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मानव भूगोल के मूल सिद्धांत, , मानव भूगोल में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों के अध्ययन पर प्रमुख बल दिया जाता है प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तथ्य, गतिशील एवं आपस में एक दूसरे से संबंधित होते हैं मानव भूगोल के अध्ययन केंद्र है वह स्वयं मानव है जो एक सक्रिय, विभिन्न सांस्कृतिक क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक तत्वों को प्रभावित करता है, , , , मानव भूगोल में समायोजन के अध्ययन हेतु निम्नांकित इन सिद्धांतों पर अधिक बल दिया गया है, 1 क्रियाशीलता का सिद्धांत, , 2 पार्थिव एकता का सिद्धांत, , 3 वातावरण समायोजन का सिद्धांत, , 1 क्रियाशीलता तथा परिवर्तन का सिद्धांत, , मनुष्य के चारों ओर विद्यमान भौतिक सांस्कृतिक वातावरण के जो सभी तथ्य परिवर्तनशील हैं उनमें प्रत्येक का कारक में, सांस्कृतिक वातावरण के सभी तथ्य परिवर्तनशील होते हैं प्रत्येक कार्य की प्रतिक्षण कुछ न कुछ अंतर या परिवर्तन होता रहता, है जिसमें स्वपोथी एवं पृथ्वी का विद्यमान सभी तत्व जड़ चेतन प्राकृतिक कारक सांस्कृतिक आदि सभी तत्व समय पर, परिवर्तन होते रहते हैं जिससे हमारे चारों ओर की जितनी भी वस्तुएं हैं वे सभी परिवर्तनशील है, , , , फ्रांसीसी संभवत भूगोलवेत्ता जीन ब्रूंस के अनुसार प्रत्येक वस्तु या तो बढ़ रही है या घट रही है वास्तव में कुछ भी गति रहित, या स्थाई नहीं है क्योंकि भूगोल में भौतिक तथा मानवीय तक तथ्य हैं निरंतर परिवर्तनशील दृष्टि से उनका अध्ययन किया जाना, चाहिए, , , , , , प्रकृति में प्रत्येक जीव तथा पदार्थ का एक जीवनकाल होता है प्रत्येक तत्व पति विकास एवं समाप्ति होती है जिससे उन तत्वों, का विशेष तथा जीवन चक्र में भौतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों की उत्पत्ति बाल्यवस्था प्रौढ़ावस्था जीर्ण अवस्था एवं अंत में, समाप्ति का चक्र का एक क्षण प्रतिक्षण चलता रहता है, , समय प्रतिनिधि परिवर्तनशील होती रहती है जिस पर हम पिघल कर सागरों में जाते रहते हैं समय जलवायु भी परिवर्तित होती, रहती है जलवायु की विभिन्न घटक तापमान आद्द्रता वर्षा हवा वायुदाब सभी क्षण प्रतिक्षण बदलते रहते हैं इस पृथ्वी पर हम, रहते हैं वह पृथ्वी से गतिशील है तथा पर्यावरण अर्थात भौतिक सांस्कृतिक कार्यक्रम गतिशील एवं परिवर्तनशील है, , , , , , अतः इस प्रकार कहा जा सकता है कि भौतिक एवं सांस्कृतिक की क्रियाकलापो की प्रकृति से स्पष्ट है कि परिवर्तन प्रकृति का, नियम है निम्नलिखित कारक है, , 1 भौतिक शक्तियां, , पृथ्वी के ग्रह से संबंध, पृथ्वी की आंतरिक शक्तियां, सौर शक्ति, , गुरुत्वाकर्षण शक्ति, , 2 जैविक शक्तियां, , 3 मानव शक्ति
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1 भौतिक या प्राकृतिक शक्तियां, , स्थलीय रूप में स्थिर प्रतीत होने वाला पृथ्वी तल स्तर नहीं है वह निरंतर परिवर्तनशील है जिन्हें आंतरिक शक्तियां विषम, बनाती हैं तथा बाह्य शक्तियां अनाच्छादन का कारक अर्थात समतल बनाने में सक्रिय रहती है इन सब चीजों में कुछ धीमी गति, से सक्रिय रहते हैं तथा कुछ तीव्र से जैसे पर्वत निर्माण कार्य के लिए जबकि कुछ शक्तियां आकस्मिक