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2, पर्वत प्रदेश में पावस, - सुमित्रानंदन पंत, पाठ की रूपरेखा, प्रस्तुत कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने प्रकृति का बड़ा होी सजीव चित्रण किया है कवि ने वर्षा ऋतु में पर्वतों पर प्रतिपल, परिवर्तित मनोहर रूप को मानवीकरण शैली में प्रस्तुत किया है। इस कविता को पढ़कर घर की चारदीवारी के अंदर बैठा हुआ व्यक्ति, भी किसी पर्वत की चोटी को महसूस कर सकता है जिसने कभी पर्वत, वन, झरने नहीं देखे, वह इस अद्भुत कविता के जरिए, प्रकृति के मनमोहक रूप की कल्पना कर उसके सौंदर्य से मोहित हो, प्रकृति प्रेमी अवश्य बन जाएगा।, पाठ का सार, कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है मानो प्रकृति सजीव हो उठी है कवि कहता है कि वर्षा, कवि ने, ऋतु में प्रकृति का रूप हर पल बदल रहा है- कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है पर्वतों पर उगे हज़ारों फूल ऐसे, लग रहे हैं जैसे वह पर्वतों की आँखें हों और वे इन ऑआँखों के सहारे अपने-आप को अपने चरणों में फैले दर्पण रूपी तालाब में देख, रहा हो। पर्वतों से गिरते हुए झरने कल-कल की मधुर आवाज़ कर रहे हैं जो रोम-रोम को प्रसन्नता से भर रहे हैं पर्वतों पर उगे हुए, पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वे उसे हूना चाह रहे हों । बारिश के बाद मौसम पूरी तरह परिवर्तित हो गया है । घनी ्ुंध, के कारण लग रहा है मानों पेड़ कहीं उड़ गए हों अ्थात गायब हो गए हों, चारों ओर धुआँ होने के कारण लग रहा है कि तालाब, में आग लग गई है। सारा नज़ारा ऐसा लग रहा है जैसे इस मौसम में इद्र अपना बादल रूपी विमान लेकर इधर उधर जादू का खेल, दिखाते हुए घूम रहे हों।, इस, काव्यांशों की व्याख्या, 1. पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,, पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।, व्याख्या- 'पर्वत प्रदेश में पावस' कविता की प्रस्तुत पॅक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने बर्षा ऋतु का वर्णन करते, ऊपर प्रकृति में पल-पल हो रहे बदलाव के बारे में बताया है। उनके अनुसार, वर्षा ऋतु में पहाड़ों के ऊपर कभी धूप खिल जाती, है, तो कभी उन्हीं पहाड़ों को घने काले बादल घेर लेते हैं, अर्थात उन्हें हुपा लेते हैं आश्चर्य की बात तो यह है कि ये सब होने, हुए,, पर्वतों के, में क्षण भर का भी समय नहीं लगता।, 2. मेखलाकर पर्वत अपार, नीचे जल में निज महाकार,, अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,, -जिसके चरणों में पला ताल, अवलोक रहा है बार-बार, दर्पण-सा फैला है विशाल!, व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पर्वत को एक करधनी ( कमर में पहने जाने वाला गहना ) के रूप में बताया है। पर्वत पर खिले, हुए हज़ारों फूल पर्वत के नेत्र की तरह लग रहे हैं पर्वत के ठीक नीचे फैला तालाब किसी दर्पण का काम कर रहा है, जिसमें पर्वत, अपनी पुष्प रूपी आँखों से अपना विशाल रूप निहार रहा है।, 3. गिरि का गौरव गाकर झर-झर, मोती की लड़ियों-सी सुंदर, मद में नस-नस उत्तेजित कर, इरते हैं झाग भरे निझर!, व्याख्या- कविता की इन पंक्तियों में कवि ने किसी पर्वत से गिरते झरने की सुंदरता का बखान किया है झरना उसमें उठने वाले, झाग के कारण मोतियों की लड़ी की भौँति लग रहा है उसके गिरने से पैदा होती कल-कल की गूँज मानो ऐसी है, जैसे झरना, पर्वत का गुणगान कर रहा हो । गिरते हुए झरने की ध्वनि को सुनकर लेखक की नस-नस में मानो ऊर्जा का संचार होने लगता है।, पर्वत प्रदेश में पावस 17
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हैं झाँक रहे नीरव नभ पर, अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।, व्याख्या- इसमें कवि ऊँचे पर्वत के ऊपर उगे हुए वृक्षों का वर्णन कर रहा है जिन्हें देखकर कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, ये पेड़ पर्वत के हृदय से उगे हैं और सदैव ऊपर उठने की कामना से एकटक ऊपर आकाश की ओर ही देख रहे हैं। उनकी ऊपर, उठने की इच्छा कुछ इस प्रकार की प्रतीत हो रही है कि वे अपने इस लक्ष्य को पाकर ही रहेंगे, उन्हें ऊपर उठने से कोई रोक नहीं, 4. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर, उच्चाकांक्षाओं से तरुवर, सकता। साथ ही, कवि को ऐसा भी प्रतीत हो रहा है मानो ये पेड़ किसी गहरी चिंता में डूबे हों।, रव-शेष रह गए हैं निर्झर!, है टूट पड़ा भू पर अंबर!, व्याख्या- अचानक बदलते इस मौसम में जब आकाश में बादल छा जाते हैं, तो पर्वत भी ढक जाता है। इसीलिए कवि ने कहा है, 5. उड़ गया, अचानक लो,, भूधर, फड़का अपार पारद के पर!, कि अचानक पर्वत अपने चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है वह अब कहीं नज़र नहीं आ रहा। चारों ओर कुछ भी दिखाई, नहीं दे रहा, सिर्फ झरने के गिरने की आवाज़ सुनाई दे रही है ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो आकाश पृथ्वी पर आ गिरा हो।, 6. धँंस गए धरा में सभय शाल!, -यों जलद-यान में विचर-विचर, उठ रहा धुओँ, जल गया ताल!, था इंद्र खेलता इंद्रजाल।, व्याख्या- इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि घनघोर बारिश हो रही है इस मूसलाधार बरसात के कारण वातावरण में चारों ओर, कोहरा फैल गया है। जिसकी वजह से शाल के विशाल पेड़ भी दिखाई नहीं दे रहे हैं इसीलिए कवि ने कहा है कि शाल के पेड़, डरकर धरती में घुस गए हैं। इस निरंतर उठते कोहरे को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो तालाब में आग लग गई हो। प्रकृति के, विभिन्न रूपों को देखकर कवि को ऐसा लग रहा है, जैसे इंद्र बादलों में घूम-धूमकर अपना खेल खेल रहे हों।
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ww. **, w...****... *, 2. निम्नलिखित में से किसी एक प्रश्न का उत्तर 60-70 शब्दों में दीजिए।, (क) पर्वत प्रदेश में पावस ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखकर यह बताइए कि पहाड़ी लोगों को इस, ऋतु में किन-किन कठिनाइयों से सामना करना पड़ता होगा ? कविता के कथ्य को ध्यान में रखकर लिखिए।, 14x1-4, ....*, **, *****, ww ****, **********, ******, (ख) पर्वत पर उगे ऊँचे-ऊँचे तरुवरों से आप कौन-सी प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं?, ***, .*********, ******, **......., पर्वत प्रदेश में पावस 21