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1.3.3.3 आधुनिक हिंदी विद्वान : काव्य-प्रयोजन, 1.3.3.4 पाश्चात्य काव्यशाख्र में काव्य-प्रयोजन, , 1.3.3.5 निष्कर्ष, , काव्य : प्रकार, 1.3.4.1. दृश्य काव्य, , 1.3.,4.1.1. नाटक, , 1.3.4.1.2 एकांकी, , 1.3.4.1.3 गीतिनाट्य, , 1.3.4.2. श्रव्य काव्य, , 1.3.4,.2.1.. गद्य, 1.3.4.2.1.1.. उपन्यास., 1.3.4.2.1.2 कहानी, ,1.3.4.2.1.3. निबंध, 1.3.4.2.1.4. रेखाचित्र, 1.3.4.2.1.5 संस्मरण, 1.3.4.2.1.6 जीवनी, 1.3.4.2.1.7 आत्मकथा, 1.3.4.2.1.8 . रिपोर्ताज, 1.3.4.2.1.9 यात्रा वृत्तांत, 1.3.4.2.1.10 साक्षात्कार, , 1.3.4.2,.2 पद्च, 1.3.4.2.2.1. प्रबंधकाव्य, , 1.3.4.2.2.1.1 महाकाव्य, 1.3.4.2.2.1.2 खंडकाव्य, 1.3.4.2.2.1.3 . एकार्थ काव्य, , ७20, (323७ ७७७७७७७७७७७७०
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1.3.4.2.2.2.. मुक्तक काब्य, , 1.3,4.2,2,2.1 पाठ्यमुक्तक, 1.3.4.2.2.2.2 गेय मुक्तक (गीतिकाब्य), , 1.3.4.2.2.3 . चंपू काव्य, 1.3.4.3.. निष्कर्ष, 1.4... स्वयं-अध्ययन के लिए प्रश्न, 1.5... पारिभाषिक शब्द, शब्दार्थ, , 1.6. स्वयं-अध्ययन प्रश्नों के उत्तर, , 1.7... सारांश, 1.8. स्वाध्याय, 1.9... क्षेत्रीय कार्य, , 1.10. अतिरिक्त अध्ययन के लिए, , 1.1. उद्देश्य :, यह इकाई पढकर आप,, 1. काव्य /साहित्य शब्द के अर्थ और स्वरूप से परिचित होंगे।, , 2. काव्य /साहित्य की संस्कृत हिंदी तथा पाश्चात्य विदूवानों द्वारा बनाई गई विविध परिभाषाएँ पढकर, स्राहित्व का स्वरूप समझने में सक्षम होंगे।, , 3, काव्य /साहित्य के विभिन्न तत्त्तों की जानकारी हासिल करेंगे।, 4. काव्य /साहित्य के विभिन्न तत्त्वों से परिचित होंगे।, 5. काव्य /साहित्य के विविध प्रयोजनों से परिचित होंगे।, , ०७९०००००००००००००००( ३3 )29%%%%%9%%95%5%%5%%5%5%5%, , कक... _______________ री ै॒ैफहखखऑझखऑःऱ
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पु, , 1.2. प्रस्तावना :, , काव्यशाख््र को काव्यालोचन, काव्यमीमांसा, साहित्यशास््र तथा साहित्य सिद्धांत आदि नामों से भी पुकार, जाता है। काव्य का नियमन करनेवाले शास्त्र को काव्यशास््र कहा जाता है। दुनिया के सभी देशों में ', विचार हुआ है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से भारतीय तथा पाश्चात्य ऐसे दो भेद किए जाते हैं।, , “राम कप रम नस, , भारतीय काव्यशाख्र का प्रारंभ सामान्यतः भरतमुनि के 'नाट्यूशास््र' से माना जाता है। कहा जाता है कि भार, वर्ष में भरतमुनि से पहले अनेक काव्यशाख््री हुए है, कितु उनके ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। इसलिए भरतमुनि के 'नाट्यशात्र', का पहला नाम आता है। अतः भरतमुनि को ही साहित्यशास््र की स्थापना का श्रेय दिया जाता है।