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कमलेश्वर ने वर्तमान जीवन की पीड़ाओं, संघर्षों को लेकर अपने. कहानी, साहित्य को अग्रसर किया है। इनकी कहानियाँ कोरी कल्पना पर आधारित नहीं, हैं, बल्कि वे आधुनिक युग के व्यावहारिक एवं वास्तविक जीवन का यथार्थ, : प्रस्तुत करती हैं। कमलेश्वर ने 1951 के आसपास कहानी लिखने की शुरुआत, की थी। आपकी पहली कहानी “कॉमरेड” अप्सरा मासिक पत्रिका में 1951 में, प्रकाशित हुई थी। उस, समय की विषम परिस्थितियों ने इन्हें झकझोर दिया।, इसीलिए कमलेश्वर ने- अपने साहित्य के माध्यम से लोगों के हृदयों में आस्था, उत्पन्न की, संघर्ष करने के लिए शक्ति जाग्रत की, अन्याय के विरुद्ध आवाज, उठाने के लिए प्रेरणा दी, भ्रष्टाचार -का पर्दाफाश कियां,.नांरी को सब्॒ल- बनने ., के लिए प्रोत्साहित किया, पुरातन जीवन मूल्यों के शिकंजे से मुक्त होने के लिए, जनमानस को तैयार किया। : का;, , कमलेश्वर का जन्म उप्र. के मैनपुरी में 6 जनवरी, 1982 को हुआ। नयी, कहानी आन्दोलन को प्रतिष्ठित कराने में वर्तमान साहित्यकारों के साथ अपनी, विशिष्ट भूमिका निभायी। धर्मयुग मासिक पत्रिका में 'ऐयाश प्रेतों का विद्रोह",, वदिमागों में दस्तक देतें प्रामाणिक लेखन के कथा पात्र” आदि शीर्षकों से एक, - लम्वी लेखमाला द्वारा हिन्दी कहानी को एक वैचारिक आधार दिया था। उनका, “कितने पाकिस्तान” 2000 में प्रकाशित हुआ था | वह अत्यन्त बहुचर्चित सशक्त, उपन्यास है जिसके दो वर्षों में छह संस्करण में आये थे।, , फिल्म और दूरदर्शन के क्षेत्र से भी कमलेश्वर जुड़े रहे। 1959 में भारत, में जब दूरदर्शन प्रारम्भ हुआ तब कमलेश्वर दो वर्ष स्क्रिप्ट राइटर बने रहे।, दूरदर्शन के लिए आपने “परिक्रमा” जैसा लोकप्रिय कार्यक्रम सात वर्षों तक प्रस्तुत, किया। इसके साथ ही '“चन्द्रकान्ता', 'दर्पण', 'बिखरे पन्ने', 'रित पर लिखे नाम", जैसे अनेक लोकप्रिय दूरदर्शन के धाराबाहिकों का लेखन कार्य निभाया। 'फिर, , कमलेश्वर : 31
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, डाक बँगला', छोटी-सी बात',. आऑँधी', आदि फेस, , वही', सारा आकाश , डे ं फिह्नों, - का पटकथा लेखन का कार्य भी कमलेश्वर ने किया। वे भारतीय दूरदर्शन दे, , नल डायरेक्टर जनरल भी रहे। ५ >, , ये सारिका' , ंगा', दैनिक जागरण, , दैनिक भास्कए' आदि, लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन कार्य भी किया है।, , नयी कहानी के आन्दोलन में कहानी की जड़ता को तोड़ने के लिए 'सारकि, , के माध्यम से 'समानान्तर कथा आन्दोलन' -चलाया। उनकी कहानी आरम्म, , ही सामान्य आदमी के दुख दर्द से जुड़कर उस संघर्ष का हिस्सा बनना चाहती ३, , सामान्य आदमी जो विभिन्न रूपों में, विशेष रूप से आर्थिक मुहानों पर लड़ रा, , है। इनकी कहानियों में भ्रष्ट होते राजतन्त्र, और प्रशासन व्यवस्था की समस्या,, , - शजनीति के अपराधीकरण और इन सबके बीच साधारण मनुष्य की छल्े जाने, , की पीड़ा का एहसास होता है। .., , जॉर्ज पंचम की नाक' कमलेश्वर की नयी कहानी दौर की एक बहुत सशक्त, , : और चर्चित कहानी है। यह कहांनी अपनी व्यंग्य की तीखी मार से देश की, , _ भ्रष्ट शासन-व्यवस्था, बीमार प्रशासन-तन्त्र, दफ्तरी-दुनिया के निकम्मेपन, सरकारी, , _ काम-काज की टालू नीति और देश में विभिन्न रूपों में हो रहे पश्चिमीकरण के, , __ नाम पर सेस्कृतिं के अपसंस्कृतिकरण आंदि की खबर लेती है--देश में क्या-क्या, , तैयारियाँ और रानी के खान-पान, रहन-सहन, वस्त्र-पोशाक आदि के सम्बन्ध मे, जो ख़बरें समाचार-पत्रों में छपती हैः उसे बहुत खूबसूरती से व्यक्त करते हुए, . कहा है-“शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूँजें हिन्दुस्तान में आ रही थी”, और भी,, ५98 