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(8) इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् छात्राध्यापक ये जान सकेगें कोई आकलन असफल हो जाता है तो, कौन सा दूसरा आंकलन सफल हो पाएगा |, , शिक्षा के क्षेत्र में निदान का वही अर्थ है, जो चिकित्सा विज्ञान में है | यहाँ शिक्षक अपनी शैक्षिक, दृष्टि से कमजोर छात्रों की कठिनाइयों एवं कमजोरियों का पता विशेष तकनीकी विधियों द्वारा करता है | अध्यापक, अपनी कक्षा में कमजोर छात्रों की कमियों को ज्ञात करते हैं, उनकी स्थिति को देखते हैं, उनके कारणों का गहनता से, विश्लेषण करते हैं तथा उन कारणों को दूर कर के उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करते हैं |, , निदानात्मक परीक्षण एक ऐसा शैक्षिक उपादान है, जिसके आधार पर पठित विषय-वस्तु की सूक्ष्म-इकाई में, बालक की विशिष्टता एवं कमियाँ परिलक्षित होती हैं | नैदानिक परीक्षण से यह पता लगता है कि पाठ्य विषय-वस्तु, का कौन-सा भाग किस मात्रा में सीखा गया है तथा कितना भाग छात्र सीखने में असमर्थ रहा है | अतः नैदानिक, परीक्षणों से छात्रों की विभिन्न विषयों में कमजोरी या कमियों का निर्धारण किया जाता है |, , निदानात्मक परीक्षण के अर्थ को योकम और सिम्पसन (/०७४॥ ०10 97॥/2501) ने स्पष्ट किया है,, “निवानात्मक परीक्षण वह साधन हैं जो शिक्षा वैज्ञानिकों के द्वारा छात्रों की कठिनाइयों को जात करने और, यथासम्भवउन कठिनाइयों के कारणों को व्यक्त करने के लिए निर्मित किया गया हैं| ", , निदानात्मक परीक्षण किसी विषय में बालक की विशिष्ट क्षमताओं एवं कमजोरियों का पता लगाते हैं तथा उनके, कारणों को भी व्यक्त करते हैं |, , मैंजिल ने निदानात्मक परीक्षण की परिभाषा देते हुए कहा है कि 'निदानात्मक परीक्षणों का कार्य छात्रों की उनकी, , योग्यता के अनुसार वर्गीकरण करना नहीं हैं; बल्कि यह किसी विवूयालयी विष्य में कमजोर छात्रों की कठिनाइयों का, पता लगाता है; जिससेउस छात्र के लिए उपचारात्मक थिक्षण की व्यवस्था की जा सकें |", , आज के वर्तमान युग में शिक्षा का मनोवैज्ञानिकीकरण किया जा रहा है । आज की शिक्षण प्रक्रिया में, बालक की रूचि, मानसिक योग्यता, व्यक्तित्व आदि को विशेष महत्व दिया जा रहा है। हम व्यक्तिगत, शिक्षण (॥101४४७०॥२९० 1९३८॥॥४) को सामूहिक शिक्षण (6०५7 1९३८०४॥४) की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली एवं, उपयोगी मानते हैं । वास्तव में, व्यक्तिगत शिक्षण का संपादन तभी सम्भव है जबकि अध्यापक शिक्षण करते समय, बालक की व्यक्तिगत सीखने की कठिनाइयों का निदान करता रहे | निदानात्मक परीक्षण के द्वारा बालक की सीखने, सम्बन्धी कठिनाइयों का पता लगाया जा सकता है | अतएव निदानात्मक परीक्षण व्यक्तिगत शिक्षण के लिए, आवश्यक एवं उपयोगी है |, , शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में निदानात्मक परीक्षण का विशेष महत्त्व है | इस परीक्षण के महत्व को, निन्नलिखित रुप से स्पष्ट किया गया है , 1. बाल-केंद्रित शिक्षा के लिए उपयोगी (05९७॥ 0 ८४४ ८९॥६४४2० ६०४८०४०॥) - निदानात्मक परीक्षण की, सहायता से अध्यापक अपनी कक्षा के छात्रों की व्यैक्तिक विभिन्नता को ज्ञात कर लेता है । किसी छात्र में विषय वस्तु