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इकाई-1 : कथा साहित्य, , 1. जीती बाजी की हार, , - मन््नू भंडारी, , , , , , , , अनुक्रम, 1.1 उद्देश्य, 1.2. प्रस्तावना, 1.3 विषय विवेचन, 1.3.1 मन्नू भंडारी का परिचय, 1.3.2 जीती बाजी की हार कहानी का परिचय, 1.3.3 जीती बाजी की हार! कहानी का कथानक, 1.4. स्वयं-अध्ययन के लिए प्रश्न, 1.5 पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ, 1.6 स्वयं-अध्ययन प्रश्नों के उत्तर, 1.7 सारांश, 1.8 स्वाध्याय, 1.9 क्षेत्रीय कार्य, 1.10 अतिरिक्त अध्ययन के लिए।, , 1.1 उद्देश्य, प्रस्तुत इकाई के अध्ययन के बाद आप1. मन्नू भंडारी के साहित्यिक कृतियों से परिचित होंगे।, 2. व्यक्ति के सामाजिक दायित्व को समझ पायेंगे।, 3. कहानी के सुखद अनुभूतियों को अनुभव करेंगे।, , , , (7)
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कहानी में प्रस्तुत व्यवहार ज्ञान को समझेंगे।, समाज की मान्यताओं को निभाना सीख जायेंगे।, , 4., , 5, , 1.2 प्रस्तावना, मन्नू भंडारी दूवाए लिखित 'जीती बाजी की हार! कहानी में समाज में स्थित प्रत्येक व्यक्तिये, सामाजिक मान्यताओं का पालन करना चाहिए। अपने सामाजिक दायित्व को निभाना चाहिए इम, यथार्थ को प्रस्तुत किया है। वर्तमान समय में युवा युवतियों में स्वयं में करिअर की होड सी छा, है। शिक्षा गृहण कर रही युवतियाँ अपने करियर का अधिक विचार कर रही है। उन्हें अपने, सामाजिक जिम्मेदारी तथा पारिवारिक जिम्मेदारीयों का ध्यान नहीं है। परिणाम स्वरूप वह विवाह को, गौण स्थान देती है और उनका एकमात्र लक्ष रहा है, ऊँची उपाधि प्राप्त करना और अच्छी नौकरी, हासिल करना। विवाह कर के पुरुष की दासता उन्हें पसंद नहीं है। कहानी में चित्रित कॉलेज में, पढनेवाली आशा, नलिनी और मुरला ये तीनों लडकियाँ नारी स्वतंत्रता की समर्थक है। पर सामाजिक, स्थितियाँ उन्हें कहाँ से कहाँ पहुंचा देती है। समय के साथ उन्हें समाज मान्यताओं का पालन कला, अनिवार्य हो जाता है।, , 1.3 विषय विवेचन, 1.3.1 मनन्नू भंडारी का परिचय, मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रेल 1931 में हुआ। उनका जन्म मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के, , भानपुरा गाँव में हुआ। मन्नू जी का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मल, , * नाम का चुनाव किया। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख संपतराय भी, जाने-माने लेखक थे। मन्नूजी बालीगंज शिक्षा सदन और बिड़ला कॉलेज में अध्यापन के बाद वह, , मितंडा कॉलेज में हिंदी की प्राध्यापक बनी। अवकाश प्राप्त करने के उपरांत वे दो वर्ष तक उज्जैन, में प्रेमचंद सृजनपीठ की निदेशिका रही।, , ७ प्रकाशित कृतियाँ, 9 कहानी संग्रह , एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की त्रिशंकू, , , तीन निग एक तस्वीर, यही सच है, ब्रिशंकू,, कहानियाँ, आँखो देखा झूठ, नायक खलनायक विदृूषक। हल ह, , (2)
