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8. घर की याद, - राजेश जोशी, , 2०-०५ मममनमिमीनन+कवीनीनननान- 33333 +33नननन-न++न-+++3+3+3+3नत-.ससस>त<>+3त.त.++«-3....3<<+- लक +न++क+3++ 3-०3 +५.५3+न«»+क++++-+++>++नाक «नमन न «+नम ना» मनन., , , , , , , , कवि परिचय , कवि राजेश जोशी जी का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ में 18 जुलाई, 1946 को हुआ।, आपने जीवविज्ञान और समाजशास्त्र की उपाधि ली। आपको समकालीन कविता के हस्ताक्षर के रुप, में माना जाता है। आपने वैज्ञानिक दृश्टिकोण के साथ कविता का सृजन करते हुए सामाजिकता के, दृष्टि से रचना करने में सफल रचनाकार के रुप में बहुचर्चित रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक, दायित्व विशद करने में आप सफल रहे हैं।, , साहित्य परिचय , 1. काव्य संग्रह - लंबी कविता, समरगाथा, एक दिन बोलेंगे पेड, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी,, दो पंक्तियों के बीच।, , 3. कहानी संग्रह - सोमवार और अन्य कहानियाँ, कपिल का पेड।, , 4. नाटक - जादू जंगल, अच्छे आदमी, टंकार का गाना।, , 5. पुरस्कार - दो पंक्तियों के बीच' कविता संग्रह को सन २००२ का साहित्य अकादमी पुरस्कार, प्रदान किया गया है। इसके साथ-साथ मुक्तिबोध पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा स्मृति सम्मान, शमशेर, , सम्मान, पहल सम्मान, मध्यप्रदेश सरकार का 'शिखर सम्मान', माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार आदि, प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया है।, , आप ने कविताओं के अतिरिक्त कहानियाँ, नाटक, लेख, अनुवाद, आलोचनात्मक टिप्पणियाँ, , भी लिखी है। सभी रचनाएँ मौलिक तथा सफल है। आपने कुछ नाटक रुपांतर भी किए हैं। कई, , लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन किया है। आपने मायकोवस्की की कविता का अनुवाद 'पतलून, , पहिना बादल' नाम से किया है। भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रुसी और जर्मन में भी, , कविताओं का अनुवाद हो चुका है। आपकी रचनाओं में गहन सामाजिक अभिप्राय है। कविताएँ, जीवन के संकट में भी आस्था को उभारती है। आपकी कविताएँ स्थानीय भाषा, बोली से युक्त है। ;, “घर की याद' कविता में आत्मियता, लयात्मकता के साथ ही साथ मनुष्यता को बचाए रखने का एक, निरंतर संघर्ष भी विद्मान है। आपको जितना दुनिया के नष्ट होने का खतरा दिखाई देता है, उतनी, ही व्यग्रता जीवन ही संभावनाओं की खोज के प्रति दिखाई बी है॥छषप्रस्तुत कविता “दो पंक्तियों के, बीच' काव्य संग्रह में संकलित है। /
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घर की याद, , ढाबे की टूटी बेंच पर बैठ कर, चाय में डुबा डुबा कर बन खाते हुए मुश्किल से दबाता हूँ, , मन में हुक सी उठती घर की याद, , चेहरे को दबोच लेती है एक उदासी, , देसी दारू की झोंक में लडखडाता आता है, , प्राइमरी स्कूल का एक मास्टर फटेहाल, , धम्म से बैठ जाता है मेरी बगल में और बडबडाता है, यहाँ जंगल में फेंक दिया है मुझे, , घर से ढाई सौ मील दूर, , दस बरस में लगाई हैं मैंने सैकडों अर्जियाँ, , लगाए हैं पचासों चक्कर शिक्षा विभाग के, , राज्य परिवहन की बसों को दे चुका हूँ अपनी सारी पगार, न जाने कितने ढाबों का पी चुका हूँ पानी, , खा चुका हूँ नमक, , फाँक चुका हूँ न जाने कितने मन घूल, , कोई नहीं सुनता, , कोई नहीं सुनता साला पर मेरी बात, , हमारे समय का सबसे बडा दुख है निर्वासन, कैसे ? कैसे बताऊँ उसे अपना दुख, , कहीं दूर देखने का स्वाँग करता, , बचाता हूँ अपनी आँखें, , न जाने किस किसको गाली निकालता, , अचानक सुबकने लगता है मास्टर, , अगल बगल खडे लोग देखते हैं जैसे देखते हों तमाशा, बाहर आते ही कैसा बहुरूपिया हो जाता है हमारा दुख!, , , , , , , , , , , , दूर आसमान में चीखती है कोई टिट॒हरी, लौटते हुए अपने घोंसले की ओर।, कलमनपपननभस पक कक कम पक सम सम कस «>-11_----० 3 _ तू 26 ---८८८८---८------++--+