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5 भौतिक जगत शाएब्ंटन एलन, , 'पाठय पुस्तक के प्रश्नोत्तर, , प्रश्न 1.1. विज्ञान की प्रकृति से संबंधित कुछ अत्यंत, पारंगत प्रकथन आज तक के महानतम वैज्ञानिकों में से एक, अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा प्रदान किए गए हैं। आपके विचार, से आइंस्टाइन का उस समय क्या तात्पर्य था, जब उन्होंने, 'कहा था “संसार के बारे में सबसे अधिक अबोधगम्य, विषय यह है कि यह बोधगम्य है।”, , उत्तर : हमारे चारों ओर विश्व की अनेक जटिल, 'परिघटनाएँ प्रत्येक समय होती रहती हैं। जीव विज्ञान की, अपनी जटिल समस्याएँ हैं। अत: यह विश्व अबोधगम्य के, समान लगता है। आइंस्टीन ने उस समय यह सोचा होगा कि, इतनी जटिलताओं के रहते हुए भी जो संतोष की बात है, वह, यह है कि इन सभी प्राकृतिक परिघटनाओं को विज्ञान के, कतिपय साधारण नियमों से समझा जा सकता है। अत: संसार, बोधगम्य है।, , प्रश्न 1.2. “प्रत्येक महान भौतिक सिद्धान्त, अपसिद्धान्त से आरंभ होकर धर्मसिद्धान्त के रूप में, समाप्त होता है”। इस तीक्ष्ण टिप्पणी की वैधता के लिए, विज्ञान के इतिहास से कुछ उदाहरण लिखिए।, , उत्तर : धर्मसिद्धान्त एक स्थापित विचार होता है, जिस, पर कुछ लोग ही अँगुली उठा सकते हैं; परन्तु स्थापित, विश्वास तथा प्रबुद्ध व्यक्ति के मन में हिलोरे वाले सिद्धांत के, विपरीत किवदन्तियाँ कुछ भी हो सकती हैं, जो निम्नलिखित, हैं-, (6) प्रकाश का टॉमस यंग का रंग सिद्धान्त एक, किवदंती के रूप में आरंभ होकर धर्मसिद्धान्त में बदल गया।, , (8) प्राचीन समय में प्टोलमी ने भूकेन्द्री सिद्धान्त का, प्रतिपादन किया। भूकेन्द्री सिद्धान्त के अनुसार, पृथ्वी को स्थिर, माना गया तथा सभी आकाशीय पिण्ड जैसे-सूर्य, तारे एवं ग्रह, आदि उसके चारों ओर चक्कर लगाते थे। बाद में इतावली, वैज्ञानिक गैलीलियो ने माना कि सूर्य स्थिर है तथा दूसरे ग्रहों, सहित पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। इस समय के प्रशासकों, द्वारा गलत संकल्पना के प्रचार के आरोप में गैलीलियो को, दंडित किया गया, परन्तु कुछ समय पश्चात् न्यूटन एवं केप्लर, ने गैलीलियो के सिद्धान्त का समर्थन किया और अब यह, धर्मसिद्धान्त है।, , (४) यह एक अपसिद्धान्त अथवा किवदंती है कि, किसी वस्तु का जड़त्व उस वस्तु की ऊर्जा पर निर्भर है।, आइंस्टीन ने एक ही संबंध द्वारा द्रव्यमान तथा ऊर्जा जिसे, , द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता समीकरण £-#८* कहा जाता है,, द्वारा प्रतिस्थापित किया और आज यह भौतिकी में एक, धर्मसिद्धान्त है।, , प्रश्न 1.3. “संभव की कला ही राजनीति है”। इसी, प्रकार “समाधान की कला ही विज्ञान है?। विज्ञान की, प्रकृति तथा व्यवहार पर इस सुन्दर सूक्ति की व्याख्या, 'कीजिए।, , उत्तर : यद्यपि राजनेता को यह अच्छी तरह पता होता है, कि कोई भी वस्तु या प्रत्येक वस्तु असंभव इसके विषय में वह, स्वयं अनिश्चित होते हैं; परन्तु मत प्राप्त करने के लिए वह, ऐसा करना संभव बताते हैं। प्रेक्षण के क्रमवार अध्ययन को, विज्ञान कहते हैं। एक वैज्ञानिक इन प्रेक्षणों का धैर्यपूर्वक, संश्लेषण करके कुछ नियमों को लेकर आता है;, जैसे-टाइको ब्ाहे ने ग्रहों की गति के प्रेक्षणों का बीस वर्षों, तक अध्ययन किया।, , जे. केप्लर ने अपने अनेक प्रेक्षणों का अध्ययन करके, ग्रहों की गति के तीन नियमों का प्रतिपादन किया। इस प्रकार, “विज्ञान समाधान की कला है”, से तात्पर्य है कि अनेक, विभिन्न भौतिक प्रक्रियाओं को कुछ ही मूलभूत संकल्पनाओं, द्वारा समझा जा सकता है अर्थात् ऐसा लगता है कि विविधता, में एकता है। अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के वैज्ञानिक प्रकरणों, का समाधान है तथा उन्हें कुछ मूल नियमों द्वारा समझा जा, सकता है।, , प्रश्न 1.4. यद्यपि अब भारत में विज्ञान तथा, प्रौद्योगिकी का विस्तृत आधार है तथा यह तीव्रता से फैल, भी रहा है, परन्तु फिर भी इसे विज्ञान के क्षेत्र में विश्वनेता, बनने की अपनी क्षमता को कार्यान्वित करने में काफी दूरी, तय करनी है। ऐसे कुछ महत्त्वपूर्ण कारक लिखिए, जो, आपके विचार से भारत में विज्ञान के विकास में बाधक रहे, हैं।, , उत्तर : आज भारत विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में विश्व में, अपना स्थान बना चुका है तथा उसके पास एक विस्तृत आघार, है। चाहे वह मानव संसाधन, सूचना प्रौद्योगिकी, आयुर्विज्ञान,, परिवहन, रक्षा यंत्र, न्यूकलीय विज्ञान, अनुसंधान और, बायोटैक्नोलॉजी तथा इंजीनियरिंग कोई भी क्षेत्र हो; लेकिन, कुछ कारकों के कारण यह विश्व में आज भी एक मान्य, आओ शक्ति नहीं है, जो निम्न प्रकार हैं ऐसा मेरा मानना