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4. पूर्व परंपरागत अवस्था (27९- ८०॥एशाएं०7३। 5एबषट९), , जब बालक बाहरी तत्व या घटना के आधार पर किसी व्यवहार को नैतिक या अनैतिक मानता है, तो उसकी, नैतिक तर्क शक्ति 7/९- ८०॥४९॥॥४४०॥१३। स्तर की कही जाती है । इसमें दो अवस्थाएं होती है जोकि इस, , 500५४॥65, , (१) आज्ञा एवं दंड की अवस्था ( 5482९ ण ०8९॥ एपंआधशाएं), , * इस अवस्था में बालक का व्यवहार बंद के व्यय पर आधारित होता है, और इसी डर से वह अच्छा, व्यवहार करता है।, , * इस प्रकार नैतिक विकास की शुरू की अवस्था में दंड को ही बच्चों की नैतिकता का मुख्य आधार, मानते हैं।, , * बच्चा सोचता है कि बंद से बचने के लिए आदेश का पालन करना चाहिए।, , * सही गलत का निर्णय दिए गए दंडवा पुरस्कार से करता है।, , (9) अहंकार की अवस्था (50ब९९ ० €९०), , * इस अवस्था में बालक का व्यवहार स्वयं की इच्छा को पूरा करने वाला होता है।, , « उसे लगता है कि वही बात सही है। जिसमें बराबरी का लेन-देन हो अर्थात हम दूसरी की कोई इच्छा, पूरी कर दे तो वह भी हमारी इच्छा पूरी करेगा।, , * इस अवस्था में बालक में अहंकार होता है, यदि उसका कोई उद्देश्य झूठ बोलने से क्या चोरी करने से, होता है तो वह वह काम करता है ऐसे अनैतिक नहीं समझता है।, , 2. परंपरागत अवस्था ((०॥एशाएं०॥३| 5८१९९), , इस अवस्था में बच्चों का व्यवहार उनकी मां बाप या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा बनाए गए नियमों पर आधारित होता, है। इसमें दो अवस्थाएं होती है जो इस प्रकार है। प्रथागत, , (9) प्रशंसा की अवस्था ( 5:ब8९ ण 377/९टांब०णा) अवस्था, , रकम कक -->«कन्नमसकन्»न७्सम9कक,, * इस अवस्था में बच्चा जो भी करता है वह प्रशंसा पाने के लिए करता है।, « इसमें बालक समाज को अच्छा लगने वाला व्यवहार करता है जिससे कि वह प्रशंसा प्राप्त कर सके।, * उस व्यवहार को ही वह अनैतिक मानता है जिससे प्रशंसा मिलती है।, * इस अवस्था में बच्चे के चिंतन का स्वरूप समाज और उसके परिवेश से निर्धारित किया जाता है।, , (9) सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान की अवस्था ( 5388 ०॥९५9९८ 60/ 5०८ां3| 5५5६९॥), , उत्पादकता में बच्चों के नैतिक विकास की अवस्था सामाजिक, आदेश, कानून, न्याय और कर्तव्यों पर, आधारित होती है।, , * यह अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है, इस अवस्था में प्रवेश से पहले बालक समाज को, केवल प्रशंसा के लिए महत्व देता है।, , * इस अवस्था में पहुँच कर वह समझने लगता है, कि सामाजिक नियमों के विरुद्ध प्रत्येक कार्य को, अनैतिक कहते हैं।