होती है जैसे ज्वालामुखी, एवं भूकंप जो कम समय में ही भूतल पर परिवर्तन दृष्टिगत होते रहते हैं, , # पृथ्वी की ग्रही संबंध, , अफ्रीकी सौर परिवार में नौ ग्रहों की तरह ही प्रतिनिधि ग्रह है जो अपने अक्ष के चारों ओर घूमने की साथ-साथ सूर्य के चारों, ओर भी परिक्रमण करते हैं जिसके कारण पृथ्वी का दिन रात को होना,ऋतु का बनाना आदि, , 8 पृथ्वी की आंतरिक शक्तियां, , , , आंतरिक शक्तियां पृथ्वी के धरातल विभाग पर दो प्रकार से प्रकट होती है, , 9 महादेश जनक बल जो धीरे-धीरे कई वर्षों बाद प्रकट होते हैं जैसे पर्वतों का निर्माण किसी स्थल भाग का ऊपर उठना या, नीचे धसना यह क्रियाएं धीरे-धीरे कार्य करते हैं जो लाखों वर्षों बाद प्रकट होती है, , ० आंतरिक शक्तियां वे शक्तियां जो अस्मिक एवं अचानक प्रकट होती हैं कुछ समय के अंदर ही बहुत ज्यादा परिवर्तन हो जाता, है वे शक्तियां हैं ज्वालामुखी एवं भूकंप, , , , 3 सौर शक्ति - पृथ्वी के धरातल एवं वायुमंडल में होने वाली विभिन्न परिवर्तनों का प्रमुख कारक सूर्य है सूर्य के कारण पृथ्वी, के धरातल पर विभिन्न तत्वों के क्षण प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है तापमान, वर्षा, गर्मी , ओस, पाला,, कोहरा ,तुषार ,हिमपात वाष्पीकरण ,बादलों का बनना ,हवा, आंधी ,तूफान आदि का चलना, , , , , , 4 गुरुत्वाकर्षण शक्ति, , पृथ्वी की सतह तथा वायुमंडल में स्थित विभिन्न तत्वों को पृथ्वी द्वारा अपनी ओर खींचने की शक्ति को ग्रुप लक्ष्मण शक्ति कहते, हैं पृथ्वी के धरातल पर स्थित प्रत्येक वस्तु उसी शक्ति के कारण संतुलित अवस्था में पाई जाती हैं पति के धरातल पर या, वायुमंडल जलमंडल में रहने वाले प्रत्येक जीव गुरुत्वाकर्षण शक्ति द्वारा संचालित एवं नियंत्रित होते हैं ऑक्सीजन गैस जो, मनुष्य के जीवन का आधार है वह विपक्ष में शक्ति के कारण ही स्थल सतह पर पाई जाती है, , (2 )जैविक शक्तियां, , जैविक कारकों के अंतर्गत पर्यावरण में पेड़ पौधे एवं जीव जंतु पृथ्वी के धरातल पर कई प्रकार की क्रियाओं का संचालन करते, हैं पेड़ पौधे अपक्षय एवं अपरदन की क्रिया को शिथिल मिट्टी का क्षरण करते हैं तथा पेड़ पौधों की जड़ों के द्वारा मिट्टी में दरारें, पड़ जाती हैं जिसके कारण मिट्टी असंगठित होकर क्षति होती रहती हैं धरातल पर पाए जाने वाले जीव जंतु अपने आवास हेतु, मिट्टी में छोटे-छोटे गुफाएं बनाकर रहते हैं तथा जिसके कारण मिट्टी ए संगठित होकर प्रतीत होती रहती है अतः क्षण प्रतिक्षण, पेड़ पौधे एवं जीव जंतु पृथ्वी के धरातल विभाग में परिवर्तन करते रहते हैं, , , , , , , , ४ मानव शक्ति इसमें एक भौगोलिक कारक है जो हमेशा अपनी विभिन्न क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक वातावरण को परिवर्तित, कर कर सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण करता है मनुष्य अपनी बुद्धि कौशल और अपने विचार शील क्रिया के द्वारा, प्राकृतिक वातावरण में अनेक परिवर्तन करने की कोशिश करता रहता है मनुष्य अपनी क्रियाशीलता के आधार पर दोनों को, या पेड़ पौधों को काटकर फसल का उपजाना, उबड़ खाबड़ धरातल को समतल बनाना, सड़कों का निर्माण ,नदियों के जल के, उपयोग के लिए बांध बनाना, नहर बनाना तथा बड़े बड़े नगरों का निर्माण, महानगरों का निर्माण, पुल बनाना ऐसे कई प्रकार की, क्रिया करता रहता है मनुष्य के परिवर्तनशील भौगोलिक कारक है जो समय समय प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में