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2 उपन्यास , आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी।, 9. पटकथाएँ , रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।, 9. नाटक , बिना दीवारों का घर।, , ० पुरस्कार , +, , महाभोज के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का पुरस्कार,, , * भारतीय, भाषा परिषद कोलकाता, 1982., * कला-कुंज सन्मान (पुरस्कार) नई दिल्ली., , भारतीय संस्कृत संसद कथा समारोह (भारतीय संस्कृत कथा) कोलकाता, 1983., * बिहार राज्य भाषा परिषद, 1991., , * राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, 2001-02., , * महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, 2004., आदि पुरस्कारों सम्मानित किया गया।, , 1.3.2 जीती बाजी की हार कहानी का परिचय, , मननू भंडारी द्वारा लिखित जीती बाजी की हार' कहानी सामाजिक यथार्थ एवं नारी स्वतंत्रता, को प्रस्तुत करती है। कहानी में चित्रित तीन लडकियाँ, आशा, नलिनी और मुरला पढाई में अधिक, रूचि रखती हैं। उन्हें सिफ अपने भविष्य की एवं करियर॑ की चिंता लगी रहती है। तीनों नारी, स्वतंत्रता का पुरस्कार करती है। उन्हें विवाह संस्था में विश्वास नहीं। पुरषी दासता पसंद नहीं है।, विवाह किए बिना वे अपने पैरों पर खडी रहना चाहती है। उनका मानना है पुरुष या पति विकास, पथ का रोडा है। परिणामत: उन्हें समाज मान्यता स्वीकार नहीं। कॉलेज, पुस्तकालय, पढाई, यही, उनकी दुनिया है। इसके अलावा वह तीनों कुछ सोचती ही नहीं। मगर परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी, , (3)
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को शादी करनी पडती है और तीसरी को कुछ दिनों के बाद आह, अकेलेपन तथा रीतेपन का एहसास हो जाता है। और वह अपनी सहेली के बेटी की शो पे, है। मनन्नू जी ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक व्यक्ति ने अपने व्यक्तिगत करियर के सथ-सा, सामाजिक दायित्व को अहमीयत देनी चाहिए। समाज का अस्तित्व बनाए रखते हुए सामाकिह, जिम्मेदारियों का पालन करना अनिवार्य है।, , बनती है कि तीनों में से दो, , 1.3.3 'जीती बाजी की हार कहानी का कथानक, , प्रस्तुत कहानी मन्नू भंडारी के मैं हार गई कहानी संग्रह में संकलित है। मन्नू भंडारी जी का, कहना है कि समाज रूपी नैया को चलाना है तो प्रत्येक व्यक्ति ने अपने सामाजिक दायित्व के, निभाना चाहिए। प्रस्तुत कहानी जीती बाजी की हार में लेखिका ने मुरला' के माध्यम से व्यक्ति, के सामाजिक दायित्व को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है।, , कॉलेज में आशा, नलिनी और मुरला तीन युवा लडकियाँ पढ़ाई कर रही है। तिनों का स्वभाव, एवं रहन सहन का तरीका कॉलेज के अन्य लडकियों से अलग किस्म का है। ये तीनों अन्य, लडकियों से दूर रहती है। मगर तीनों में जीगरी दोस्ती है। इन तीनों की अपनी एक अलग दुनिया, है। जो हमेशा कुछ ना कुछ पढ़ती रहती है, हमेशा पुस्तकालय में पडी रहती है। इन्हें पुस्तकों से, अत्यधिक लगाव एवं प्यार है। तीनों हमेशा पढी पुस्तकों पर बहस करती रहती हैं। उन्हें हमेशा अपने, करियर एवं भविष्य की चिंता रहती है। तीनों ने अपने करियर को ही सब कुछ माना है। वे अपने, आप को पुरषी दासता से दूर रखना चाहती है।, , तीनों सहेलियाँ नारी स्वतंत्रता की समर्थक है। तीनों विवाह संस्था से दूर रहना चाहती है।, उन्होंने विवाह न करने का निश्चय किया है। पर सामाजिक परंपरा एवं विवशता की पहली शिकार, नलिनी हो जाती है। पहले नलिनी विवाह करती है, उसका पति प्रोफेसर है। जो स्वतंत्र प्रकृति के, व्यक्ति है। विवाह के कारण नलिनी की पढाई कुछ समय के लिए खंडित होती है। पूरे डेढ़ वर्ष, के बाद अपनी पाँच महीने की कन्या को लेकर वह अपनी सहेलियों से मिलती है। उसके मुख में, अपने पति की प्रशंसा और बेटी के प्रति दूलार के सिवा कुछ नहीं। अब उसकी दुनिया घर, पति, और बच्ची के अतिरिक्त कुछ नहीं।