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९ बातचीत, क, ति इसे तो सभी स्वीकार करेंगे कि अनेक प्रकार की शक्तियाँ जो वरदान की भाँति ईश्वर ने मनुष्य, की दी हैं, उनमें वाक्शक्ति भी एक है । यदि मनुष्य की और इंद्रियाँ अपनी-अपनी शक्तियों में अविकल, रूतीं और वाक्शक्ति मनुष्यों में न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूँगी सृष्टि का क्या हाल होता । सब, शर ल्ञोग लुंज-पुंज से हो मानो कोने में बैठा दिए गए होते और जो कुछ सुख-दुख का अनुभव हम अपनी, ९ दूसरी-दूसरी इंद्रियों के द्वारा करते, उसे अवाक् होने के कारण, आपस में एक-दूसरे से कुछ न कह-सुन, सकते । इस वाकशक्ति के अनेक फायदों में 'स्पीच' वक््तृता और बातचीत दोनों हैं । किंतु स्पीच से, बातचीत का ढंग ही निराला है । बातचीत में वक्ता को नाज-नखरा जाहिर करने का मौका नहीं दिया जाता, है कि वह बड़े अंदाज से गिन-गिनकर पाँव रखता हुआ पुलपिट पर जा खड़ा हो और पुण्याहवाचन या, नांदीपाठ की भाँति घड़ियों तक साहबान मजलिस, चेयरमैन, लेडीज एंड जेंटिलमेन की बहुत सी स्तुति, करे-करावे और तब किसी तरह वक्तृता का आरंभ करे । जहाँ कोई मर्म या नोक की चुटीली बात वक्ता, | | हैशय के मुख से निकली कि ताली-ध्वनि से कमरा गूँज उठा । इसलिए वक्ता को खामख्वाह ढूँढ़कर, धर्कई ऐसा मौका अपनी वकक््तृता में लाना ही पड़ता है जिसमें करतलध्वनि अवश्य हो ।, , जी वहीं हमारी साधारण बातचीत का कुछ ऐसा घरेलू ढंग है कि उसमें न करतलध्वनि का कोई मौका, है, न लोगों के कहकहे उड़ाने की कोई बात ही रहती है । हम दो आदमी प्रेमपूर्वक संलाप कर रहे हैं ।, , नींकीई चुटीली बात आ गई, हँस पड़े | मुसकराहट से होठों का केवल फड़क उठना ही इस हँसी की अंतिम, , तसीमा है । स्पीच का उद्देश्य सुननेवालों के मन में जोश और उत्साह पैदा कर देना है । घरेलू बातचीत मन, रमाने का ढंग है । उसमें स्पीच की वह संजीदगी बेकदर हो धक्के खाती फिरती है ।, , जहाँ आदमी की अपनी जिंदगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत, है, वहाँ बातचीत की भी उसको अत्यंत आवश्यकता है । जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है, वह, बातचीत के जरिए भाप बनकर बाहर निकल पड़ता है । चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न, हो जाता है । बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है । जिनको बातचीत करने की लत पड जाती, है, वे इसके पीछे खाना-पीना भी छोड़ बैठते हैं । अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसंद आता है, पर वे, बातचीत का मजा नहीं खोना चाहते । राबिंसन क्रूसो का किस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे 16 वर्ष, तक मनुष्य-मुख देखने को भी नहीं मिला । कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों के बीच में रह 16 वर्ष के उपरांत, उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी । यद्यपि उसने अपनी जंगली बोली में कहा था, पर उस समय, , 13
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बेंसन को ऐसा आनंद हआ मानो उसने नए सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया । इससे सिद्ध, + मनुष्य की वाकशक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है | जिनसे कंवल “पत्र-व्यवहार हैं, कप, एक बार भी साक्षात्कार नहीं हुआ, उन्हें अपने प्रेमी से बातें करने की कितनी लालसा रहती है | अपर, आभ्यंतरिक भाव दूसरे पर प्रकट करना और उसका आशय आप ग्रहण कर लेना शब्दा के ही द्वारा, सकता है । सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता । बेन जानसः, का यह कहना कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार हांता हैं, बहुत हीं उचित जान पड़ता ह:, , इस बातचीत की सीमा दो से लेकर वहाँ तक रखी जा सकती है, जहाँ तक उनकी जमात मीटर, या सभा न समझ ली जाए । एडीसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती 7, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल एक दूसरे के सामने खोलते हैं, जब तीन हुए तब वह दो की बात कोसों दूर गई । कहा भी है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जात, है । दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बेटे, या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी समझ बनाने लगेंगे ।, , जैसे गरम दूध और ठंढे पानी के दो बर्तन पास-पास साट के रखे जाएँ तो एक का असर दूर, में पहुँच जाता है, अर्थात दूध ठंढा हो जाता है और पानी गरम, वैसे ही दो आदमी पास बैठे हों तो, | का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं, तब बोलने को कौन कहे, ए, के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है । जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातर्च, में कितना अधिक असर होगा, इसे कौन न स्वीकार करेगा । अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों, | साथ देखना चाहिए । मानो एक त्रिकोण सा बन जाता है । तीनों चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों, मनोवृत्ति के प्रसरण की धारा मानो उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं | गुप-चुप असर तो उन तीनों में पररू, होता ही है । जो बातचीत तीन में की गई, वह मानो अँगूठी में नग सी जड़ जाती है । उपरांत जब उ, आदमी हुए तब बेतकल्लुफी को बिलकुल स्थान नहीं रहता । खुल के बातें न होंगी । जो कुछ बातर्च, की जाएगी वह “फॉर्मेलिटी' गौरव और संजीदगी के लच्छे में सनी हुई होगी । चार से अधिक की बातर्च, तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी । उसे हम संलाप नहीं कह सकते । इस बातचीत के अनेक भेद हें, दो बुड्ढों की बातचीत प्रायः जमाने की शिकायत पर हुआ करती है । वे बाबा आदम के समय की ऐ.', दास्तान शुरू करते हैं; जिसमें चार सच तो दस झूठ । एक बार उनकी बातचीत का घोड़ा छूट जाना चाहि, पहरों बीत जाने पर भी अंत न होगा । प्राय: अंग्रेजी राज्य, परदेश और पुराने समय की रीति-नीति :, अनुमोदन और इस समय के सब भाँति लायक नौजवानों की निंदा उनकी बातचीत का मुख्य प्रकरण होग, पढ़े-लिखे हुए के लिए तो शेक्सपियर, मिल्टन, मिल और स्पेंसर जीभ पर नाचा करेंगे । अपनी लिया*, के नशे में चूर 'हमचुनी दीगरे नेस्त' अक्खड्पन की चर्चा छेड़ेंगे । दो हम सहेलियों की बातचीत का व्, जायका ही निराला है । रस का समुद्र मानो उमड़ा चला आ रहा है । इसका पूरा स्वाद उन्हीं से पूछ, चाहिए जिन्हें ऐसों की रस सनी बात सुनने को कभी भाग्य लड़ा है ।, , दो बुढ़ियों की बातचीत का मुख्य प्रकरण, बहू-बेटी वाली हुईं तो, अपनी बहुओं या बेटों का 7, शिकवा होगा । या वे बिरादराने का कोई ऐसा रमरसरा छेड़ बैठेंगी कि बात करते-करते अंत में खोढे ५, , , , , , , , 14