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परिवर्तन करता रहता है, , (2) पार्थिव एकता या अंतर्सबंध का सिद्धांत, , प्रत्येक तत्व में एक दूसरे से संबंधित और एक दूसरे पर निर्भर हैं प्रत्येक भौगोलिक कार्य का स्वतंत्र एवं पृथक अस्तित्व संभव, है भौगोलिक कारक एक दूसरे से प्रभावित होता रहता है तथा स्वयं भी अन्य तत्वों की सम्मिलित प्रभाव के कारण किसी, , विशेष क्षेत्र का वास्तविक भू दृश्य विकसित होता है मानव भूगोल के तथ्यों का विकास किसी न किसी कारक की अंतर संबंधों, का ही परिणाम है होता है, , , , मानव भूगोल में अन्य कारकों को नियंत्रित एवं प्रभावित किया करता है मानो किसी भी भौगोलिक कारक का विश्लेषण करते, समय उन कारकों का अवश्य धन करता है जो उसे प्रभावित करते हैं जैसे उस प्रदेश में निवास करने वाली जाति के रहन सहन, तथा जीवन वह खानपान और उसकी वेशभूषा तथा सामाजिक व्यवस्था अधिक उसकी भौगोलिक दशाओं को प्रभावित करता, है उसी मनुष्य अपने विवेक और तकनीकी के आधार पर भौगोलिक कार्य को प्रभावित करता है, , , , , , जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रेड जैन ने अपनी पुस्तक एंग्रोपॉजियोग्राफी में पार्थिव एकता के सिद्धांत पर सर्वाधिक बल दिया, , रेड जेल के अनुसार मानव भूगोल की दृश्य पार्थिव एकता से संबंधित हैं और केवल उसी के द्वारा समझाए जा सकते हैं प्रत्येक, स्थान पर भौगोलिक दृश्य वहां के वातावरण से संबंधित है और वातावरण स्वयं भौतिक दशाओं का योग है रे अजय ने लिखा है, कि भूपटल पर मानवीय क्रियाओं का अध्ययन भौगोलिक वातावरण की संदर्भ में किया जाता है इस अध्ययन में पृथ्वी की, विभिन्न तत्वों के पारस्परिक संबंधों पर बल दिया जाता है जिसमें भौगोलिक कारक के दर्शन होते हैं या भौगोलिक एकता के, दर्शन होते हैं, , , , , , रेटजेल की शिष्य कुमारी सैंपल ने अपनी पुस्तक में पार्थिव एकता के सिद्धांत को महत्वपूर्ण स्थान दिया है उसके अनुसार, मानव की विभिन्न क्रियाकलापों का पद एवं वैज्ञानिक ढंग से उस पृथ्वी के बिना नहीं किया जा सकता जिस पर मनुष्य खेती, करता है तथा यात्राएं करता है एवं सामुद्रिक व्यापार करता है, , हंबोल्ट ने इस सिद्धांत का पक्ष लेते हुए कहा कि पृथ्वी के धरातल पर निर्मित किसी भी दूरदर्शी के निर्माण में वनस्पति का, महत्वपूर्ण स्थान होता है हंबोल्ट की पुस्तक कॉसमॉस में पृथ्वी को एक जैविक तथा अविभक्त इकाई माना है, , , , , , बर्गहोस ने अपनी पुस्तक फिजिकल एटलस में जलवायु और वनस्पति के संबंधों को स्पष्ट किया है, , विडाल डी ला ब्लांस एवं जींस ब्रूंस ने इस बात पर अधिक बल दिया कि किसी स्थान विशेष में निवास करने वाले समस्त, जिम्मेदारी वनस्पति जीव जंतु तथा मनुष्य आदि में पारस्परिक संबंध होता है, , फ्रांस ने अपनी पुस्तक एजेंट में कहा कि एक देश के राजनीतिक मानचित्र का अध्ययन वहां की प्राकृतिक मानचित्र के साथ, किया जाता है मानचित्र एक दूसरे को स्पष्ट करते हैं और इनके पूरक मानचित्र रेखाचित्र होते हैं, , मानव भूगोल में संपूर्ण भौगोलिक प्रकृति में मनुष्य की प्रमुख विचार