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9. धरती और धान (जीवनी अंश), , - पाण्डेय बैचन शर्मा “उग्र”, , , , 9.1, 9.2, , 9.3, , 9.4, 9.5, 9.6, 9.7, 9.8, 9.9, , 9.10, , 9.1, , , , उद्देश्य, , प्रस्तावना, , विषय विवरण', , 9.3.1 पाण्डेय बैचन शर्मा उग्र' का जीवन परिचय, 9.3.2 साहित्यिक रचनाएँ, , 9.3.3 पाठ का परिचय, , 9.3.4 धरती और धान! जीवन अंश का सारांश, स्वयं-अध्ययन के लिए प्रश्न, , पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ, , स्वयं-अध्ययन प्रश्नों के उत्तर : !, , सारांश, , स्वाध्याय, , क्षेत्रीय कार्य, , अतिरिक्त अध्ययन के लिए।, , उद्देश्य, प्रस्तुत आत्मकथा अंश के अध्ययन के बाद आप, * पाण्डेय बैचन शर्मा उम्र' के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित होंगे।', * जीवनी इस साहित्य विधा से परिचित होंगे।, , , , , , त्क्र)
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.., , * जीवनी की परिभाषा और विशेषताओं से परिचित कराना।, , * “धरती और धान इस जीवनी से पाणडेय बैचन शर्मा 'उग्र' की चारित्रिक विशेषताओं रु, परिचित होंगे।, , * “धरती और धान इस जीवनी का आशय से परिचित कराना।, , 9.2 प्रस्तावना, , प्रस्तुत पाठ 'धरती और धान' पाण्डेय बैचन शर्मा उग्र” की आत्म जीवन से लिया गया है, लेखक ने अपनी पारिवारिक दरिद्रता पर घनघोर प्रकाश इस जीवनी अंश में डाला है। इस जीवनी, अंश में लेखक ने धरती की तरह गंभीर, धैर्यवान माँ और सौम्य, शान्त, सत्यवादी पिता की अकाल, मृत्यु तथा भाइयाँ को छोड़कर सामलीला मण्डली में शामिल हो जाना, आदि अदभुत चित्र प्रस्तुत किए, है। मन भर गेहूँ पीसकर रोटी जुटानेवाली माँ के क्रोध की अप्रतिम तस्वीर भी इस अंश में दिखाई, , 41३, , देती है। लेखक कहते है कि माँ अपने बच्चे के लिए धरती भी है और धान भी, पालक भी है, और संरक्षिका भी है। ., , 9.3 विषय विवरण, , 9.3.1 पाण्डेय बेचन शर्मा “उग्र” का जीवन परिचय, , पाण्डेय बेचन शर्मा उम्र” का जन्म संने 1900 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के चुनार, नामक कस्बे में ब्राहमण परिवार में हुआ। पारिवारिक दरिद्रता के कारण छोटी सी उम्र में ही लेखक, को रामलीला मण्डलियों में शामिल होना पडा। रामलीला मण्डलियों के साथ देश के अनेक भागों में, जाने का अवसर प्राप्त हुआ। जीवन की इसी पाठशाला में उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला। बम्बई, के सिनेमा जगत में काफी दिनों तक रहने के बाद जीवन के अंतिम दिनों में आप दिल्ली में रहने, लगे। उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में आपका नाम सराहनीय रहा है। इन्हें प्रेमचंद युग के सबसे, , बदनाम उपन्यासकार माना जाता है। आपके उपन्यास और कहानी में भारतीय जीवन की विकृतियों, का सजीव चित्रण किया है।, , 9.3.2 साहित्यिक रचनाएँ, , उपन्यास ; बुधुआ की बेटी, दिल्ली का दलाल, चन्द हसीनों के खतूत आदि।
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कहानी संग्रह : दोजख की आग, सनकी अमीर उम्र का हास्य, निर्लज्जा, बलात्कार, जब, , सारा आलम होता है, कला का पुरस्कार पुजाब की महारानी, चिनगारियाँ इंद्रधनुष, व्यक्तिगत, रेशमी आदि।, , . आपने सन 1960 में अपने गुरू की इक्कीस वर्ष की जिन्दगी को लेकर “अपनी खबर' नामक, प्रसिदध जीवनी लिखी। 'गालिब उप्र' नाम से गालिब के दीवान का भी संम्पादन आपने किया।, , आपकी अधिकांश रचनाएँ उपलब्ध नहीं है और अधिकांश ब्रिटीश सरकार द्वारा जब्त कर ली, गयी।, , 9.3.3 पाठ का परिचय, , “धरती और धान पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र” की आत्म जीवनी का अंश है। पारिवारिक दरिद्रता, के कारण उनका पूरा परिवार दुःखी था। इसमें अपने परिवार की आर्थिक दशां का चित्रण लेखक, ने किया है। इस जीवनी अंश में लेखक ने धरती की तरह गंभीर घधैर्यवान माँ और सौम्य, शांत,, सत्यवादी पिता की अकाल मृत्यु तथा भाइयों को छोडकर रामलीला मण्डली. में शामिल हो जाना,, आदि अदभुत चित्र प्रस्तुत किए है। वस्तुत: माँ अपने बंच्चों के लिए धरती भी है और धान भी,, पालक भी है और संरक्षिका भी। ऐसी ही माँ उजडूड भोलेपन का चित्रण ही प्रस्तुत जीवनी अंश, का उद्देश्य है। वास्तविक रूप में यह माँ केवल जीवनीकार की .