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कार्यालयीन पत्राचार, , , , ७ पत्र : एक संवाद, , पत्र एक संवाद है। संवाद मनुष्य की आवश्यकता है। मनुष्य का संबंध जब किसी, अन्य से निर्माण हुआ, तब से संवाद जारी है। पहले संवाद मौन था। मनुष्य को भाषा, अवगत नहीं थी। उस समय यह संवाद हावभाव, क्रिया-कलापों से होता था। कभी वह, वस्तु के आदान-प्रदान से भी होता था। परंतु जब मनुष्य ने लेखन-कला का विकास, किया, तब यह संवाद संकेत, चित्र आदि से होता रहा । लिपि-विकास के बाद संवाद, को लिखित रुप प्राप्त हुआ। स्पष्ट है कि संवाद का लिखित रुप पत्र है और पत्र एक, संवाद है।, , प्राचीन काल में मनुष्य का दायरा सीमित था। उसकी दुनिया भी छोटी थी। परंतु, जैसे ही उसने शिकार, पर्यटन, साम्राज्य-विस्तार आदि के बहाने अपनी जिंदगी का, दायरा बढ़ाया, संपर्क के लिए उसे पत्र की आवश्यकता महसूस होने लगी। राज्य, कारोबार के लिए घुडसवार, ऊँटणी-सवार, हरकारा (दूत) आदि के जरिए पहले, मौखिक संदेश भेजे जाते थे। ऐसे काम के लिए कबुतरों का भी प्रयोग होता था। परंतु, साईकिल, मोटर, ट्राम, रेल, वायुयान और जहाज जेसे साधनों के विकास के फलस्वरुप, लिखित संवाद स्थापित करने हेतुपत्र - प्रेषण के लिए विधिवत व्यवस्था आरंभ हुई।, उसी को हम डाक विभाग कहते हैं। इसी डाक से दुनिया भर पत्राचार संभव हुआ।, , समय-समय पर हुए संपर्क साधनों के विकास ने पत्र की देरी को खत्म किया।, विदेशों में पत्र भेजने में 'महिनों! का समय लगता था। यातायात के गतिमान साधनों के, विकास से पत्रों का आदान-प्रदान 'दिनों'में संभव हुआ। मनुष्य इससे भी संतुष्ट नहीं, था। उसे घंटों में संपर्क की आवश्यकता महसूस होने लगी। उसने दूरभाष (टेलिफोन), तार, (टेलिग्राफ) बेतार (वायरलेस) और टेलेक्स आदि का आविष्कार किया। मनुष्य, , बी.ए./बी.कॉम. (हिंदी).... १
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है वहा है, , की प्रगति की रफ्तार और तेज हुई। मनुष्य अब ध्वनि और प्रकाश की गति से स्, करने लगा। इस होड ने दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति की। संगणक, उपग्रह, इंटल, मोबाईल, ई-मेल ने दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लिया। अब दुबारा हमारा संब;, 'वाइसमेल' के बहाने मौखिक बन!। परंतु आज के मौखिक संवाद में अंतर ३,, पहलेवाला मौखिक संवाद हमारे सामने, करीब होनेवाले मनुष्य के साथ प्रत्यक्ष हे, था। अब यह संवाद सात समुंदर पार बैठे मनुष्य से अंप्रत्यक्ष होता हे, परंतु उसके, अनुभूति प्रत्यक्ष जेसी ही होती है। विडिओ फोन और इंटरनेट, उपग्रह आदि से ही यह, संभव हुआ। प्रत्यक्ष से प्रभावी संवाद का सारा श्रेय मनुष्य की प्रतिभा, शोध वृत्ति, बुद्धिमानी, प्रयोगशीलता, विज्ञाननिष्ठा को ही देना होगा।