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8.1, , 8.2, , 8.3, , 8.4, , 8.5, , , , , , , , , , 8. घर लौटते हुए (आत्मकथा अंश), , उद्देश्य, प्रस्तावना, , विषय विवरण, , 8.3.1 हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय, , 8.3.2 साहित्यिक रचनाएँ, 8.3.3 पाठ का परिचय, 8.3.4. पाठ का आशय, स्वयं-अध्ययन के लिए प्रश्न, , पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ, , 53, , - हरिवंशराय बच्चन
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8.6. स्वयं-अध्ययन अ्रश्नों के उत्तर, , 8.7. सागंश, , 8.8. स्वाध्याय, , 8.9 क्षेत्रीय कार्य, , 8.10 अतिरिक्त अध्ययन के लिए, , 8.1 उद्देश्य, प्रस्तुत आत्मकथा अंश के अध्ययन के बाद आप, * .हरिवंशराय बच्चन के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित होंगे।, * कथेतर साहित्य की आत्मकथा विधा से परिचित होंगे।, , * घर लौटते हुए आत्मकथा अंश का आशय जान लेंगे।, , 8.2 प्रस्तावना, , प्रस्तुत पाठ हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा के तीसरे भाग से लिया गया है। शिक्षा के लिए, लेखक को घर से दूर रहना पडता है। बच्चन जी कैम्ब्रिज में रहकर शिक्षा लेते है। अपनी पढाई, पूरी होने के बाद घर लौटते वक्त उन्हें जो एहसास हुआ, उसका सुन्दर एवं सजीव वर्णन किया है।, , 8.3 विषय विवरण, , 8.3.1 हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय, , हालावादी काव्य के प्रवर्तक हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर, 1907 को इलाहाबाद, में हुआ। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सन 1952 में इन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।, काव्य के कारण इनकी प्रसिद्ध होने पर भी इनके आत्मकथा के चार भागों में अपने जीवन के, कटूसत्य को उजागर किया है। आकाशवाणी में कार्य करने के उपरान्त भारत सरकार ने सन 1955, में विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्ति की। सन 1966 में राज्यसभा के सदस्य, मनोनित हुए।
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8.3.2 साहित्यिक रचनाएँ, , कविता संग्रह : मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, खादी के फूल, सूत की, माला, मिलन यामिनी, आकुल अंतर आदि।, , आत्मकथा : क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान, तक, , 8.3.3 पाठ का परिचय, , प्रस्तुत पाठ 'घर लौटते हुए' बच्चन की आत्मकथा का अंश है। हरिवंशराय बच्चन ने, कान्य के साथ-साथ आत्मकथा के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा कार्य किया है।. आप ने कैम्ब्रिज, विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। घर से दूर रहकर पढ़ाई पूरी करने के बाद जब, , वे घर लौट रहे थे तब उन्हें जो एहसास हुआ उसका चित्रण प्रस्तुत आत्मकथा अंश में चित्रित, किया है।, , 8.3.4 पाठ का आशय, , हालावादी काव्यधारा के प्रमुख प्रवर्तक डॉ. हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा के चार खंड, प्रकाशित है। प्रस्तुत आत्मकथा अंश 'घर लौटते हुए! तीसरे खंड में संकलित है। पीएच.डी. की पढ़ाई, के लिए बच्चन जी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रहते थे। घर से दूर रहकर पढ़ाई पूरी करने के बाद, अब वे घर लौट रहे है। घर जाने के विचार से घर के सारे सदस्य उनके आँखों के सामने आते, है। इतने दिनों बाद घर लौट रहे बच्चन जी घर के लोगों के लिए कुछ खरीदना चाहते थे। उन्होंने, अमित के लिए छरैं वाली बंदूक खरीद ली। बंटी के लिए बिजली से चलने वाली रेलगाडी और राजन, के लिए टाई ले ली। अपने लिए और तेजी के लिए कुछ नही खरीदा। कैम्ब्रिज के प्राकृतिक सौंदर्य, पर बच्चन जी ने अपने बाबा के साथ अखिरी नजरे डाली। वे इतने दिनों बाद घर लौटने की, उत्सुकता में बच्चन जी बहुत खुश है।, , कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से घर लौटने के दिन सुबह ही लेखक और बाबा तैयार हो गए। दस, बजे घर से निकलने ही वाले थे, उतने में लेखक के मित्र उनसे मिलने आ गए। इन सबको बच्चन, जी ने गीत सुनाया, “बाबुल मोरा कैम्ब्रिज छूटो री जाये।, चार दोस्त मिल बक्सा उतारे, , ल्ब्छ
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हेन-हफ छूटो री जाय। बाबूल मोरा....., सेंट कँथ पर्वत भ्या, जीसस ग्रीन अकास,, जा गोरी घर आपने, मैं चला तेज के पास।, बाबुल मोर कैम्ब्रिज छूटो री जाये।”', , क्षैम्ट्रिज में बच्चन जी इतने समान हो गए थे कि अब एक तरफ घर लौटने की खुशी है, तो दूरी तरफ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय छोडने का दुःख है। बस स्टैंड पर जाने के लिए सेंट कैथरीस, कॉलेज के सामने से जाना पडता था। जैसे ही लेखक कॉलेज के सामने पहुँचे तो उन्हें देखकर मर,, हेन बाहर आ गये और कहने लगे- “मुझे मालूम था कि कैंम्ब्रिज छोडने के पहले तुम अपने कॉलेज, को एक नजर देखना चाहोगे।' लेखक का मन कॉलेज की यादों में अटका है। कॉलेज के फाटक, पर लगे सुनहले पहिए को देखकर लेखक को पुरानी बातें याद आती है- “सेंट कैंथलीन पुराकाल, में एक साध्वी थीं जिसे रोमनों ने लोहे के पहिए के नीचे कुचल-कुचलकर मरणांतक यातनाएँ दी, थीं। बाद में यही पहिया सेंट कैंथगीन की अदम्य आस्था का प्रतीक हुआ, जैसे क्रॉस क्राइस्ट का।”, बच्चन जी कहते है कि कैंम्ब्रिज में जब-जब उन्हें मानसिक यातनाओं से गुजराना पडा तब इस, पहिए को देखकर वह अपनी यातनाओं को भूल जाते थे। इस पहिए से जो प्रेरणा लेखक को मिलती, रही, उसके लिए सेंट कँथरीन को धन्यवाद दिये बिना वे कैंम्ब्रिज से जाना नहीं चाहते और उस, पहिए के सामने लेखक नतमस्तक हो जाते है।, , लेखक को हन्दन में दो दिन, दो रात रहना था। लेकिन लेखक जल्द से जल्द बम्बई जाना, चाहते थे। अपनी खूबसूरती के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध लन्दन की गार्डन देखने लेखक जाते है।, बाग का वर्णन करते हुए वो कहते है, “बाग अपनी पूरी जवानी पर था।, अप्रैल की झड़ी, मई फूलों की लड़ी।”, , अप्रैल की बरसात से मई में जो फूल आये थे, वे जून के पहले पखवारे तक लहलहा रहे, थे। पर हरे-भरे पौधों के बीच से झाँक रही थी तेजी, रेग-बिरंगे फूलों से अमिताभ-अजिताभ।, , पिछले दो बरस, दो महिने और दो दिन की यादों के साथ लेखक इंग्लैंड की इस आखरी रात, में निद्रावश हो जाता है। कितनी सुखद-सुखद घडियों की स्मृति में लेखक खो जाते है।