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5100५ ?७८९७6७६ 0.855:-1077 0४॥८५-1, , 4. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी, , 1. 'हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती!। कैसे?, , उत्तर- प्रत्येक समाज में सामाजिक विभिन्नता पायी जाती है। समाज में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा,, समुदाय, लिंग इत्यादि के लोग रहते हैं जो सामाजिक विभिन्नता का सूचक है। यह आवश्यक नहीं है कि, ये राजनीतिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार हो, क्योंकि भिन्न समुदाय के विचार भिन्न हो, सकते हैं, लेकिन हित समान होगा। उदाहरण के लिए मुम्बई में मराठियों की हिंसा का शिकार, व्यक्तियसों की जातियाँ भिन्न थीं, धर्म भिन्न थे और लिंग भी भिन्न हो सकता है, परन्तु उनका क्षेत्र एक, ही था। वे सभी एक ही क्षेत्र विशेष के उत्तर भारतीय थे। उनका हित समान था। वे सभी अपने, व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। उपर्युक्त कथनों के अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जायेगा कि हर, सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाती है।, , 2. सामाजिक अन्तर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?, , उत्तर- सामाजिक अन्तर एवं सामाजिक विभाजन में बहुत बड़ा अन्तर पाया जाता है। सामाजिक, विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते, हैं। सवर्णों और दलितों का अन्तर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित सम्पूर्ण देश में आमतौर, पर गरीब, वंचित एवं बेघर हैं और भेदभाव के शिकार हैं जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं, सुविधायुक्त हैं। अर्थात् दलितों को महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं। अतः हम कह सकते, हैं कि जब एक तरह का सामाजिक अन्तर अन्य अन््तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को, यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा, होती है। जैसे- अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अन्तर सामाजिक विभाजन है। वास्तव में उपर्युक्त, कथनों के अध्ययन के बाद यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक अन्तर उस समय सामाजिक विभाजन बन, जाता है जब अन्य अन्तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है।, , 3. 'सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में, परिवर्तन होता है। भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।, , उत्तर- सामाजिक विभाजन दुनिया के अधिकतर देशों में किसी-त-किसी रूप में मौजूद है और यह, विभाजन राजनीतिक रूप अख्तियार करती ही है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक, विभाजनों की बात करना और विभिन्न समूहों से अलग-अलग वायदे करना स्वाभाविक बात है। हमारे, देश भारत में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था पायी जाती है। जनता अपने प्रतिनिधियों को मतदान के, माध्यम से चुनकर देश की संसद या राज्य की विधानसभाओं में भेजती है, , भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन का असर देश की राजनीति पर बहुत हद तक पड़ता है। साथ, ही सरकार की नीतियाँ भी प्रभावित होती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की, मांग को सरकार शुरू से खारिज करती रहती है तो आज भारत विखंडन के कगार पर होता। लोकतंत्र, में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ, राजनीतिक का लक्षण भी है। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजन की अभिव्यक्ति ऐसे, विभाजनों की बीच संतुलन पैदा करने का भी काम रहती है। परिणामतः कोई भी सामाजिक विभाजन, एक ह॒द से ज्यादा उग्र नहीं हो पाता और यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को मजबूत करने में सहायक भी होता है।, लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीक से अपनी मांगों को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से उनके, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ७७७.५९॥०7९००३०४॥४९८९1॥४९.९००॥ एब86९1
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5100१ ?6७८९66६ 6.055:-107 0८४॥८५-1, लिए दबाव बनाते हैं। उनका समाधान पाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि, सामाजिक विभाजन की राजनीति के फलस्वरूप भारतीय लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होत, , 4. सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता, है?, , उत्तर- सामाजिक विभाजन की राजनीति तीन तत्वों पर निर्भर करती है जो निम्नलिखित, , , , , , , , लिखित हैं, , लखित ह, , (). लोग अपनी पहचान स्व. अस्तित्व तक ही सीमित रखना चाहते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में राष्ट्रीय, चेतना के अलावा उप-राष्ट्रीय या स्थानीय चेतना भी होती है। कोई एक घटना बाकी चेतनाओं की कीमत, पर उग्र होने लगती है तो समाज में असंतुलन पैदा हो जाता है। भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि, जबतक बंगाल बंगालियों का, तमिलनाडु तमिलों का, महाराष्ट्र मराठियों का, आसाम असमियों का,, , गुजरात गुजरातियों की भावना का दमन नहीं होगा तबतक भारत की अखण्डता, एकता तथा सामंजस्य, खतरा में रहेगा। अतएव उचित यही है कि पहचान के लिए सभी चेतनाएँ अपनी-अपनी मर्यादा में रहें और, एक दूसरे की सीमा में दखल न दें. सरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि अगर लोग अपने बहु-स्तरीय पहचान, को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं तो कोई समस्या नहीं हो सकती। उदाहरण स्वरूप-बेल्जियम के, अधिकतर लोग खुद को बेल्जियाई (86॥