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11101CH02, भारतीय अर्थव्यवस्था, 1950–1990, इस पाठ के अध्ययन के बाद आप, भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यों को जानेंगे;, वर्ष 1950 से 1990 तक विभिन्न क्षेत्रकों, जैसे कृषि और उद्योग में अपनाई गई विकास, की नीतियों को समझेंगे;, एक नियमित अर्थव्यवस्था के गुणों तथा सीमाओं की विवेचना कर सकेंगे।, hot, 2021-22, e republished
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में योजना का मुख्य उद्देश्य, के स्तर को ऊँचा उठाए तथा लोगों के लिए समृद्ध एवं वैविध्यपूर्ण जीवन के नये अवसर उपलब्ध, करायेगी।, भारत, विकास की एक ऐसी प्रक्रिया प्रारंभ करना है जो रहन-सहन, -प्रथम पंचवर्षीय योजना, 2.1 परिचय, से सहानुभूति थी, फिर भी उन्होंने ऐसी आर्थिक, प्रणाली अपनाई जो उनके विचार में समाजवाद, की श्रेष्ठ विशेषताओं से युक्त, किंतु कमियों, से मुक्त थी। इसके अनुसार भारत एक ऐसा, समाजवादी समाज होगा, जिसमें सार्वजनिक, क्षेत्रक एक सशक्त क्षेत्रक होगा, जिसके अंतर्गत, निजी संपत्ति और लोकतंत्र का भी स्थान होगा।, 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत में स्वतंत्रता, का एक नया प्रभात उदित हुआ। अंततः दो सौ, वर्षों के ब्रिटिश शासन के बाद हम अपने भाग्य, के विधाता बन गए। अब राष्ट्र के नव - निर्माण, का कार्य हमारे अपने हाथों में था। स्वतंत्र भारत, के नेताओं को अन्य बातों के साथ-साथ यह भी, तय करना था कि हमारे देश में कौन-सी आर्थिक, प्रणाली सबसे उपयुक्त रहेगी , जो केवल कुछ, लोगों के लिए नहीं बल्कि सर्वजन कल्याण के, लिए कार्य करेगी। विभिन्न प्रकार की आर्थिक, प्रणालियाँ हो सकती हैं (देखें बॉक्स 2.1) , पर, इन्हें कीजिए, विश्व में प्रचलित विभिन्न आर्थिक प्रणालियों, का एक चार्ट बनाइए। पूँजीवादी, समाजवादी, तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देशों की, सूची बनाइए।, किसी कृषि फॉर्म पर अपनी कक्षा के साथ, भ्रमण की योजना बनाइए। कक्षा के सात, समूह बनाएँ और प्रत्येक समूह को एक, विशेष विषय में जानकारी एकत्र करने का, जवाहरलाल नेहरु को समाजवाद का प्रतिमान, सबसे अच्छा लगा। किंतु वे भी भूतपूर्व सोवियत, संघ की उस नीति के पक्षधर नहीं थे, जिसमें, उत्पादन के सभी साधन (खेत और कारखाने), सरकार के स्वामित्व के अंतर्गत थे। कोई निजी, संपत्ति नहीं थी। लोकतंत्र के प्रति वचनबद्ध, काम सौंप दें। उदाहरण के लिए, इस भ्रमण, का उद्देश्य, इसमें खर्च होने वाली धन राशि,, भारत जैसे देश में सरकार के लिए पूर्व सोवियत, संघ की तरह, अपने नागरिकों, के प्रतिमानों तथा अन्य संपत्तियों को परिवर्तित, भू-स्वामित्व, लगने वाला समय तथा संसाधन, साथ जाने, कर पाना संभव नहीं था।, नेहरु तथा स्वतंत्र भारत के अनेक अन्य, नेताओं और चिंतकों ने मिलकर नव-स्वतंत्र, वाले ऐसे व्यक्ति जिनसे संपर्क स्थापित, करना है, भ्रमण के स्थानों के नाम, पूछे, जाने वाले संभावित प्रश्न आदि। अपने शिक्षक, भारत के लिए पूँजीवाद तथा समाजवाद के, अतिवादी व्याख्या के किसी विकल्प की खोज, की। बुनियादी तौर पर यद्यपि उन्हें समाजवाद, की सहायता से इन विशिष्ट उद्देश्यों का, संग्रह कीजिए तथा ऐसे कृषि फार्म के, भ्रमण की सफलता के दीर्घकालिक उद्देश्यों, से उनकी तुलना कीजिए ।, भारतीय अर्थव्यवस्था 1950-1990, 17, 2021-22
