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चट्टानों (आर्कियन चट्टान) के अपक्षय से बनी है। छोटानापुर, पठार का निर्माण लाल मिट्टी से हुआ है। इस मिट्टी में, , जीवाश्म, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है,, इसलिए कम उपजाऊ मानी जाती है।, , 3) काली मिट्टी, , इस मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के अपक्षय से हुआ है।, झारखंड में यह मिट्टी राजमहल पहाड़ी क्षेत्र और पार क्षेत्र, के कुछ हिस्से में पाई जाती है। झारखंड में धान और चना, की खेती इस मिट्टी में की जाती है। इस मिट्टी का रंग काला, या भूरा होता है | यह रंग इस मिट्टी में पाए जानेवाले, जीवाश्म और टिटेनिफेरस मैग्नेटाइट के वजह से होता है।, इस मिट्टी का निर्माण अत्यंत बारीक कणों से होती है, जिससे इसमे पानी पड़ने से चिपचिपी हो जाती है।, , 4) लैटराइट मिट्टी, , इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है यह लाल रंग इस मिट्टी, में पाई जाने वाली आयरन ऑक्साइड की प्रचुरता के वजह, से होता है। इस मिट्टी का निर्माण मानसूनी जलवायु की, शुष्कता और आद््रता में क्रमिक परिवर्तन से उत्पन्न, परिस्थितयो के कारण होता है। इस मिट्टी में चुना,, फास्फोरस और पोटाश भी पाया जाता है मगर आयरन, ऑक्साइड की इसमे प्रचुरता होती है। इसमें कंकड़ की, प्रधानता होती है। झारखंड में पाई जानेवाली मिद्टियों में, सबसे कम उपजाऊ मिट्टी लेटेराइट मिट्टी है इसलिए यह, कृषि के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है। झारखंड में इस, मिट्टी से मोटे अनाज और चावल की अल्प मात्रा में खेती
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होती है । ऐलुमिनियम और मैग्नेशियम के प्रचुरता के कारण, यह मिट्टी कम उपजाऊ है।, , यह झारखंड के निम्न क्षेत्र में पाई जाती है, , १) राँची के पश्चिम भाग में, , 2) पलामू के दक्षिण भाग में, , 0) पूर्वी राजमहल क्षेत्र में, , 0) धालभूम पहाड़ के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में, , 5) अभ्रकमूलक मिट्टी, , यह मिट्टी चमकीली मिट्टी भी कहलाती है क्योंकि इसमें, अभ्रक के कण मौजूद होते है। इसका रंग शुष्कता के, कारण हल्का गुलाबी हो जाता है और नमी के कारण, इसका रंग पीला हो जाता है। यह मिट्टी मुख्यतः कोडरमा, जिला में तथा अंशत: हजारीबाग और गिरिडीह में पाए जाते, है। यह मिट्टी उपजाऊ होती है मगर सिंचाई की समुचित, सुविधा न होने के कारण इस क्षेत्र में कृषि का विकास नही, हो पाया है।झारखंड में इस मिट्टी में कोदों और कुल्थी की, खेती होती है।, , 6) रेतीली मिट्टी, , इस मिट्टी को बलुरई या फुसफुस मिट्टी भी कहा जाता है।, इस मिट्टी का रंग पीला होता है इस प्रकार की मिट्टी दामोदर, घाटी क्षेत्र में पाए जाते है। इस प्रकार की मिट्टी का रंग लाल, और पीले कण का मिश्रण होता है। धनबाद जिला में इस, मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार है इसके अलावा यह मिट्टी
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हजारीबाग के पूर्वी भाग में पाई जाती है। झारखंड में इस, प्रकार की मिट्टी से मोटे अनाज की खेती की जाती है। इस, मिट्टी का निर्माण गोंडवाना क्रम के चट्टानों के अपक्षय के, कारण हुआ है।, , कुछ गौण मिट्टी, , उपर्युक्त 6 प्रमुख मिट्टी के अलावा झारखंड में कुछ और भी, मिट्टी पाई जाती है जिसका विस्तार अत्यल्प क्षेत्र में है।, , 1) अपरदित कगारों की मिट्टी, , यह मिट्टी तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इस मिट्टी में, कंकड़ की प्रधानता होती है। यह निम्न उर्वरता वाली मिट्टी, है।, , 2) धूसर पीली मिट्टी, , यह मिट्टी गढ़वा और पलामू के पहाड़ो में पाया जाता है।, इस मिट्टी की उर्वरता मध्यम से उच्च कोटि की होती है।, , 3) विषमजातीय मिट्टी, , यह मिट्टी पश्चिम सिंहभूम के मध्यवर्ती तथा उत्तरी भाग में, तथा सराईकेला में पाया जाता है। इस मिट्टी की उर्वरता, मध्यम स्तर की होती है। इसका रंग उच्च स्थानों में पीला, तथा निम्न स्थानों में काला तथा धुसर होता है।, , 4) धाव्विक गुणों से युक्त मिट्टी