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रहो अर्थात जिस प्रकार एक मां अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे ती है और उसके व्यक्तित्व को निखारती है उसी, प्रकार तम, ंु र व आकर्षक रूप प्रदान करती रहो |, ु भी हमें सद, कभी तम्, ु हारे स्वेच्छाचार से या किसी के अत्याचार से तम्, ु हारे प्रवाह में बाढ़ आ जाए और तम्, ु हारी धारा, कर्मविनाशिनी, कीर्तिविनाशिनी व काल प्रवाहिनी बन जाए तो भी हमें स्वीकार है | हम उस में रे त बनकर बिखर, जाएंगे लेकिन हम तम्, ु हारी धारा में ही छनकर, जमकर फिर पैर टिकाएंगे अर्थात ् हम रे त होकर भी पन, ु ः जमकर, द्वीप रूप धारण कर लेंगे | एक बार फिर से किसी अन्य स्थान पर हम एक नए व्यक्तित्व का आकार ग्रहण करें गे |, हे माता! हमारे उस नवीन रूप को तम, ु फिर से संस्कार दे ना |, कहने का भाव यह है कि व्यक्ति के जीवन में समाज का अपना एक विशिष्ट महत्व है लेकिन समाज में रहते हुए, भी व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व की पथ, ृ क पहचान बनाए रखनी चाहिए | व्यक्ति और समाज दोनों के लिए ही यह, लाभकारी है |, विशेष — (1) व्यक्ति के जीवन में समाज के विशिष्ट महत्व को रे खांकित करते हुए उसके पथ, ृ क अस्तित्व पर बल, दिया गया है |, (2) प्रतीकात्मक शब्दावली है |, (3) भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक एवं विषयानक, ु ू ल है |, (4) मक्, ु त छं द है |, ‘नदी के द्वीप कविता’ का प्रतिपाद्य / कथ्य, ‘नदी के द्वीप’ अज्ञेय जी की प्रसिद्ध कविता है | इस कविता में कवि ने व्यक्ति की निजी अस्मिता के महत्त्व को, प्रतिपादित किया है | यहाँ द्वीप व्यष्टि तथा नदी समष्टि ( समाज ) का प्रतीक है | कवि ने स्पष्ट किया है कि, इसमें समष्टि का अंग होते हुए भी व्यष्टि का अपना महत्व होता है |, जिस प्रकार द्वीप नदी से रूप व आकार प्राप्त करते हैं उसी प्रकार समाज से ही व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्मित होता, है परं तु फिर भी व्यक्ति का अपना अस्तित्व है | वह समाज की धारा में विलीन होकर अपने विशिष्ट व्यक्तित्व को, खोना नहीं चाहता |, किंतु हम बहते नहीं हैं, क्योंकि बहना रे त होना होता है, हम बहें गे तो रहें गे ही नहीं |, द्वीप यदि नदी की धारा में प्रभावित हो जाएं तो वे रे त में परिवर्तित हो जाएंगे और उनका अपना अस्तित्व समाप्त, हो जाएगा | ठीक इसी प्रकार से समाज की धारा में बह जाने से व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व समाप्त हो जाएगा |, द्वीप धारा की उपेक्षा भी नहीं करते | क्योंकि नदी की धारा ने ही उन्हें रूप-आकार प्रदान किया है | वे उसके प्रति, श्रद्धा का भाव रखते हैं | वे नहीं चाहते कि नदी की धारा मेउन्हें छोड़कर चली जाए |
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हम नदी के द्वीप हैं, हम नहीं कहते कि हम को छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाए, वह हमें आकार दे ती है |, इस प्रकार ‘नदी के द्वीप’ कविता अस्तित्ववादी दर्शन की अभिव्यक्ति करती है | अस्तित्ववाद व्यक्ति की, स्वतंत्रता सत्ता में विश्वास करता है | समष्टि का महत्व स्वीकार करते हुए भी वह व्यष्टि के अपने अस्तित्व को, खंडित नहीं होने दे ता |, इस प्रकार ‘नदी के द्वीप’ कविता का मख्, ु य कथ्य मनष्ु य के स्वतंत्र अस्तित्व के महत्व को प्रतिपादित करना है |, लेकिन यह व्यक्तिनिष्ठता समाज के महत्व को भी स्वीकार करती है |