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अनुक्रम, 5.1 उद्देश्य, 5.2. प्रस्तावना, , 5.3 विषय विवेचन, 5.3.1 निर्मल वर्मा का परिचंय, , 5.3.2 'पहाड. कहानी का परिचय, , 5.3.3 पहाड' कहानी का कथानक, , 5.4 स्वयं-अध्ययन के लिए प्रश्न, 5.5 - पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ, 5.6 स्वयं-अध्ययन प्रश्नों के उत्तर, 5.7 सारांश, , 5.8 स्वाध्याय, , (3) 2
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5.9 क्षेत्रीय कार्य, , 5.10 अतिरिक्त अध्यंयन के लिए।, , 5.1 उद्देश्य, प्रस्तुत इकाई के अध्ययन के बाद आप * निर्मल वर्मा की साहित्यिक कृतियों से परिचित होंगे।, * शांति जीवन की समरसता को जान जायेंगे।, * कहानी की सुखद अनुभूतियों को अनुभव करेंगे।, * . रमणीय प्राकृतिक रूपों को देख सकेंगे।, * बच्चे के भावविश्व से परिचित होंगे।, * कहानी से संक्षिप्त होने पर भी रोचकता महसूस करेंगे।, , 5.2 प्रस्तावना, , 'ज्ञानपीठ जैसे साहित्य क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित निर्मल वर्मा मानव मन की, गहराइयों को -अपनी रचनाओं में अधिक प्रधानता देनेवाले साहित्यकार रहे हैं। उनकी कृतियों में, मानवी मन की स्थितियों पाठकों को निश्चित रूप से झकझोर देती है। पहाड' इस कहानी के, केंद्रबिंदू के रूप में एक सुखपूर्वक जीवन बितानेवालां पति, उसकी प्यारी पत्नी और उनकी छोटी, संतान है। यह पति-पत्नी अपने जीवन का पूरा मजा बड़ी दिलचस्पी के साथ लेते है। दोनों का, एक-दूसरे के प्रति काफी आकर्षण है। कई बार दोनों अपना समय रोमानी अनुभूतियों के साथ गुजारते, हुए एक आदर्श दांपत्य जीवन की मिसाल पाठकों के सामने रखते है। उनकी संतान भी इसमें उनका, साथ देती है किंतु उस छोटे बच्चे के मन में कई जिज्ञासाएँ हैं। प्रकृति का मनोरम रूप॑ और इस, परिहार का ताना-बाना लेखक ने बहुत ही सुंदरता से गूँथने का काम किया है।, , 5.3 विषय विवेचन, , 5.3.1 निर्मल वर्मा का परिचय, , सन 1929 में जन्में निर्मल वर्मा का जन्म भारतीय पर्यटन स्थलो में एक विख्यात स्थान सिमला, , कर
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में हुआ। पहाडों की प्राकृतिक सुंदरता में उनका बचपन बीता। इतिहास विषय लेकर उन्होंने एम.ए्, किया। इसके पश्चात कुछ वर्षों तक वे अध्यापन क्षेत्र में कार्यरत रहे। उनके व्यक्तित्व की सके, बडी विशेषत: यह थी कि वे घुमक्कड प्रवृत्ति के थे। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण उन्होंने य॒रेप, की कई हूम्बी यात्राएँ भी की। वे अन्तर्मुखी चेतनाओं के सजग साहित्यकार रहे।, एछ रचनाएँ 'परिंदा', 'जलती झाड़ी”, पिछली गर्मियों में', 'बीच बहस में', 'चीडों पर चाँदनी' (यात्रा, वर्णन), वे दिन! (उपन्यास), 'लन्दन की रात” (कहानी) आदि।, , 5.3.2 'पहाड' कहानी का परिचय, , निर्मल वर्मा द्वारा लिखित पहाड' यह कहानी संक्षिप्त किंतु मार्मिक भाषा में लिखी गयी, कहानी है। कहानी में चित्रित पति-पत्नी अपने जीवन को रोमानी भावधारा के कई क्षणों के साथ, जीते नजर आते हैं। बच्चा होने पर भी उन दोनों की चित्तवृत्तियों में कोई अंतर नहीं आता है न, ही वे अन्य दांपत्तियों की तरह संतान होने के बाद विरक्त होते हैं। जीवन को जीने की उनकी, अपनी एक विशेष शैली है, जिसमें सुख, आनंद और रोमानी परिवेश है। दोनों प्रकृति के बीच अपने, बच्चे के साथ जाकर जीवन का. एक अलग लुफ्त उठाते हैं और यहीं इस कहानी की विशेषता है।, भारतीय परिवारों में ऐसे बहुत कम परिवार हैं जो इस प्रकार का जीवन जीते हैं। प्रस्तुत कहानी के, , माध्यम से लेखक ने सभी पारिवारिक परेशानियों के पार जातें हुए आदर्श रोमानी परिवार को प्रस्तुत, किया है।