महल में रहने और पलने वाले कुत्तों तक की तस्वीरें अखबारों में 8, रही थीं।” ऐसे में जॉर्ज पंचम की नाक उनके बुत पर होनी आवश्यक थी। ईह, अमस्या के समाधान हेतु जो सभाएँ बुलाई जाती हैं, उनमें जो प्रस्ताव आते है, वे बहुत बारीकी से हमारी सरकारी काम-काज की नीति और प्रक्रिया की पोते, पक पा हैं। मूर्तिकार के प्रस्ताव केवल ऊपरी तौर पर एक हास्य की, नेताओं की 'नाक' हल पीछे गहरी पीड़ा यह है कि इस देश के लोग अं, केवल इसलिए कि पा सारी राष्ट्रीय अस्मिता को दाँव पर लगा सकते », में तो अब अमेरिका इनके विदेशी आका प्रसन्न हो सकें। पहले इंग्लैंड के सब, हम जिन्हें अपनी के सन्दर्भ में इन स्थितियों में और बढ़ोत्तरी ही हुई ?', शर्म की बात हैं ब्प कटाने वाली बात” समझ रहे हैं, वास्तव में वे राष्धी, बात हैं | इस रूप में कमलेश्वर की यह कहानी आज भी प्रासंगिक, 32 : गद्य संचयन है
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“ विकराल रूप में करना पड़ रहा है। साथ ही हिन्दी कहानी का वह मुहावरा भी, इस कहानी के द्वारा अभिव्यक्ति पाता है जिसके माध्यम से वह हमारी जीवन _, “स्थितियों में सार्थक रूप से निरन्तर हस्तक्षेप कर रही है। ४
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कुछ होना चाहिए। जिसके बावर्ची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़, चुके हैं, उसकी शान-शौकत के कया कहने! ...और वही रानी दिल्ली आ रही हैं..., , नयी दिल्ली ने अपनी तरफ देखा और वेसाख्ता मुँह से निकल गया-वे, आये हमारे घर, खुदा की रहमत...कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते, हैं, और देखते-देखते नयी दिल्ली का कायापल़ट होने लगा।, , और करिश्मा तो यह था कि किसी ने किसी: से नहीं कहा, किसी ने किसी, को नहीं देखा-पर सड़कें जवान हो गयीं, बुढ़ापे की धूल साफ हो. गयी, इमारतों, ने नाजनीनों की तरह श्रृंगार किया., , लेकिन एक बड़ी मुश्किल पेश थी... वह थी जॉर्ज पंचम की नाक! ...नयी, दिल्ली में सब कुछ था, सब कुछ होता जा रहा था, सब कुछ हो जाने की उम्मीद, थी, पर जॉर्ज पंचम की नाक की बड़ी मुसीबत थी! नयी दिल्ली में सब कुछ, था...सिर्फ नाक नहीं थी।, , इस नाक की भी एक लम्बी दास्तान है। इस नाक के लिएं बड़े तहलके मचे, , थे किसी वक्त! आन्दोलन हुए थे। राजनीतिक पार्टियों ने प्रस्ताव पास किये थे।, चंदा जमा किया था ! कुछ नेताओं ने भाषण भी दिये थे। गर्मागर्म बहसें भी, थीं। अखबारों के पन्ने रंग गये थे। बहस इस बात पर थी कि जॉर्ज पंचम की, नाक रहने दी जाये या हटा दी जाये! और जैसा कि हर राजनीतिक आन्दोलन, में होता है-कुछ पक्ष में थे, कुछ विपक्ष में, और ज्यादातर लोग खामोश थे।, खामोश रहने वालों की ताकत दोनों तरफ थीं..., , यह आन्दोलन चल रहां था। जॉर्ज पंचम की नांक के लिए हथियारबन्द, पहरटार तनात कर दिये गये थे...क्या मजाल कि कोई उनकी नाक तक पहुँच, जाय। हिन्दुस्तान में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के, हाथ पहुंच गये उन्हें शानो-शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया, गया। शाही लाटों की नाकों क॑ लिए गुरिल्ला युद्ध होता रहा., , उसी जमाने में यह हादसा हुआ-इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम, की लाट की नाक एकाएक गायब हो गयी। हथियारबन्द पहरेदार अपनी जगह ,, तैनात रहे। गश्त लगाते रहे... और लाट की नाक चली गयी।, , | रानी आये और नाक न हो !. (एकाएक यह परेशानी बढ़ी। बड़ी सरगर्मी, शुरू हुई। देश के खैरख्याहों की एक मीटिंग बुलाई गयी और मसला पेश किया, गया कि क्या किया जाये? ...वहाँ सभी एकमत् से इस बात पर सहमत थे कि, अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जायेगी...।, , कमलेश्चर : 85