, , ७ पत्राचार :, , पत्रव्यवहार को पत्राचार कहते हैं। पत्राचार के अंतर्गत पत्रों का आदान-प्रदान, होता है। पत्राचार के लिए दो एककों की (व्यक्ति, व्यवस्था, सरकार, कार्यालय, उद्योगसंस्था, व्यापारी संस्था आदि) आवश्यकता होती है -(१) पत्र भेजने वाला(२), पत्र पानेवाला। पत्राचार की भाषा में पत्र भेजनेवाले को 'प्रेषक' कहते हैं। पत्र पानेवाले, , को 'प्रेषिती' कहा जाता है। प्रेषक और प्रेषिती के बीच होनेवाले पत्राचार के अनेक, उद्देश्य होते हैं।, , पत्र के उद्देश्य :, , * व्यक्तिगत पत्र मन के विचार, भाव आदि व्यक्त करने के लिए लिखे जाते हैं, पत्र का उद्देश्य संदेश भेजना भी होता है।, , किसी सूचना के लिए भी पत्र लिखे जाते हैं।, , व्यापारी सूचना के लिए भी पत्र लिखे जाते हैं।, , व्यापारी व्यवहार (क्रय, विक्रय, भुगतान, निर्ख, शिकायत आदि) के उद्देश्य से, पत्र लिखे जाते हैं।, , कार्याल्यी व्यवहार (नियुक्ति, ज्ञापन, स्थानांतर, संकल्प, सूचना आदि) भी पत्, का उद्देश्य होता है।
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है व्यावहारिक हिंदी, , निमसरकारी तथा सरकारी सभी कार्यालयों में प्रयुक्त होते हैं। कार्यालय के प्रकार के, अनुसार उनकी लिखाई भिन्न होती है। यहाँ हम स्थूल रुप से उपरोक्त पत्रों की रचना,, स्वरुप, लेखन-विधि आदि पर गौर करेंगे। हमें उम्मीद हे कि इन पत्र-प्रकारों को जान, कर आप रोजाना व्यवहार में कार्यालयों से संपर्क करने, उनमें कार्य करने का विश्वास, आत्मसात करेंगे।, , ७ कार्यालयी पत्र के अंग :, , कार्याल्यी पत्र का आदान-प्रदान विभिन्न व्यक्ति, पदाधिकारी , कार्मिक, कार्यालय,, सरकार आदि के बीच होता है। उनके स्वरूप के अनुसार पत्र-विधि भिन्न होती है। परंतु, ऐसे पत्राचार में प्रयुक्त पत्रों के अंग निश्चित होते हैं। वे निम्नांकित हें , २. शीर्षक : जिस व्यक्ति, विभाग, कार्यालय. सरकार, कंपनी द्वारा पत्र लिखा, जाता है, उसका नाम पत्र के आरंभ में लिखा जाता है, उसे पत्र का शीर्ष या शीर्षक कहते, हैं। कार्यालयी पत्रों के शीर्षक प्राय: छपे हुए होते हैं। पत्र प्रेषण की संबंधित कार्यालय, की पद्धति के अनुसार शीर्षक का स्थान निर्धारित होता है। कुछ कार्यालय इसे पत्र के, दाहिनी ओर लिखते हैं। लेकिन प्रायः वह पत्र के बीचोबीच होता है। जेसे , , , भारत सरकार, रक्षा मंत्राठ॒य, , २. पत्रसंख्या : व्यक्तिद्वारा लिखे जानेवाले कार्यालयी पत्र का अपवाद छोड़, कर सररे कार्यालयों द्वारा लिखे जानेवाले पत्र को प्रशासनिक सुविधा और अनुशासन के, लिहाज से पंजीकृत किया जाता है। इसके लिए हर कार्यालय में आने-जानेवाला हर पत्र, पंजीकरण पुस्तिका में दर्ज किया जाता है। पुस्तिका में दर्ज पत्र-संख्या पत्र में कार्यालय, के नाम के नीचे लिखी जाती हैे। कभी-कभी पत्र संख्या शीर्षक के ऊपर भी होती है।, इसके अन्तर्गत पत्रसंख्या, विभाग, कार्यालय, सरकार का संक्षिप्त नाम , विषय संकेत, और पंजीकरण वर्ष अंकित किया जाता है, जैसे - पत्रसंखया-२०३/शि.वि./परीक्षा/२००३-४, , अर्थात् -पत्रसंडया-२०३/शिवाजी विश्वविद्यालय /परीक्षा विभाग/वर्ष२००३-०४,