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हरिवंशराय बच्चन, , 'हालावाद' के प्रवर्तक हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर, 1907 को इलाह्मवा, में हुआ था। सन् 1952 में इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि, प्राप्त की। कुछ महीने आकाशवाणी में कार्य करने के उपरान्त सन् 1955 में इनक, नियुक्ति भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय में हिन्दी-विशेषज्ञ कें पद पर हुई। 10%, ई. में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए, जहाँ ये छह वर्ष तक रहे।, , बच्चन का काव्य के साथ-साथ गद्यदक्षेत्र में भी .पूर्ण अधिकार है। ग्, के क्षेत्र में इनकी आत्मकथा एक सशक्त कृति है। इसकी रचना चार खण्ठों, , उपलब्ध है-क्या भूलूँ क्या याद करूँ”, 'नीड़ का निर्माण फिए'; बसेरे से दृ, दशद्वार से सोपान तक!, , प्रत्भुत अंश बच्चन की आत्मकथा के तीसरे भाग से उद्धुत है। कैम्ब्रिज की शिक्षा समाप्त कर घर लौटते हुए, उन्हें जो. एहसास हुआ, उन्होंने उसका सुन्द, , सजीव वर्णन किया है। /, , 62 : गद्य संचयन, , 4
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न मा, , एक क्षण के लिए मैं पहिए के सामने.नतमस्तक-हो-गया।, --- है सन्त, तुम्हारे उस बलिदान का सन्देश मैं कभी न भूलूँ। न जाने अभी, जीवन कितना है, और न जाने अभी कितनी बार ऐसे पहियों के नीचे होकर जाना, है। हेन, 'बों वइयाज़' (यात्रा शुभ हो) कहकर अपना हाथ उठा रहे थे। और उनके, उत्त उठे हाथ में मुझे सेंट कैथरीन का आशीषदायी हाथ भी दिखाई पड़ा था।, , कल, , हन्दन में दो दिन, दो रात रहना था। लगता था, कैसे कटेगा यह वक़्त। अब जी, , - चाहता है कि जल्दी से जल्दी जाकर जहाज में बैठ जाऊँ और वह चले और वम्बई, , --अ्ञने के पहले कहीं -कभी न रुके। खैरियत है, कुछ करने को था। 14 को लन्दन, , 5“ रेशन के गोदाम में जाकर चेक कंरना था कि जो सामान कैम्ब्रिज से थॉमस कुक, , ने इकट्ठा करके भेजा है, वह ठीक पहुँच गया है कि नहीं। 15 को वह जहाज में, लदने वाला था। उसी दिन लन्दन यूनिवर्सिटी के ओरियंटल विभाग में मुझे अपनी, कुछ कविताएँ रिकॉर्ड करानी थीं, 18 को वहाँ एक हिन्दी कवि-सम्मेलन आयोजित, था। मैं तो रुक॑ नहीं सकता था, मेरी कुंछ कविताएँ सुनवाने को रिकॉर्ड कर ली, गयीं, मुझसे वादा किया गया था कि उसकी डिस्क बनवाकर भेज देंगे। अभी तक, , तो वह आयी नहीं।, , रात जैसे-तैसे कट गयी। हह 05, , 15 को दिन को कया करूँ? लन्दन में रहो तो कुछ घूमो-फिरो, कुछ करो-धरो।, , लन्दन का गार्डन अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया-भर में प्रसिद्ध है। देखने, चला गया। जप, , वाग अपनी पूरी जवानी पर था, , शैजा1 910ए0७8 ह, , छिगाट 1४४७ #]0ए05, , अप्रैल की झड़ी, , मई फूलों की लड़ी। ;, , और अप्रैल की बरसात से मई में जो फूल आये थे, वे जून के पहले पखवारे, तक लहलहा रहे थे। पर हरे-भरे पौधों के बीच से झाँक रही थी तेजी, रंग-बिरंगे, , फूलों से अमिताभ-अजिताभ |, इंग्लैण्ड में आखिरी रात । इंग्लैंड में पहली रात भी इसी होस्टल में, घटनावश,, , : उसी कमरे में काटी थी। तब से ठीक दो बरस, दो महीने, दो दिन की न जाने, , ९, , 7 कितनी सुखद-सुखद घड़ियों पर उंगली रखती स्मृति निद्रालोक में खो गयी है।, , हरिवंशराय बच्चन : 65