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राजेन्द्र यादव, , राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त, 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में, हुआ। आगरा के राजा की मण्डी नामंक मुहल्ले में उनका पैतृक घर है और इसी, घर में अपने माता-पिता की प्रथम सन््तान के रूप में राजेन्द्र का जन्म घरवालों, के लिए आनन्दोत्सव ही था। राजेन्द्र यादव तीन भाई तथा .छह बहनों के बड़े, भाई हैं। छह बहनों में से एक की मृत्यु हुई और शेष पाँच में से दो दिल्ली में,, दो जयपुर में तथा एक अमेरिका में स्थायी हो चुकी हैं। यादवजी के परिवार के, सभी सदस्य शिक्षित हैं। *, राजेन्द्रजी को प्राथमिक शिक्षा उर्दू में दी गयी। बचपन में नौ-दस साल, की उम्र में उनकी टाँग टूट गयी। इस विंकलांगता ने उन्हें प्रभावित किया और, उनकी शारीरिक गतिविधियाँ सीमित हो गयीं। ख्यातकीर्त लेखिका मेंन्नू भण्डारी, से राजेन्द्र यादव का परिचय हुआ। यही परिचय प्रेम विवाह में बदल गया। लेखन, दोनों के बीच सेतु बनंकर आ गया।-1961 को उनको एक पुत्री हुई। पुत्री का, आगमन उनके लिए सन्तोषप्रद था। दोनों ने. उसका नाम रचना रखा चूँकि यह, लड़की भी दोनों का सृजन थी।, , “ एम.ए. उत्तीर्ण होने के बाद हिन्दी अध्यापक का कार्य किया। नौकरी उन्हें, अपने स्वभाव और लेखन के प्रतिकूल लगी। यादव जी स्वतन्त्र रूप से लेखन, का कार्य करने लगे। उनकी पत्नी मन््नू भण्डारी प्राध्यापिका थीं, जो पारिवारिक, , *: चिन्ताओं का वहन कर सकने में समर्थ थी।, , राजेन्द्र यादव जी का प्रथम कहानी संग्रह 'प्रतिहिंसा' है जो कि सन् 1947, में लिखी गयी थी। प्रस्तुत कहानी 'घर की तलाश” इस कहानी संग्रह से ली गयी, है। यादव जी ने कुल दस कहानी संग्रहों का लेखन किया है।, , [कहानी गाँव के एक किसान के लड़के रामू की है। किसान के पास खेत,, , बैल, मकान सव कुछ था। उसका लड़का रामू खेलता था पढ़ता था और अगर, * मन में जा गया तो काम भी करता था |) /, , राजेन्द्र यादव : 5
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गाँव का एक बूढ़ा हीरा रामू को कहानियाँ सुनाता था। कहानियाँ ०, रामू को लगता कि वह भी खूब घूमे जंगल, पहाड़, नदी, समुद्र देखे। रामू ।, को उड़ते देखता तो उसे बड़ा अच्छा लगता। सोचता कि अगर उसके भी पंख, होते तो वंह भी आकाश में सारे दिन उड़ता और शाम को घर लौटता। एक, दिन रामू भटकते-भटकते काफी दूर चला गया। विश्राम करने बैठा तो वहाँ, बड़े-बड़े पंख दिखाई दिये। तुरन्त रामू ने डोरियाँ बाँधकर पंख लगा लिये, उड़ने, की कोशिश की और सहजता से उड़ने भी लगा। खुशी के मारे उसका तन-मन, रोमांचित हुआ। रामू ने सोचा कि छत पर उतरे और मॉ-बाप को पंख दिखाये।, उड़ते-उड़ते रामू थक गया। अब उसे भूख लगी। अचानक वह नीचे एक किसान, के घर उतर गया। रामू अपने पंख भूल गया। वह कौन है कहाँ से आया था,, यह भी भूल गया था। वह घर वापस नहीं जा सकता, क्योंकि उसके पंख नहीं, थे। जहाँ रामू उतरा था उस किसान ने अपनी लड़की से रामू का विवाह किया |, रामू को सन््तान भी हो गयी। एक दिन रामू घर में सन्दूक में कुछ ढूँढ़ रहा था, तो वहाँ रामू को पंख दिखाई दिये और सब कुछ याद आ गया। रामू अपनी पत्नी, राधा और सन्तान को छोड़ पंख लगाकर अपने घर वापस निकला। किन्तु भटकते, हुए अपने घर का रास्ता भूल-गया। पहली बार जो भूल की थी रामू ने वही भूल, , “ अब भी रामू ने की थी। लेकिन रामू को विश्वास था कि वह एक-न-एक दिन, अपने घर पहुँच जायेगा। उसे विश्वास थाःकि पंख साथ रहेंगे तो वह एक दिन, अपना घर जरूर तलाश लेगा।, , 26 : गद्य संचयन
