होते हैं वे कम त्रिज्या के वृत्तीय पथ में तथा, जो कण घूर्णन अक्ष से दूर होते हैं वे अधिक त्रिज्या के वृत्तीय पथ में गति, करते हैं।, घूर्णन गति द्विविमीय गति है।, घूर्णन गति में सभी कण अपना वृत्तीय पथ समान समय में पूरा करते हैं ।, घूर्णन गति में विभिन्न कण निश्चित समय अन्तराल में भिन्न-भिन्न रेखीय, दूरी तय करते हैं परन्तु प्रत्येक कण का कोणीय विस्थापन समान रहता है।, घूर्णन गति में पिण्ड के सभी कणों का कोणीय वेग समान परन्तु रेखीय, 2., 3., दृढ़ पिण्ड (Rigid Body), वह पिण्ड या कणों का निकाय जिस पर बाहरी साधारण बल या बल, आघूर्ण लगाने पर कणों के मध्य दूरी अपरिवर्तित रहती है, आदर्श, पिण्ड कहलाता है।, 4., दृढ़, 5., (а), प्रकृति में कोई भी पिण्ड पूर्ण रूप से दृढ़ पिण्ड नहीं है क्योंकि सभी, 6., व्यावहारिक पिण्ड बलों के प्रभाव से विकृत हो जाते हैं फिर भी जिन ठोसों, पर बाहरी बल लगाने पर उनमें विकृतीय परिवर्तन बहुत कम होता है,, उसे, 7., पिण्ड कहा जा सकता है।, दृढ़, जैसे-पृथ्वी, बिलियर्ड की गेंद, लोहे का टुकड़ा, स्टील की छड़ आदि।, बोलचालं की भाषा में दृढ़ पिण्ड को केवल पिण्ड या वस्तु कहते हैं।, वेग अलग-अलग होता है।, घूर्णन गति में कणों का रेखीय वेग घूर्णन अक्ष से दूरी पर निर्भर करता है ।, (v c r) जो कण घूर्णन अक्ष के पास होगा उसका रेखीय वेग कम,, कण दूर स्थित होगा उसका रेखीय वेग अधिक होगा।, ৪., (b), जो, (c), किसी ठोस वस्तु का दृढ़ पिण्ड होना आवश्यक नहीं है ।, दृढ़ पिण्ड गति दो प्रकार की होती है-, 1. शुद्ध स्थानान्तरीय गति (Translatory motion)- जब कोई पिण्ड, इस प्रकार गति करता है कि उसका प्रत्येक कण निश्चित समय में समान, दूरी तथा समान दिशा में विस्थापित होता है तो पिण्ड की गति शुद्ध, स्थानान्तरीय गति कहलाती है। शुद्ध स्थानान्तरीय गति में किसी क्षण, विशेष पर पिण्ड का प्रत्येक कण समान वेग से चलता है अर्थात् प्रत्येक, कण एक दूसरे के समान्तर सरल रैखिक मार्ग में गति करता है ।, जैसे-नत तल पर फिसलने वाले गुटके की गति ।, महत्वपूर्ण तथ्य, कण-किसी वस्तु का आकार उसके गति के आयाम के सापेक्ष नगण्य, हो तो उसे कण कहते हैं।, कण का व्यावहारिक दृष्टि से कोई आकार नहीं होता है, जैसे-गति करती हुई फुटबाल ।, कण सिर्फ स्थानान्तरीय गति कर सकता है या फिर बाहर किसी अक्ष के, सापेक्ष घूर्णन गति कर सकता है कण का स्वयं का घूर्णन अक्ष नहीं होता, है।, यदि एक दृढ़ पिण्ड (बेलन) किसी नत तल पर बिना फिसले लुढ़कता, है तो इसमें स्थानान्तरीय गति तो होती है परन्तु सभी कण क्षण विशेष पर, समान वेग से गति नहीं करते हैं अर्थात् पिण्ड शुद्ध स्थानान्तरीय गति नहीं, करता। इसके साथ-साथ पिण्ड घूर्णन गति भी करता है स्थानान्तरीय, गति व घूर्णन गति के संयोजन को व्यापक गति या लोटनी गति कहते हैं।, एक ऐसा दृढ़ पिण्ड जो न तो किसी चूल ( धुरी) पर टिका हो और न ही, किसी रूप में स्थिर हों वह दो प्रकार की गति कर सकता है। शुद्ध, स्थानान्तरीय गति (फिसलन) अथवा स्थानान्तरीय एवं घूर्णन गति का, संयोजन (लुढ़कन) अर्थात् पिण्ड फिसल सकता है या लुढ़क सकता, है।, 5. एक ऐसा पिण्ड जो किसी चूल पर टिका हो या किसी न किसी रूप में, स्थिर हो केवल घूर्णन गति कर सकता है ।, 6. जब किसी दृढ़ पिण्ड के घूर्णन अक्ष की स्थिति में परिवर्तन हो परन्तु, स्थानान्तरण गति नहीं हो तो इस प्रकार की गति को पुरस्सरण गति, (Precession motion) कहते हैं। उदाहरण लट्टू की गति ।, 1., 2., 3., चित्र 7.1, 2. घूर्णन गति (Rotational motion)-ऐसी गति जिसमें कोई दृढ़ पिण्ड, किसी स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन करता है, घूर्णन गति कहलाती है ।, जैसे-छत के पंखे की गति, कुम्हार के चाक की गति।, घूर्णन अक्ष (Rotational axis)- वह अक्ष जिसके परितः पिण्ड घूर्णन, करता है, घूर्णन अक्ष कहलाती है । घूर्णन अक्ष पिण्ड के बाहर या अन्दर, कहीं भी हो सकती है तथा कण का स्वयं का कोई घूर्णन अक्ष नहीं होता है ।, 4., ni, m,, m,, चित्र 7.2