पार्थिव एकता का ही है पृथ्वी के सभी भाग किसी न, किसी रूप से जुड़े हुए हैं जहां पर ही कठिनाई निश्चित क्रम का अनुसरण करते हैं मानव भूगोल की परी कथाएं भी पार्थिव, एकता से संबंधित हैं, , इसी पर जीन ब्रूंस ने कहा कि विभिन्न शक्तियां एक दूसरे पर केवल निश्चित दिशाओं में ही कार्य नहीं करती और नहीं भी केवल, कुछ निश्चित दरअसल आंतों में पारस्परिक क्रिया का प्रयास करती है बल्कि विभिन्न भाषाओं की अंतहीन अंतर संबंधों के
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कारण सभी शक्तियां घनिष्ठ रूप से बंधी हुई हैं, , , , पार्थिव एकता का सिद्धांत एक साथ शोध एवं विश्वसनीय सकते हैं जो प्राचीन काल में विद्यमान रहा पृथ्वी पर विद्यमान विभिन्न, जलवायु की दशा सूर्यताप के द्वारा प्रमाणित होते रहते हैं जनसंख्या वितरण तथा घनत्व प्राकृतिक कारकों पर निर्भर है नदियों, द्वारा निक्षेप की की गई मिट्टी में निर्मित मैदानों में उपजाऊ मिट्टी के कारण जनसंख्या घनत्व अधिक स्थितियां पाई जाती हैं यदि, जीविकोपार्जन की सुविधाएं विद्यमान हो तो मनुष्य जलवायु की विषम परिस्थितियों में भी अपने निवास स्थान बना लेता है, , ऑस्ट्रेलिया की रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित कालगुर्ली एवं कुलगार्डी में सोने की खाने होने के कारण वहां लोग बस गए हैं अतः, पार्थिव एकता के सिद्धांत का यह तथ्य है कि पृथ्वी के धरातल एवं वायुमंडल में विद्यमान प्रतिक जेविक एवं है जैविक तत्व को, भौगोलिक वातावरण का कारक है, , , , , , भारतीय एकता के सिद्धांत का स्पष्टीकरण प्रकृति में मिलने वाली विभिन्न प्रकार की दशाओं में होता है, , , , पृथ्वी पर हम स्थल मंडल तथा वायुमंडल वायुमंडल तीनों में मिलने वाली सामान्य दशकों से जुड़े हैं जिनमें जीवन के विकास के, लिए अनुकूल वातावरण मिलता है इस सम्मिलित परिमंडल को जीवमंडल कहते हैं, , , , वायुमंडल की विभिन्न तत्व परस्पर संबंधित है सूर्य ताप की पृथ्वी तल पर विश्व वितरण से ही विभिन्न वायुदाब की पेटियां, अद्भुत होती है पृथ्वी तल पर वायुदाब की पेट में के द्वारा ही पवनों की दिशा एवं वेग नियंत्रित होते हैं तथा इनकी मात्रा एवं, वितरण भी प्रभावित होती है तब से महासागरीय जल स्थल पर तथा यहां सी नदियों द्वारा पुनः सक्रिय महासागर में पहुंचता है, , पृथ्वी तल पर पर्वत , पठार, झीले, नदियां पृथक इकाई के रूप में दृष्टिगत होती हैं लेकिन पर्वत और पठार उसे नदिया, निकलकर प्रदान करती हुई पृथ्वी तल की निम्नवर्ती भागों के तल में वृद्धि करते हैं कालांतर में हिमालय जैसे गगनचुंबी पर्वतीय, भाग अपरदित होकर अरावली जैसे सदृश्य हो जाते हैं तथा इनकी तलछट टेथीज सागर की शेष खाई को भरकर गंगा सिंधु के, मैदान का निर्माण कर देते हैं इस प्रकार झील भी एकाकि ना होकर नदियों द्वारा सागरो से जुड़े हैं कनाडा की सस्केचवान नदी, रॉकी पर्वत से निकलकर हडसन की खाड़ी में गिरती है इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका की सेंट लॉरेंस नदी पांच महान जिलों के, समूह की दूरी तथा तथा ओंटेरियो झीलों से होती हुई अटलांटिक महासागर तथा विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा जलप्रपात बनाती है, , , , , , , , (3) वातावरण समायोजन का