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घर की तलाश, , राजेन्द्र यादव, , किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके पास खेत, वैल, मकान सभी कछ, , धा। उसक लड़क का नाम रामू था। लड़क का नाम रामू था। रामू खंलता, पढ़ता और मन होता तो, धाड़ा-वहुत काम कर दता। किसी तरह समय निकोल कर वह गाव क वूढ़ हारा, स॑ उसक वचपन की कहानियाँ सुना करता। इन, , भी मन होता कि वह हीरा दादा जैसा खूब घूमें-खूब घूमे, जंगल, पढ़ाड़, नदी, समुद्र दख। वह चीलों को उड़ते देखता तो उसे वड़ा अच्छा लगता। सोचता कि, अगर उसके भी पंख होते तो वह भी आकाश में सारे दिन उड़ता और शाम को, , घर लौट आता। ४ ्, , एक दिन रामू सुबह-सुवह नहर के किनारे भटकताः भटकता काफी दूर, निकल गया। थंककर वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठा तो उसे वहाँ दो, 7 बड़े-बढ़े पंख दिखाई दिये। उसने इधर-उधर देखा कोई भी नहीं था। डरते-डरते, वह पंख क॑ पास गया। उन्हें धीरे से उठाकर देखा तो उसे वे बड़े अच्छे लगे।, उनमें डोरियों जैसी रस्सियाँ थीं। उसने डोरियाँ वाँधकर पंख लगा लिये और उड़ने, , _की कोशिश की। अरे लो, वह तो उड़ने भी लगा। खुशी के मारे उसका तन-मन, , रोमांचित हो आया। कैसी आसानी से वह पेड़ों क॑ ऊपर उड़ आया था। नहर, और खेत नीचे रह गये थे और वह ऊपर-ऊपर ही उड़ता'जा रहा था। उसका, मन हुआ कि वह उड़ता हुआ ही घर तक पहुंचे । चुपचाप छत पर उतरे और, _न्वाप को पंख दिखाये। लेकिन वह डरा, हो सकता है माँ-बाप पंख छीन ही, | “ने तय किया-पहले खूब सैर कर लूँ फिर जाकर माँ-बाप को बताऊँगा।, व वह खुले मन से उड़ने लगा। नीचे नदियाँ चाँदी के तारों की तरह फैली थीं।, , पड़ हरी बूँदों जैसे लग रहे थे। इस तरह पता नहीं रामू कब तक उड़ता रहा।, , , , , , , , राजेन्द्र यादव : 27, , न कहानया का सुनकर रामू का हट
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उड़ते-उड़ते रामू खूब थक गया। अब उसे भूख लगने लगी। उसे ध्यान, आया कि अब घर लौटना चाहिए। लेकिन वह लौटता किस दिशा में? उड़ने क्र, उत्साह में उसे तो यही ख्याल नहीं रहा कि वह किधर निकल आया है। उद्चः, एक ओर सूरज डूब रहा था। दूसरी ओर अँधियारा छा रहा था। रामू ने सोचा, जल्दी ही घर पहुँच जाना चाहिए। वह कुछ नीचाई पर आकर घर तलाश करने, लगा। लेकिन ऊपर से सारे गाँव एक जैसे दिखाई देते थे। उसे अपना गाँव ही, पहचान में नहीं आ रहा था। अब तो वह बहुत घबराया। इसी वीच माँ-वाप की, , “- परेशानी का ध्यान आते ही उसे रोना आने लगा।, , कुछ ही देर में रात घिर आयी। अँधेरा वहुत बढ़ गया था। अव नीचे, रोशनियाँ भी टिमटिमाती दीखने लगी थीं। रामू को लगा आँधेरे में गाँव को, तलाश करना असम्भव है। उसने तय किया कि कहीं न कहीं रात विताकर कत्न, सुबह गाँव की तलाश करनी चाहिए। यह सोचकर वह नीचे आया। सामने कुछ, , . झोपड़ियों जैसे मकान थे। वह उनकी.ओर बढ़ां। तभी उसे खयाल आया कि, , पंख देखकर गाँववाले उसे परी या भूत न समझ लें। इसलिए एक झाड़ी में उन्हें, छिपा दिया। रा, , लड़खड़ाता हॉफता रामू एक झोपड़ी के दरवाजे तक पहुँचा तो भूख, थकान और, डर के मारे उसका बुरा हाल था। वहाँ एक किसान बैठा हुक्का पी रहा था।, , * उसकी पत्नी चूल्हे पर रोटियाँ बनां रही थी। रामू को देखते ही किसान ने पूछा,, , अरे लड़के, तू कौन है? कहाँ से आया है?'