७1०७॥) ही मानते हैं, भले ही वे डच और जर्मन बोलते हैं। हमारे देश, में भी ज्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नजरिया रखते हैं। भारत विभिन्नताओं का देश है,, फिर भी सभी नागरिक सर्वप्रथम अपने को भारतीय मानते हैं। तभी तो हमारा देश अखण्डता और एकता, का प्रतीक है।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , (1). किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की मांगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान ” के दायरे में, आने वाली और दूसरे समुदायों को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान ' है। सत्तर के, दशक के पूर्व के राजनीतिक स्वरूप तथा अस्सी एवं नब्बे के दशक में राजनीति परिदृश्य में बदलाव हुआ, और भारतीय समाज में सामंजस्य अभी तक बरकरार है। इसके विपरीत युगोस्लाविया में विभिन्न समुदाय, के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ से ऐसी माँगें रखीं कि जिन्हें एक देश की सीमा के अन्दर पूरा, करना संभव न था। इसी के परिणामस्वरूप युगोसलाविया कई टुकड़ों में बँट गया।, , , , , , , , , , , , (1). सामाजिक विभाजन के राजनीति का परिणाम सरकार के खर्च पर भी निर्भर करता है। यह भी, , महत्वपूर्ण है कि सरकार इन मांगों पर क्या प्रतिक्रियाएं व्यक्त करती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों, के प्रति न्याय की माँग को सरकार शुरू से ही खारिज रहती तो आज भारत बिखराव के कगार पर होता।, लेकिन सरकार ने इनके सामाजिक न्याय को चिह्न मानते हुए सत्ता में साझेदार बनाया और उनको देश की, मुख्य धारा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया। फलतः छोटे संघर्ष के बावजूद भी भारतीय समाज में, समरसत्ता और सामंजस्य स्थापित है। पुनः बेल्जियम में भी सभी समुदायों के हितों को सामुदायिक सरकार, में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया। परन्तु . श्रीलंका में राष्ट्रीय एकता के नाम पर तमिलों के न्यायपूर्ण माँगों, को दबाया जा रहा है। ताकत के दम पर एकता बनाये रखने की कोशिश अकसर विभाजन की ओर ले जाती, , है।, 1, , , , , , , , , , , , , , , , , , 5. भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक अक्षिप्त टिप्पणी लिखें।, , उत्तर- वर्तमान में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संसार के अधिकतर देश अपना रहे हैं, क्योंकि, , , , , , , , ७७७.५९॥०7९००३०४॥४९८९1॥४९.९००॥ ए986 2
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5100५ ?6७८९66६ 6.055:-107 ८४॥८५-1, लोकतंत्र में लोगों के कल्याण की बातों को प्रमुखता दी जाती है आज लोकतंत्र अपनी जड़ें जमा .. चुका, है और यह धीरे-धीरे परिपक्कता की ओर अग्रसर है। लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था एक ऐसी शासनव्यवस्था है जिसके अन्तर्गत लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर संसद या विधानसभा में भेजते हैं। यह, लोगों के कल्याण, सामाजिक समानता, आर्थिक समानता तथा धार्मिक समानता इत्यादि का पक्षधर, है। इसी शासनतंत्र के अन्तर्गत लोक-कल्याणकारी राज्य बनाया जा सकता है। इस शासन-व्यवस्था में, जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और वे प्रतिनिधि जनता की भलाई के लिए कार्य करते हैं।, , , , , , , , , , , , , , वर्तमान समय में लोकतंत्र का क्रमिक विकास इस बात का सूचक है कि यह शासन-व्यवस्था औरों से अच्छी, है लोकतंत्र एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण के साथ-साथ समाज का विकास भी, संभव है। यह भावी समय के लिए एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण की भावना, छुपी है। लोकतंत्र का दीर्घकालीन उद्देश्य है-एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना जिसमें आम लोग, का विकास, आर्थिक समानता, धार्मिक. समानता एवं सामाजिक समानता निहित होती है। इस प्रकार, , लोकतंत्र भावी समाज के लिए जिम्मेवारीपूर्ण कार्य करता है।, , , , , , , , , , , , , , , , , , 6. भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?, , उत्तर- भारत में भिन्न जाति के लोग रहते हैं, चाहे वे किसी धर्म से संबंध रखते हों। यहाँ जातिगत, विशेषताएँ पायी जाती हैं, क्योंकि भारत विविधताओं का देश है।, , दुनिया भर के सभी समाज में सामाजिक असमानताएँ और श्रम विभाजन पर आधारित समुदाय विद्यमान, है। भारत इससे अछूता नहीं है। भारत की तरह दूसरे देशों में भी पेशा का आधार वंशानुत है। पेशा एक, पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्वयं ही चला आता है। पेशे पर आधारित सामुदायिक व्यवस्था ही जाति कहलाती, , है। यह व्यवस्था जब स्थायी हो जाती है तो श्रम विभाजन का अतिवादी रूप कहलाता है जिसे हम जाति के, नाम से पुकारने लगते हैं। यह एक खास अर्थ में समाज में दूसरे समुदाय से भिन्न हो जाता है। इस प्रकार के, वंशानुगत पेशा पर आधारित समुदाय जिसे हम जाति कहते हैं, की स्वीकृति ति-रिवाज से भी हो जाती है।