, , 5.3.3 'पहाड' कहानी का कथानक, , यह कहानी एक आर्किटेक्ट पिता, उनकी प्यारी पत्नी और उनके छोटे बच्चे की है। हर रात, सोने से पहले वह बच्चा अपने माता-पिता से पहाडों पर घूमने के लिए जाने का सवाल पूँछता था, तो माँ खिडकी से बाहर कही दूर देखती रह जाती थी। पिताजी कागज पर अपनी पेन्सिल को घुमाते, एक क्षण के लिए रुक जाते थे। पति और पत्नी एक-दूसरे को बेहद चाहते थे। पतझड़ के मौसम, के साथ पूरा एक साल बीत जाता था।, , लेखक को सुखी दम्पत्ति देखने में अच्छे लगते हैं और उनका आपस में प्यार करना एक, चमत्कार जैसा लगता था। दोनों के जीवन में पुरानी स्मृतियाँ थी। कहानी में चित्रित यह पति-पत्नी, एक-दूसरे से ऐसे घुल-मिल गये थे जैसे उसमें कौनसा पत्ता किसका है? यह पहचानना मुश्किल हो, , सर
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गया था। वे पूरी समससता के साथ अपना जीवन यापन कर रहे थे। वैवाहिक जीवन को खुशी से, जीते-जीते उन्हें एक संतान की भी प्राप्ति हो चुकी थी। संतान के जन्म के बाद भी उनके जीवन, के रंग कम नहीं हुए थे बल्कि वे रंग और भी गाढ़े हो गये। वे जीवन के प्रति बिल्कुल विरक्त, नहीं हुए।, , वे दोनों अक्सर हर साल घूमने के लिए पहाड़ों पर चले जाते थे। ऐसे ही जीवन के कई वर्ष, एक के बाद एक गुजर गये। एक साल अक्टूंबर के महिने में वे फिर उन पहाडियों पर चले गए।, दोनों को वह स्थल बहुत प्रिय था। विवाह के पश्चात कुछ दिन वे वहाँ रहने के लिए गये थे। वहाँ, की बेंच, लोअर बाजार जानेवाला पगडंडी का मार्ग, पुराने चर्च का कोना, वहीं पुराना होटल सबकुछ, वैसा ही था। पतझड के मौसम के कारण पर्यटकों की संख्या कम थी। उसी होटल में वहीं कमरा, फिर से मिला वहाँ वैवाहिक जीवन के आरंभ की कई सुखद रातें एक-दूसरे के साथ गुजारी थी।, थकावट सी महसूस होनेपर आये हुए दिन ने कही बाहर नहीं गये। अपनी पुरानी स्मृतियों को जगाते, हुए दोनों एक-दूसरे की बाँहों में लेटे थे। बाहर वह छोटा बच्चा सो रहा था।, , पतझड़ के उस मौसम में पेडों से गिरे हुए पत्तों की एक अलग सी गंध पूरे परिवेश में छायी, हुई थी, तभी वह बच्चा जाग गया और अपने माता-पिता की रोमानी छायाओं को बड़ी आँखें करके, देखने लगा। माँ ने उसके पास आकर उसे सहलाया तो बच्चा ने फिर से पहाडों पर जाने के बारे, में पूछा। माँ ने उसे आसपास के पहाड़ों को देखने के लिए कहा। बच्चा चूप होकर अपने मातापिता की तरफ देखने लगा। तीनों उसी शाम अंधेरा होने से पहले उन पहाड़ों की ओर चले गये।, बच्चा गोद में बैठने की अपेक्षा पैदल ही चल रहा था।, , सर्द मौसम में सफेद हल्के बादल छा गये थे। शहर पर पीछी छाया छा गयी थी। हवा बिल्कुल, खामोश बन गयी थी। माल रोड पार करके चर्च के पास ग्रंथालय की लम्बी चौडी खिड़कियों पर, पर्त्ते झूल रहे थे। लम्बी चढ़ाई पैदल चढ़ने के बाद बच्चे की आँखें ज्वर से भर गयी। जंगल के, पार दूर देखने पर बर्फ से आच्छादित जो भाग दिखा दे रहा था, वहाँ चलने के लिए बच्चा कह, रहा था। बच्चे के स्तर में जो परायेपन की भावना थी, उसे माता-पिता ने पहचान लिया था। यहीं, तक ही उनको आना था। पति अपनी पत्नी से सर्दी लगने के बारे में पूँछता है। वे उस जगह खडे, थे। सामने वो बेंच थे जो अब काफी पुराने लग रहे थे। उनपर धूल और गिरे हुए पत्ते नजर आ, रहे। पति-पत्नी उन बेंचों की पुरानी स्मृतियों को याद कर रहे थे। बच्चा उसमें से ही एक बेंच पर, सिर रखकर सो गया। सामने दिखायी देनेवाली पहाडियाँ अंधेरे में डूब रही थी। पति ने पत्नी के कंधे, पर हाथ रखा तो उसने हाथ को अलग किया। पत्नी का यह कहना था कि बच्चे को यहाँ नहीं, लाना चाहिए था। वापस होटल जाने पर वह सब भूलेगा यह कहकर पति ने उसका समाधान किया।, , (5)