, , संसार को संस्कार काब्य से प्राप्त होते हैं। संसार को वाणी देने का कार्य कवि करता है। जिस कवि के पाम्त, काव्यशाख्त्र का सही ज्ञान होता है वही कवि सफलता हासिल करता है। आचार्य भरतमुनि से लेकर आधुनिक, काव्यशास््र की परंपरा को स्थापना काल, नव अन्वेषण काल, संशोधन काल, पद्यानुवाद काल और नवोत्यान, कालों में विभाजित कर सकते हैं। स्पष्ट है कि भारतीय काव्यशास्र आज अत्यन्त उन्नत तथा विकसित अवस्था में है।, पाश्चात्य काव्यशास््र के इतिहास को यूनानी परंपरा, रोमन युग, अधिकार युग, पुनर्जागरण युग, कलावाद और, फ्राबड एवं युंग के प्रभाव का युग आदि भागों में विभाजित करते हैं।, , डॉ. श्यामसुंदर दास लिखते हैं, “काव्य शब्द का वही अर्थ है जो साहित्य शब्द का वास्तविक अर्थ है।”, प्राचीन भारतीय ग्रंथों में साहित्य के लिए 'वाड्मय' शब्द का प्रयोग पाया जाता है। डॉ. बाबू गुलाबराय स्पष्ट कहते, हैं, “साहित्य शब्द अपने व्यापक अर्थ में सारे वाड्मय का च्योतक है। 'काव्य' यह शब्द कवि से प्रचलित हुआ है, और अंग्रेजी शब्द '?००४५" का अनुवाद है। 'साहित्य' शब्द अंग्रेजी [०४६7 से फिर 110९7४॥ए/८ के रूप में प्रचलित, हुआ है; संस्कृत काव्यशाखत्र में 'सहित्यस्य भाव : इति साहित्यम्' कहा है। साहित्य का अर्थ है- सहभाव अर्थात साथ, , रहना। शब्द और अर्थ का साहित्य में सहभाव होता है। मूलत: साहित्य शब्द काव्य का उत्तराधिकारी होते हुए भी, आज अधिक व्यापक तथा समृद्ध एवं विकसित अर्थ का वाहक बना है।, , मम ामचचपपष्ष्श्च्ििीश़़ा;ाशायििपररसफफजरििदचाड |, , काव्य में बुद्धि तत्त्व, कल्पना तत्त्व, भावतत्त्व और शैली तत्त्व का योगदान होता है। प्राचीन आचार्यों से लेकर, अबतक के आचार्यों ने अपने-अपने विचारों के अनुसार काव्य के विभिन्न रूपों का उल्लेख किया है। बारीकी से, विचार करे तो हर कर्म के पीछे प्रयोजन देखने को मिलता है। काल तथा विचार धारा के अनुसार प्रयोजन संबंधी, विचार भी बदलते रहते हैं। स्पष्ट है कि कोई कवि निरुद्देश्य काव्य सृजन नहीं करता।, , अपने पाठ्यक्रम में साहित्य का स्वरूप, तत्त्व, प्रकार और प्रयोजनों का समावेश किया गया है। अतः हम, काव्य किसे कहते हैं? उसकी परिभाषा बनाने का प्रयास किन-किन विद्वानों ने किया हैं? काव्य के विभिन्न तत्त्व कौन, , से है? काव्य के प्रकार कौन से हैं? अलग-अलग विद्वानों ने काव्य के कौन से प्रयोजन बनाए हैं? आदि प्रश्नों की, दृष्टि से प्रस्तुत इकाई का अध्ययन करेंगे।, , 1.3. विषय विवेचन :, , अब हम काव्य का स्वरूप, तत्त्व, प्रकार और प्रयोजनों पर विचार करेंगे।, , 002 222222