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बॉक्स 2.1 आर्थिक प्रणालियों के प्रकार, प्रत्येक समाज को तीन प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं:, देश में किन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए ?, वस्तुएँ और सेवाएँ किस प्रकार उत्पादित की जाएँ? उत्पादक इस कार्य में मानव श्रम का अधिक प्रयोग, करे अथवा पूँजी (मशीनों) का?, उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का विभिन्न व्यक्तियों के बीच किस प्रकार वितरण किया जाना चाहिए?, इन सभी प्रश्नों का एक उत्तर तो माँग और पूर्ति का बाज़ार की शक्तियों पर निर्भर करता है । बाज़ार, अर्थव्यवस्था में, जिसे पूँजीवादी अर्थव्यवस्था भी कहते हैं, उन्हीं उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन होता है, जिनकी बाज़ार में माँग है। इसमें, वही वस्तुएँ उत्पादित की जाती हैं जिन्हें देश के घरेलू या विदेशी बाज़ारों, में सलाभ बेचा जा सके। यदि कारों की माँग है तो कारों का उत्पादन होगा और साइकिलों की माँग है।, तो साइकिलों का उत्पादन होगा। यदि श्रम, पूँजी की अपेक्षा सस्ता है तो अधिक श्रम प्रधान विधियों का, प्रयोग होगा और यदि श्रम की अपेक्षा पूँजी सस्ती है, तो उत्पादन की अधिक पूँजी प्रधान विधियों का, प्रयोग होगा। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं का विभिन्न व्यक्तियों के बीच वितरण उनकी, आवश्यकताओं के अनुसार नहीं होता। अधिकांश विभाजन इस आधार पर होता है कि व्यक्तियों की, क्रय - क्षमता कितनी है और वे किन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने की क्षमता रखते हैं । अभिप्राय यह, है कि खरीदने के लिए जेब में रुपये होने चाहिए। कम कीमत पर गरीबों के लिए घर आवश्यक है किंतु, इसकी गणना बाजार माँग को ध्यान में रखकर नहीं की जानी चाहिए क्योंकि माँग के अनुसार गरीबों की, क्रयशक्ति नहीं है। परिणामस्वरूप इस वस्तु की उत्पादन और पूर्ति बाजार शक्ति के, है। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को ऐसी व्यवस्था पसंद नहीं थी, क्योंकि ऐसी व्यवस्था को, अपनाने से हमारे देश के अधिकांश लोगों को अपनी स्थिति सुधारने का अवसर ही नहीं मिल पाता।, समाजवादी समाज इन तीनों प्रश्नों के उत्तर पूर्णतया भिन्न तरीके से देता है। समाजवादी समाज में, सरकार ही यह निर्णय लेती है कि समाज की आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न वस्तुओं का उत्पादन किया, जाए। यह माना जाता है कि सरकार यह जानती है कि देश के लोगों के हित में क्या है, इसीलिए लोगों, की वैयक्तिक इच्छाओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। सरकार ही यह निर्णय करती है कि वस्तुओं, का उत्पादन तथा वितरण किस प्रकार किया जाए। सिद्धांतत: यह माना जाता है कि समाजवाद में वितरण, लोगों की आवश्यकता के आधार पर होता है, उनकी क्रय क्षमता के आधार पर नहीं। इसके विपरीत एक, समाजवादी राष्ट्र अपने सभी नागरिकों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभ कराता है । समाजवादी व्यवस्था, में निजी संपत्ति का कोई स्थान नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वस्तु राज्य की होती है। उदाहरण के लिए चीन, और क्यूबा में अधिकतर आर्थिक गतिविधियाँ सामाजिक सिद्धांत द्वारा निर्देशित होती हैं।, अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ मिश्रित अर्थव्यवस्थाएँ हैं, अर्थात् सरकार तथा बाज़ार एक साथ इन तीनों, प्रश्नों के उत्तर देते हैं कि क्या उत्पादन किया जाए, किस प्रकार उत्पादन हो तथा किस प्रकार वितरण, किया जाए। मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं में बाज़ार उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ कराता है, जिसका, वह अच्छा उत्पादन कर सकता है तथा सरकार उन आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ कराती है,, जिन्हें बाज़ार सुलभ कराने में विफल रहता है।, अनुसार, नहीं हो सकती, 18, भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, 2021-22