, , आशा और मुरला एम.ए. प्रथम वर्ष पूरा करने के बाद विश्वविद्यालय में प्रथम और दूवितीब, स्थान प्राप्त करती है। दीवाली की छुट्टियों में आशा मामा के यहाँ चली गयी। वहाँ उसका परिचर्य, प्रतिभासंपन्न कवि से होता है। कवि के कविता में आशा इतनी रंग जाती है कि कवि का देर मे, , (५)
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#. अत 5., , आना भी उसकी व्याकुलता का कारण बनता है। वह पूर्ण रूप से कवि की ओर आकर्षित होती, , है। उसके मन में कवि प्रति प्रेमभाव निर्माण हो जाता है। एम.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही आशा, का विवाह कवि के साथ हो जाता है।, , मुरला एम्. ए. में विश्वविद्यालय में प्रथम आती है। उसकी काफी प्रशंसा होती है। अनेक, युवक उसके साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट करते हैं। पर वह साफ इन्कार कर देती है। मातापिता ने समझाने पर भी वह नहीं मानती। अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए शोधकार्य में उलझी रहती, है। वह शिक्षा विभाग में ऊँचे पद पर पहुँच जाती है। एक दिन वह अस्पताल में आशा से मिलती, है। आशा अपने पति एवं बच्चे के बारे में बोलती रहती है। साथ ही आशा, मुरला को विवाह, करने की सलाह देती है। मगर मुरला विवाह न करने के अपने निश्चय से टस की मस नहीं होती।, आशा, मुरला से विवाह के बारे में शर्त लगाती है। आशा को आशा है कि मुरला एक ना एक, दिन जरूर विवाह करेगी। दोनों में शर्त लगती है और तय होता है कि शर्त हारने पर आशा, मुरला, को जो माँगेगी सो देने कि लिए तैयार हो जाती है।, , पंद्रह साल के बाद अविवाहिता मुरला एक सभा का सभापतित्व भूषित करने के लिए, इलाहाबाद गयी थी। तब उसकी भेंट आशा से हुई। आशा ने अपने परिवार के बारे में सब, कुशल मंगल मुरला को बताया और शर्त की याद दिला दी। शर्त के अनुसार आशा मुरला को, जो माँगना है वो माँगने के लिए कहती है। इन दिनों मुरला के मन में आशा के बच्चों के प्रति, , अपनत्व एवं ममत्व निर्माण हो गया था। अंत में मुरला शर्त के अनुसार आशा की छोटी लडकी, को माँगती है।, , मुरला बाजी जीतकर भी हार जाती है। शायद उसे अकेलेपन का एहसास हुआ होगा। कहानी, के माध्यम से स्पष्ट होता है कि समाज को आगे बढाना है तो समाज मान्यताओं का स्वीकार तथा, पालन करना अनिवार्य है। तो ही समाज का अस्तित्व बना रहेगा। वर्तमान समय में अनेक युवक, एवं युवतियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। अपने अच्छे करियर का सपना देख रहे है। उनका ध्यान, खुद की ओर भी नहीं हैं और समाज की ओर भी। युवा लडकियाँ, शादी, बच्चे पसंद नहीं करती।, वे नारी स्वतंत्रता की समर्थक है। पुरुष की दासता उन्हें पसंद नहीं। वे जनम भर अविवाहित रहना, चाहती है। अगर सभी ऐसा विचार करें तो समाज आगे कैसे बढेगा। अत: सामाजिक मान्यताओं का, पालन समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है। जो अविवाहित रहना चाहते है उन्हें अन्यों, , की आबाद दुनिया देखकर पश्चाताप हो जाता है और उन्हें अकेलेपन एवं गलती का. एहसास हो, जाता है।, , , , (5)