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कक, , 1.3.1 साहित्य / काव्य का स्वरूप :, , वर्तमान युग में काव्य का प्रयोग पद्मात्मक रचनाओं के लिए रूढ हो गया है तथा साहित्य से सभी विधाओं का, द्योतन होने लगा है। काव्यशास््र के अन्तर्गत काव्य और साहित्य एक दूसरे के समानार्थी समझे गए हैं। मनुष्य जीवन, की तरह काव्य में भी निरंतर परिवर्तन हो रहा है। आचार्य राजशेखर ने काव्य को पन्द्रहर्वीं विधा माना है और बतलाया, है कि काव्य चौदह विधाओं का आधार है। साहित्य शब्द अंग्रेजी के [॥1८४४॥७४॥८ के विकल्प के रूप में प्रचलित है।, साहित्य शब्द का प्रचलन साहित्य के अर्थ में सातवीं आठवीं सदी से हुआ है। इसके पहले साहित्य के बदले 'काव्य', शब्द का प्रयोग होता था। राजशेखर, भामह, कुंतक और रुद्रट आदि विद्वानों ने साहित्य के लिए काव्य शब्द का, प्रयोग किया है। काव्य और वाड्मय के लिए आज सिर्फ साहित्य शब्द ही स्वीकार्य है।, , सही अर्थों में कवि आनंद देता है। कवि की सृष्टि नियमबदूध नहीं होती है। मानव की पहली रचना काव्य है।, काव्य में कल्पना, भावना की रसमय तथा रमणीय अभिव्यक्ति होती है। काव्य जितना व्यापक है उतना सूक्ष्म भी।, प्रारंभिक काल से आज तक काव्य का स्वरूप स्पष्ट करने तथा परिभाषाओं में बाँधने के अनेक प्रयास हुए, किंतु, उसका उन्नत रूप लक्षणों और परिभाषाओं की सीमा से बाहर ही दिख पडता है। मनुष्य शिक्षित हो या निरक्षर काव्य, की धारा उनके कंठ से निकलती ही है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है, जिस देश में काव्य ही नहीं है। दुर्भाग्यवश, आज हम मन की काव्य संबंधी भूख को अन्य साधनों से पूर्ण कर रहे हैं। विज्ञान तथा ज्ञान की चकाचौंध की दुनिया, में काव्य के अभाव में हमारा जीवन अधूरा-सा लगता है। आज हमने बुद्धि का प्रयोग करके चंद्रलोक तथा विभिन्न, ग्रहों का रहस्य खोलने में सफलता हासिल की है। रेडिओ, दूरदर्शन, इंटरनेट, अणुशक्ति का काफी मात्रा में विकास, हुआ है कितु काव्य से मानव के भीतर की प्रेम की अनुभूति समझ में आती है।, , काव्य मानव जीवन की निराशा की दशा में काम आता है। काव्य आदमी को जीने की नई दिशा देता है।, , .साहित्य समाज को उदार तथा उदात्त बना देता है। बुद्धि तथा हृदय का समन्वय काव्य में होता है। असल में सत्यं,, , शिवं, सुंदरम् इन तीनों की सामंजस्यपूर्ण प्रतिष्ठा ही साहित्य की सफलता की पराकाष्ठा है। विश्वव्यापी एकता की, , * भावना का विकास करेने में काव्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। वह मानव के बाह्य और आंतरिक जगत का वर्णन, करता है। हम कुछ महत्त्वपूर्ण काव्य लक्षणों के विवेचन के दूवारा काव्य का स्वरूप स्पष्ट करना चाहते हैं।, , 1.3.1.1 संस्कृत आचार्यों के काव्य-लक्षण :, , ऋ आचार्य भरतमुनि :, आचार्य भरतमुनि संस्कृत काव्यशाम्न के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। इस दृष्टि से देखे तो काव्य का लक्षण, सर्वप्रथम काव्यशास्र का प्राचीनतम ग्रंथ 'नाट्यूशासत्र' में मिलता है। आचार्य भरतमुनि ने 'नाट्यशास्त्र' में लिखा है, “मुदुललितपदाढ्यं गूढशब्दार्थहीनम।, जनपदसपुखबो ध्यं गुक्तिमन्तृत्ययोज्यम।, बहुरसकृतमार्ग सान्धिसन्धानबुक्तम।, , स् भवति शुभ काव्य नाटक प्रेक्षकाणामू।, , ९९५५५५454%4%5%5%5%5%%%%%(_ 5 294%%4%5%95%4%%4%5%<%<*<*5*%%%