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बॉक्स 2.2 योजना क्या है?, योजना इसकी व्याख्या करती है कि किसी देश के संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए ।, योजना के कुछ सामान्य तथा कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं, जिनको एक निर्दिष्ट समयावधि में प्राप्त करना, होता है। भारत में योजनाएँ पाँच वर्ष की अवधि की होती थी और इसे पंचवर्षीय योजनाएँ कहा जाता, था (यह शब्दावली राष्ट्रीय नियोजन में अग्रणी देश पूर्व सोवियत संघ से ही ली गई थी)। हमारे योजना, के वर्ष 2017 तक के प्रलेखों में केवल पाँच वर्ष की योजना अवधि में प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों, का ही उल्लेख नहीं किया गया, अपितु उनमें आगामी बीस वर्षों में प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों का, भी उल्लेख होता है। इस दीर्घकालिक योजना को परिप्रेक्ष्यात्मक योजना कहते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं, द्वारा परिप्रेक्ष्यात्मक योजनाओं के लिए आधार प्राप्त होने की अपेक्षा की जाती है।, यह तो संभव नहीं होगा कि सभी योजनाओं में उसके सभी लक्ष्यों को एक समान महत्त्व दिया जाए।, वस्तुत: विभिन्न लक्ष्यों में कुछ अंतर्द्व्व भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि प्रौद्योगिकी श्रम की, आवश्यकता को कम करती हैं तो आधुनिक प्रौद्योगिकी के शुरू करने के लक्ष्य तथा रोजगार बढ़ाने के लक्ष्य, में विरोध हो सकता है। आयोजकों को इस प्रकार के विरोधों का संतुलन करना पड़ता है- यह कार्य इतना, सहज नहीं है। भारत की विभिन्न योजनाओं में अलग- अलग लक्ष्यों पर बल दिया गया है।, भारत की पंचवर्षीय योजनाएँ यह नहीं बतातीं थी कि प्रत्येक वस्तु और सेवा का कितना उत्पादन, किया जाएगा। यह न तो संभव है और न ही आवश्यक ( पूर्व सोवियत संघ ने यह कार्य करने का प्रयास, किया था और वह पूरी तरह विफल रहा)। अत: इतना ही पर्याप्त है कि योजनाएँ उन्हीं क्षेत्रकों के विषय, में स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करें जिनमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो, जैसे विद्युत् उत्पादन और सिंचाई आदि।, शेष को बाज़ार पर छोड़ दिया जाना ही अधिक श्रेयस्कर रहता है ।, सरकार अर्थव्यवस्था के लिए योजना बनायेगी, (देखें बॉक्स 2.2)। निजी क्षेत्रक को भी, योजना प्रयास का एक अंग बनने के लिए, प्रोत्साहित किया जायेगा।, औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1948 तथा भारतीय, संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों का भी यही, दृष्टिकोण है। वर्ष 1950 में प्रधानमंत्री की, अध्यक्षता में योजना आयोग की स्थापना की, गई। इस प्रकार पंचवर्षीय योजनाओं के युग का, इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक योजना में, इन लक्ष्यों को एक समान महत्त्व दिया गया है।, सीमित संसाधनों के कारण प्रत्येक योजना में ऐसे, लक्ष्यों का चयन करना पड़ता है, जिनको, प्राथमिकता दी जानी है। हाँ, योजनाकारों को यह, सुनिश्चित करना होता है कि जहाँ तक संभव, हो, चारों उद्देश्यों में कोई अंतर्विरोध न हो।, आइए, योजना के इन लक्ष्यों के विषय में, विस्तार से जानने का प्रयास करें।, सूत्रपात हुआ।, संवृद्धिः इसका अर्थ है देश में वस्तुओं और, सेवाओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि। इसका, अभिप्राय उत्पादक पूँजी के अधिक भंडार या, चाहिए। पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य थे: संवृद्धि, परिवहन, बैंकिग आदि सहायक सेवाओं का, विस्तार या उत्पादक पूँजी तथा सेवाओं की, 2.2 पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य, किसी योजना के स्पष्टत: निर्दिष्ट लक्ष्य होने, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता।, भारतीय अर्थव्यवस्था 1950-1990, 19, 2021-22
