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PDF Notes Academy, Unit - 3, न्याय-सूत्र' में प्रमेय (वह विषय, जो जाना जाता है) के 12 भेद किये गए हैं।, आत्मा, शरीर, इन्द्रिय, अर्थ, बुद्धि, मन , प्रवृत्ति, शेष, भाव फल, दुःख और, अपवर्ग। यह दर्शन भिन्न-भिन्न शरीरों में भिन्न-भिन्न आत्मा का मानता है।, इसके अनुसार, आत्मा की न तो उत्पत्ति होती है और न ही नाश। अत: यह, चैतन्य तथा नित्य है। जड़ जगत भरतों से अर्थात क्षिति, जल, पावक और समीर, से बना है। ईश्वर संसार के स्रष्टा, पालक और संहारक हैं। वह जीवों के कर्मानुसार, जगत् की स्रष्टि और जीवों के सुख-दुःख का विधान करते हैं। यह न पाप,, और मोक्ष को स्वीकार करता है तथा ईश्वर- द्वारा व्यक्त होने के कारण भेद को, पण्य, प्रामाणिक मानता है।, वैशेषिक लोग जगत की वस्तुओं के लिए पदार्थ शब्द का व्यवहार करता है। कोई, जिसे नाम से अभिहित किया जा सके और जिसे ज्ञान का विषय बनाया, भी, वस्तु,, जा सके 'पदार्थ' कहलाती है। ये दो प्रकार के हैं. 1. भाव पदार्थ, जैसे-द्रव्य,, गुण,, कर्म, सामान्य, विशेष तथा समवाय, 2. अभाव पक्ष, जैसे रात्रि में सूर्य का न, होना।, संसार के सभी कार्य-द्रव्य चार प्रकार के परमाणुओं-(पृथ्वी,, वैशेषिक मतानुसार,, जल, तेज और वायु) से मिलकर बनते हैं। इसीलिए वैशेषिक मत को परमाणुवाद, भी कहते हैं। इस मत के अनुसार, परमाणुओं की गति का सूत्रधार ईश्वर है। वही, सृष्टि और संहार के कर्ता (महेश्वर) हैं। यह सृष्टि के प्रलय की स्थिति को भी, स्वीकार करता है। इसके अनुसार शरीर, इन्द्रिय, बुद्धि, मन तथा अहंकार से, युक्त जीवात्मा अपने बुद्धि, ज्ञान और कर्म के अनुसार सुख या दुःख का भोग, करते हैं। प्रलय के पश्चात् केवल चार भूतों-पृथ्वी, जल, तेज और वायु के परमाणु, तथा पाँच नित्य द्रव्य (दिक्, काल, आकाश, मन एवं आत्मा) और जीवात्माओं, के धर्माधर्मजन्य भावना या संस्कार मात्र बच जाते हैं, जिनको लेकर फिर अगली, सृष्टि बनती है।, Call/Whatsapp- 9166830064, PDF Notes Academy, Page 5