सिद्धांत, , पृथ्वी के धरातल की विभिन्न भागों का अध्ययन भूगोल का प्रमुख उद्देश्य है मानव भूगोल में मानव की केंद्रीय स्थिति मानकर, धरातल की परिवर्तनशील स्वरूप का अध्ययन एवं व्याख्या की जाती है इसलिए प्राकृतिक वातावरण की विभिन्न तत्व जैसे, भूमि की बनावट तथा जलवायु की कार्य आदि मनुष्य की आर्थिक तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के तत्व रहनसहन खान-पान वेशभूषा तथा रीति-रिवाज आदि तत्व भी मनुष्य की विभिन्न क्रियाओं को प्रभावित करते हैं, , , , , , सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक वातावरण की विभिन्न तत्वों के द्वारा प्रभावित होने के साथ-साथ मनुष्य अपनी बुद्धि कौशल और, तकनीकी ज्ञान के आधार पर विभिन्न कारकों के साथ अनुकूलन करता है तथा विभिन्न परिस्थितियों को अपने जीवन निर्वाह के, अनुसार रूपांतरित करने की चेष्टा करता है इस अनुकूलन एवं रूपांतरण करने की प्रक्रिया को ही वातावरण समायोजन कहते, , हैं, , पृथ्वी का ऊपरी भाग जिसे हम वह पर पट्टी कहते हैं वह अनेक विविधताओं से युक्त है धरातल पर कहीं पर्वत हैं पठार मैदान, तथा झील महासागर गहरी खाई या तथा विविधता ही पाए जाते हैं इस प्रकार जल एवं स्थल के वितरण में भी विषमता पाई, जाती है उत्तरी गोलार्ध में स्थल एवं दक्षिण गोलार्ध में जल की अधिकता पाई जाती है जलवायु के कारक तापमान, वर्षा,पाला,, ओस तथा वायुदाब आदि का वितरण धरातल पर क्षमता युक्त पाया जाता है सांस्कृतिक वातावरण के तत्व रहन-सहन, खानपान रीति रिवाज अनेक प्रकार की क्रिया भूतल पर अधिक पाई जाती हैं
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वातावरण के साथ समायोजन करने के लिए मनुष्य को दूरियों का अनुसरण करना पड़ता है, , अनुकूलन, रूपांतरण या परिवर्तन, , , , मानव भूगोल में आंतरिक अनुकूलन के अंतर्गत मनुष्य तोरण के अनुसार मनुष्य वातावरण में बोलचाल खान-पान रहन-सहन, आदि के अनुसार अपने आप को बदलता है तथा कोई मनुष्य लंबे समय तक एक ही प्रकार के वातावरण में रहता है तू, जलवायु की विभिन्न कारकों के आधार पर उसकी शारीरिक वर्ण में भी परिवर्तन हो जाता है, , , , , , मनुष्य द्वारा प्राकृतिक एवं संस्कृति वातावरण में परिवर्तन अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए अपनी, शक्तियों तथा दोषियों के अनुसार अनुसरण करता है मनुष्य अनूप भूमि में खाद्य डालकर अपने ज्ञान के आधार पर उसे, उपजाऊ बना लेता है वातावरण समायोजन में सार्वभौमिकता समानता नहीं होती | मानव भूगोल के अंतर्गत धरातलीय, उच्चावच एवं जलवायु के अनुसार क्रियाशील मानव समूह है टुंड्रा प्रदेश की सीट जलवायु में रहने वाले लोग खाल एवं समूह, की वस्त्र पहनते हैं जबकि भूमध्य रेखीय कांगो बेसिन की पिग्मी जनजाति अर्धनग्न अवस्था में रहते हैं विश्व स्तर पर होने के, साथ ही प्रादेशिक स्तर पर भी इनका उदाहरण मिलता है भारत के उत्तर में स्थित जम्मू एंड कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में, ग्रीष्म काल में भी लोग ऊनी कपड़े पहनते हैं जबकि इसी समय दक्षिण भारत में भीषण गर्मी पड़ती है तथा वातावरण, समायोजन की दूसरी पक्ष में मानव समुदाय द्वारा वातावरण को परिवर्तित करने संबंधी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है