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बॉक्स 2.3 महालनोबिसः भारतीय योजनाओं के निर्माता, भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में अनेक प्रसिद्ध विचारकों का योगदान रहा है । उनमें, सांख्यिकीविद् प्रशांतचन्द्र महालनोबिस का नाम उल्लेखनीय है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना का, सामान्यत: विकासात्मक योजना में एक अति महत्वपूर्ण योगदान है। योजना का काम सही मायने में, द्वितीय पंचवर्षीय योजना से प्रारंभ हुआ। इसमें भारतीय योजना के लक्ष्यों से संबंधित आधारिक, विचार दिये गये हैं। यह योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी । इस अर्थ में, उन्हें भारतीय, योजना का निर्माता माना जा सकता है।, में, महालनोबिस का जन्म 1893 में कलकत्ता (कोलकाता), हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता (कोलकाता), तथा सेंट्रल युनिवर्सिटी, इंग्लैंड में हुई। सांख्यिकी विषय में उनके, योगदान के कारण उन्हें अं्तराष्ट्रीय ख्याति मिली। 1945 में उन्हें, ब्रिटेन की एक सोसाइटी का फेलो (सदस्य ) बनाया गया । यह, वैज्ञानिकों का एक सर्वाधिक प्रतिष्ठित संगठन है%3B जिसका सदस्य, केवल उत्कृष्ट वैज्ञानिकों को ही बनाया जाता है।, महालनोबिस ने कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान, (आई.एस.आई) स्थापना की तथा 'सांख्य' नामक एक जर्नल, निकाला, जो आज भी सांख्यिकीविदों के लिये परस्पर विचार-विमर्श, के लिये एक प्रतिष्ठित मंच बना हुआ है। आज भी आई. एस. आई., तथा सांख्य दोनों को ही समस्त विश्व में सांख्यिकीविदों और, अर्थशास्त्रियों द्वारा अतिसम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।, द्वितीय पंचवर्षीय योजना के दौरान महालनोबिस ने भारत के आर्थिक विकास के लिए भारत, तथा विदेशों से प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों को आमंत्रित किये जाने की सलाह दी। कालांतर में इनमें, से कुछ अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार मिला। यह इस बात को दर्शाता है कि उन्हें प्रतिभाशाली, व्यक्तियों की पहचान थी। महालनोबिस द्वारा आमंत्रित किये गये अर्थशास्त्रियों में वे लोग भी थे,, जो द्वितीय पंचवर्षीय योजना के समाजवादी सिद्धांतों के कटु आलोचक थे। दूसरे शब्दों में , वह अपने, आलोचकों को सुनने के भी इच्छुक थे। यह उनकी महान विद्वता का द्योतक है ।, आज अनेक अर्थशास्त्री महालनोबिस के योजना संबंधी दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं । परंतु, भारत को आर्थिक प्रगति के पथ पर अग्रसर करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिये उन्हें सदैव, स्मरण किया जायेगा। सांख्यिकीविद् सांख्यिकीय सिद्धांत में उनके योगदान से लाभ उठाते रहेंगे।, स्त्रोत: सुखमय चक्रवर्ती महालनोबिस, प्रशांतचन्द्र इन जोन ईटवैल इट.एल. दी न्यू पाल्ग्रेव डिक्शनरी,, इकॉनामिक डेवलपमेंट, डब्ल्यू.डब्ल्यू, नार्टन न्यूयार्क एंड लंदन।, 20, भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, 2021-22, pay