...., , रामू ने रोते-रोते उसे बताया, “मैं भी किसान का लड़का हूँ और जंगल में, भटकेंकर रास्ता भूल गया हूँ।/ रामू की हालत देखकर किसान को उस पर दया, आ गयी। उसने बड़े प्यार से उसे समझाया। उसके हाथ-मुँह धुलवाये, खाना, खिलाया और सोने के लिए बिस्तर बिछा दिया। पर रामू को बड़ी देर तक नींद, , नहीं आयी । माँ-बाप की परेशानियों को सोचकर वह रोता रहा, और उसे बुरे-बुरे, , '_ सपने आते रहे।, , अगले दिन उस किसान ने रामू को. लेकर आसपास बहुत खोज की बहुत, , से लोगों से पूछा लेकिन न रामू के गाँव का पता लगा और न ही उसके माँ-बाप, , का। इस परेशानी में वह पंखों के बारे में भी भूल गया | अब वह वहीं रहने लगा।, , . उधर किसान की एक लड़की थी। उसका नाम था राधा, राधा रामू के, , बराबर की थी। वह उसके साथ खेलती और उसका मन बहलाने की कोशिश, करती।, , 28 : गद्य संचयन
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एक रात की बात है। रामू अपने माँ-बाप, खेत-फसल के बारे में राधा को बता, रहा था। अचानक उसे याद आया कि नहर के किनारे उसे पंख मिले थे। उन्हें, ही बाँधकर वह उड़ते-उड़ते अपने गाँव से दूर निकल आया था। उसे यह भी याद, आया कि उसने पंख एक झाड़ी में छिपा दिये थे। वह उसी,समय, पंख खोजने, जाने लगा। राधा ने उसे समझाया, 'सुबह उठकर पंख खोज लेना। लेकिन अपना, गाँव पहचानोगे कैसे ?' रामू ने उत्तर दिया, 'दिन-की रोशनी में मैं जरूर अपने, गाँव को पहचान लूँगा।', सुबह उठते ही रामू सबसे पहले पंख खोजने झाड़ी के पास पहुँचा लेकिन, उनका वहाँ कोई नामोनिशान नहीं था। उसने सारी झाड़ियाँ खोज डार्ली “लेकिन, पंख कहीं नहीं मिले। | |, _अब रामू वहीं रहने लगा। राधा के साथ खेलता। खेतों में काम करता, __ और पशु चराने ज़ाता। ध्वीरे-धीरे वहाँ उसका मन लगने लगा। कभी-कभी उसे, अपने घर-गाँव और माँ-बाप की याद आ ज़ाती तो बड़ा उदास हो जाता। उसकी, " आँखों से आँसू झरने लगते। ० ५१. सदन, दो साल-चार साल। पता नहीं रामू को वहाँ कितने साल बीत गये । वह बड़ा, _हो गया, और किसान ने राधा की शादी उसके साथ कर दी। एक अलग झोपड़ी, _ बना दी। लेकिन कभी-कभी रामू को माँ-बाप की याद आती तो उसे लगता कि, __यह घर उसका नहीं है। मुझे अपने घर गाँव की खोज में जाना है। उसने कई, बार राधा से कहा भी कि अब हम दोनों को घर की तलाश में निकलना चाहिए।, लेकिन राधा कह देती-किसी दिन चलेंगे। इसी बीच उसके घर एक नन्हा मुन्ना, बच्चा भी आ गया। ;, एक दिन राधा कहीं वाहर गयी थी। रामू किसी सन्दूक से सामान निकाल, __रहां था। तभी उसे कपड़ों के नीचे कुछ पंख दिखाई दिये। रामू उन्हें फौरन, हि पहचान गया। अरे, ये तो उसके वही यंख हैं लेकिन ये यहाँ आ कैसे गये। पंख, *_झाड़ी में छिपाये हैं, यह बात उसने सिर्फ राधा को ही बताई थी। उसने चुपके, से पंख निकाल लिए। अब रामू ने सोचा, तो राधा ने ही यह पंख छिपा लिये, _ थ। इतने दिनों से राधा ने भी नहीं बताया कि पंख उसने सन्दूक में छिपा रखे, : हैं। उसे बहुत बुरा लगा। ऐसी भोली और सीधी राधा उसे धोखा देती रही। उसे, __ राधा पर गुस्सा आने लगा। पंखों ने रामू को घर की, माँ-बाप की याद दिला, ._ दी थी। उसने तय किया कि राधा को इस झूठ की सजा देने के लिए ही वह, __एंक वार घर की तलाश में जरूर जायेंगा। तभी उसे अपने बच्चे और राधा का, _ध्यान आया। उसने तय किया कि वह घर जाकर उसी दिन वापस आ जायेगा।, , राजेन्द्र यादव : 29