ही माँ नहीं है, बल्कि करोडों, भारतीयों की उजड्ड, भोलीभाली माँ है। दूसरे प्रकार से यह भारतमाता है। यह उस भारतमाता का, चित्र है, जो हमारे गॉवों-शहरों, गेली-मुहल्ले में कूटती-पीसती हुई माँ के रूप में विद्यमान है।, उसकी और किसी सम्भ्रान्त जन की नजर नहीं जाती है। बेचन शर्मा उग्र” बहुत ही व्यक्तिगत, धरातल पर एक केंटीले व्यंग्य के साथ अपनी माँ के भीतर से करोंडों भारतीय माताओं के दर्शन हमें, कराते. है। यही आपके इस जीवनी अंश की महत्वपूर्ण विशेषता है। लेखक ने प्रस्तुत जीवनी अंश, में माँ को बखूबी रूप में. अभिव्यक्त किया है।, , 9.3.4 धरती और धान जीवन अंश का सारांश, , प्रस्तुत गद्यांश 'धरती और धान' पाण्डेय बैचन शर्मा उग्र" की स्वलिखित जीवनी का अंश, है। लेखक ने अपने परिवार की आर्थिक दशा का चित्रण इसमें किया है। बचपन से गरीबी का, सामना कैसे किया इसका सशक्त चित्रण इस पाठ में किया है।, , लेखक अपनी माता को “आई!” कहकर पुकारा. करता था। महाराष्ट्र में तो घर घर में माता, को “आई ही. संबोधित किया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश में माता को आई संबोधन से नहीं, , ्ब्छ
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1, को 5ग्र' नहीं बल्कि उर्द कहती थी।, पुकारता कहते थे। माँ लेखके कल लेखक, कक अनपढ़ थी कि जो सार्थकता उन्हें उर्द' जी में मिलती थी बह, कण बिल्कुल नहीं।'' लेखक के पिताजी दिवंगत बैजनाथ पाण्डे चुनार के खासे धनिक वी, नहीं, के ५, साहु के राम-मन्दिर में वैतनिक पुजारी थे। उन्हें पाँच रूपये वेतन मिलता था।, , चुनारं में एक बहुत बडा जमींदार था, जिसके मरने के बाद उसके दोनों पुत्रों में सम्पत्ति के, लिए घोर अदालती संघर्ष हुआ। जमींदार के बडे लडके ने कुल-पुरोहिंत की हैसियत से लेखक के, पिता का नाम गवाहों में लिखा दिया। इनकी गवाही पर बडा भाई हार गया और लेखक के पिता, के पल््ले सिवाय सत्य के और कुछ भी नही पडा। बैजनाथ पाण्डे चरित्रवान, सुदर्शन और सत्यवादी, , थे।, , लेखक के पिता की जलालपुर के निकट माफी गाँव में चंद बीघे जमीन थी, उसी पर झक़े, घर का गुजारा होता था। वे बिहारी साहु के मंदिर में वैतनिक पुजारी थे, पर वेतन कभी नहीं लेते, थे। वे गीता के परम भक्त थे, शैव परिवार में पैदा होकर भी वैष्णववादी थे। चालीस वर्ष की उम्र, में ही वे क्षय रोग के कारण बैकुंठ बिहारी के प्यारे हो गए। उनके बारह बच्चे थे। लेखक ने अपनी, गरीबी के बारें में लिखा है - “मैने अपने पिता को बुरी तरह बीमार देखा, घर में चारों ओर निशा!, स््क्र पिता का मरना, आई का पछाड खा-खाकर रोना मुझे मजे में याद है यद्यपि तब मै बहुत छोटा, था। जब मेरे पिता का देहांत हुआ, मैं महज दो साल और छह महीनों का था। यानी मैने जब जग, , ही आँखें खोलकर दंनिया को देखा तो मेरा सरपसरस्त कोई नहीं। प्राय: जन्मजात अनाथ-ऐसा-जिस, पर किसी का वरदहस्त नहीं रहा।, , घर में खाने वाले मुँह ज्यादा थे और कमानेवाला हाथ एक भी नहीं था। लेखक का परिवार, आर्थिक स्थिति से पीडित था। पिता के देहांत के समय लेखक का बडा भाई बाईस वर्ष का था।, उसका विवाह हो चुका था। मेंझला भाई सोलह-सत्रह साल का था जो पिता के देहांत के कुछ, ही दिन बाद भाई और भाभी से लड़कर अयोध्या गया. और साधु बनकर रामलीला- मण्डलियों, में अभिनय करने लगा। तब लेखक चार साल का था। लेखक की माँ ने कडी मेहनत करके, अपने बच्चों की परवरिश की। लेखक की चाची को पुत्र ना होने के कारण पुत्रमोह में वह इनसे, प्यार करती थी। इस दरिद्री अवस्था में लेखक ने अपने जीवन के सोलह साल काटे। उस, , दरिद्री कच्चे घर को माँ अकेली ही होली-दीवाली पर मिट्टी से लिपती थी। फटे-पुराने कपडों को, , अच्छे से सी देती थी। माँ कागज गला पल्प पंख, ल्प टोकरियों सींक, बनाती थी। ब्याह बनाकर उससे टोकरियोँ बनाती, सींक के पं, , -गौना, कथा वगैरह में सामयिक गीत गाने वालियों में वह आगे रहना चाहती थी।, , _्ढ)