, इनकी पहचान एक अलग समुदाय के रूप में होती है और इस समुदा. के सभी व्यक्तियों की एक या मिलतीजुलती पेशा होती है। इनके बेटे-बेटियों को शादा-आपस के समुदाय में ही होती है और खान-पान भी समान, समुदाय में ही होता है। अन्य समुदाय में इनके संतानों की शादी न तो हो सकती है, और न ही करने की, कोशिश करते हैं। महत्वपूर्ण परिवारिक आयोजन और सामुदायिक आयोजन में अपने समुदाय के साथ एक, पांत में बैठकर भोजन करते हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा देखा गया है कि अगर एक समुदाय के बेटा या बेटी दूसरे, समुदाय के बेटा या बेटी से शादी कर लेते हैं तो उसे. पांत से काट दिया जाता है। अपने समुदाय से हटकर, दूसरे समुदाय में वैवाहिक संबंध बनाने वाले परिवार को समुदाय से निष्कासित भी कर दिया जाता है।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , 7. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके _: दो कारण बतावें।, , , , उत्तर- () किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का गठन इस प्रकार नहीं किया गया है कि उसमें मात्र एक जाति के, मतदाता रहें। ऐसा हो सकता है कि एक जाति के मतदाता की संख्या अधिक हो सकती है, परन्तु दूसरे, जाति के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अतएव हर पार्टी एक या एक से अधिक जाति के लोगों, का भरोसा करना चाहता है।, , (1) अगर जातीय भावना स्थायी और अटूट होती तो जातीय गोलबंदी पर सत्ता में आनेवाली पार्टी की कभी, , , , , , , , , , , , ७७७.५९॥०7९००३०४॥४९८९1॥४९.९००॥ 79863
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5100१ ?6८0९66६ 6.055:-10 7 0८४॥८५-1, हार नहीं होती है। यह माना जा सकता है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ जातीय गुटों से संबंध बनाकर.सत्ता में आ, जाये, परन्तु अखिल भारतीय चेहरा पाने के लिए जाति विहीन, साम्प्रदायिकता के परे विचार रखना, आवश्यक होगा।, , , , , , , , , , , , 8. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण, दें, , उत्तर- जब हम यह कहना आरंभ करते हैं कि धर्म ही समुदाय का निर्माण करता है तो साम्प्रदायिक, राजनीति का जन्म होता है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही साम्प्रदायिकता कहलाती है। हम, प्रत्येक दिन साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति देखते हैं, महसूस करते हैं, यथा धार्मिक पूर्वाग्रह, परम्परागत, , , , ई, यथा धार्मिक पूर्वाग्रह, परम्परागत, धार्मिक अवधारणायें एवं एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ।, , , , , , , , , , साम्प्रदायिकता की सोच प्रायः अपने धार्मिक समुदाय की प्रमुख राजनीति में बरकरार रखना चाहती है। जो, लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है, उदाहरणार्थ, श्रीलंका में सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद। यहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने भी सिंहली समुदाय, की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यकपरस्ती के तहत . कई कदम उठाये। यथा-1956 में सिंहली, को एकमात्र राज्यभाषा के रूप में घोषित करना, विश्वविद्यालय और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को, प्राथमिकता देना, बौद्ध धर्म के संरक्षण हेतु कई कदम उठाना आदि। साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीति, गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इस हेतु पवित्र प्रतीकों; धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपील आदि, का सहारा लिया जाता है। निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते हैं। किसी खास धर्म के अनुयायियों से, किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील करायी जाती है और अन्त में साम्प्रदायिकता का, भयावह रूप तब हम देखते हैं, जब सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार होता है। : विभाजन, के समय हमने इस त्रासदी को झेला है। आजादी के बाद भी कई जगहों पर बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक, हिंसा हुई है। उदाहरण-नोआखली में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए।, , 9. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र कर जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे, कमजोर स्थिति में हैं ?, , उत्तर- भारत एक विकासशील देश है। यहाँ स्त्रियों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है जितना एक विकसित, देश में होती है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले स्त्रियों की स्थिति बहुत ही विकट थी और आजादी के, बाद स्त्रियों की स्थिति में बहुत थोड़ा बदलाव आया लेकिन वह काफी नहीं था। अगर वर्तमान परिदृश्य में, देखा जाय तो भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है, परन्तु उनके सुधार के लिए बहुत कुछ किया, , जाना शेष है।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , भारत में समय-समय पर महिलाओं ने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए या जागृति लाने के लिए समयसमय पर मान्दोलन किया। पुरुषों के बराबर दर्जा पाने के लिए गोलबंद होना आरंभ किया। सार्वजनिक, , बोवन के विभिन्न क्षेत्र पुरुष के कब्जे में है। यद्यपि मनुष्य जाति की आबादी में महिलाओं का हिस्सा आया, है। आज महिलाएं वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षक इत्यादि पेशे, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ७७७.५९॥०7९००३०४॥४९८९1॥४९.९००॥ ए386९ 4