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8.5.1.8.7.८. - 2020-21, , निकाल लड़ने लगेंगी । लड़कों की बातचीत, खिलाड़ी हुए तो, अपनी अपनी तारीफ करने के बाद वे कोई, सलाह गाँठेंगे जिससे उनको अपनी शैतानी जाहिर करने का पूरा मौका मिले । स्कूल के लड़कों की बातचीत, का उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ या अपने सहपाटियों में किसी के गुन-औगुन का, कथोपकथन होता है । पढ़ने में कोई लड़का तेज हुआ तो कभी अपने सामने दूसरे को कुछ न गिनेगा ।, , सुस्त और बोदा हुआ तो दबी बिल्ली का सा स्कूल भर को अपना गुरु ही मानेगा | इसके अलावा बातचीत, की और बहुते सी किस्में हैं । राजकाज की बात, व्यापार संबंधी बातचीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि ।, हमारे देश में अशिक्षित लोगों में बतकही होती है । लड़की लड़केवालों की ओर से एक-एक आदमी, बिचवई होकर दोनों में विवाह संबंध की कुछ बातचीत करते हैं | उस दिन से बिरादरीवालों को जाहिर, कर दिया जाता है कि अमुक की लड़की का अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह, स्सम बड़े उत्सव के साथ की जाती है । चंडूखाने की बातचीत भी निराली होती है । निदान, बात करने, 'के अनेक प्रकार और ढंग हैं ।, , योरप के लोगों में बात करने का हुनर है । “आर्ट ऑफ कनवरसेशन' यहाँ तक बढ़ा है कि स्पीच, और लेख दोनों इसे नहीं पाते । इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वनूमंडली में है । ऐसे चतुराई के, 'प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यंत सुख मिलता है । सुहदद गोष्ठी इसी का नाम है । सुहद, ह गोष्ठी की बातचीत की यह तारीफ है कि बात करनेवालों की लियाकत अथवा पंडिताई का अभिमान या, ; कपट कहीं एक बात में भी प्रकट न हो, वरन् क्रम में रसाभास पैदा करनेवाले शब्दों को बरकते हुए चतुर, ; सबने अपनी बातचीत को सरस रखते हैं | वह रस हमारे आधुनिक शुष्क पंडित की बातचीत में, जिसे, 'शास्त्रार्थ कहते हैं, कभी आवेगा ही नहीं । मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी के समान उनकी, नीरस काँव-काँव में सरस संलाप की चर्चा ही चलाना व्यर्थ है, वरन् कपट और एक दूसरे को अपने, पांडित्य के प्रकाश से बाद में परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की सामग्री वहाँ बहुतायत के साथ, आपको मिलेगी । घंटे भर तक काँव-काँव करते रहेंगे तो कुछ न होगा । बड़ी-बड़ी कंपनी और कारखाने, आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो-चार दिली दोस्तों की बातचीत से शुरू किए गए । उपरांत, बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़े कि हजारों मनुष्यों की उनसे जीविका चलने लगी और साल में लाखों की, ; आमदनी होने लगी । पच्चीस वर्ष के ऊपरवालों कौ बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सारगर्भित होती होगी,, अनुभव और दूरंदेशी से खाली न होगी और पच्चीस से नीचे कौ बातचीत में यद्यपि अनुभव, दूरदर्शिता और, गौरव नहीं पाया जाता, पर इसमें एक प्रकार का ऐसा दिलबहलाव और ताजगी रहती है जिसकी मिठास, उससे दस गुनी चढ़ी-बढ़ी है ।, , यहाँ तक हमने बाहरी बातचीत का हाल लिखा है जिसमें दूसरे फरीक के होने की बहुत, (आवश्यकता है, बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह संभव नहीं है और जो दो ही तरह पर, हो सकता है-या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या हमीं जाकर दूसरे को कृतार्थ करें। पर यह सब तो, दुनियादारी है जिसमें कभी-कभी रसाभास होते देर नहीं लगती । क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पचधारें, उनकी पूरी दिलजोई न हो सकती तो शिष्टाचार में त्रुटि हुई | अगर हमीं उनके यहाँ गए तो पहले तो बिना, 'उलाए जाना ही अनादर का मूल है और जाने पर अपने मन माफिक बर्ताव न किया गया तो मानो दूसरे, , श्रकार का नया घाव हुआ । इसलिए सबसे उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही समझते हैं कि हम, 15, , ), 1, [