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सिविल निर्माण प्रबन्धन, (CIVIL CONSTRUCTION MANAGEMENT), ৪ 1.1. प्रबन्धन तथा प्रबन्धक (Management and Manager) :, उपलब्ध संसाधनों के द्वारा किसी वस्तु की रचना, निर्माण कहलाती है। विकासशील देशों की उन्नति के लिए मूल आधार, निर्माण है। सभी प्रकार का निर्माण-मनुष्यों तथा समाज का, भवनों तथा कल- कारखानों का, सड़कों तथा रेल मागों का, बांधों, तथा विद्युत गृहों का, इत्यादि। निर्माण ऐसे ही नहीं होता है, इसके लिए पर्याप्त सूझ-बूझ, आयोजन, निर्देशन, संसाधन, अनुभव,, दिशा निर्धारण तथा समय की आवश्यकता रहती है।, भारत एक विकासशील देश है। इस लम्बे-चौड़े देश में सिविल निर्माण कार्य सदा ही अग्रणी रहा है। लाखों कुशल व अकुशल, कर्मचारी/श्रमिक इस धन्धे में प्रत्यक्ष रूप से लगे हुए हैं और सभी सैक्टरों में किसी-न-किसी रूप में निर्माण कार्य निरन्तर हो, रहा है। हमारी पंच-वर्षीय योजनाओं की 50% से अधिक धनराशि निर्माण कार्य पर व्यय होती है।, निर्माण कार्य को उत्तम तथा मितव्ययी ढंग पर करने के लिए कुशल निर्माण- प्रबन्धक का होना अति आवश्यक है। परन्तु, अब तक प्रबन्धक तथा ठेकेदार प्रबन्धकला की ओर उचित ध्यान नहीं देते थे, क्योंकि सिविल निर्माण कार्यों में लाभ अधिक दिखाई, देता था, अत: अक्षर ज्ञान न होते हुए भी अनेक लोग इस व्यवसाय में प्रवेश कर गये और जब तक लाभ मिलता रहा, कार्य, करते रहे और जहाँ कोई हानि हुई, निर्माण स्थल के आस-पास कहीं दिखाई न दिये। इन्हीं कारणों से निर्माण उद्योग अभी तक, अनिश्चितता के वातावरण में ही कार्य करता रहा है।, किसी भी निर्माण कार्य के लिए श्रमिक, सामग्री तथा धन (Men, Material and Money) के साथ-साथ एक अच्छे, प्रबन्धक (Managcr) की भी आवश्यकता रहती है, जो इन संसाधनों का उचित ढंग से उपयोग कर परियोजना को निर्धारित समय, के अन्दर तथा न्यूनतम व्यय पर पूर्ण कर सके। श्रमिक, सामग्री तथा धन-तीनों मिलकर भी कुछ नहीं कर सकते, जब तक उनके, ऊपर एक सक्षम प्रबन्धक न हो। एक सुदक्ष प्रबन्धक को एक अच्छा समन्वयक भी होना चाहिए। निर्माण कार्य में लगे विभिन्न, स्तर के कर्मचारियों के कार्य में सामंजस्य स्थापित करना अति आवश्यक है, जिससे वे लोग भ्रम में न रहे और सही दिशा में, कार्य आगे बढ़ाते रहें। निर्माण कार्य को 'रोटी-रोजी का साधन' से ऊपर उठकर देखें और 'कर्म ही पूजा है' के सिद्धान्त को निर्माण, कार्य की नींव बना लें।, प्रबन्धन-किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों तथा आवश्यक संक्रियाओं को सन्तोषपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करने, की कला को प्रबन्धन कहते हैं। निम्माण प्रबन्धन पर वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन तथा शोध कार्य पिछले 125 वर्षों से ही शुरू हुआ, है। सन् 1880 में सर्वप्रथम अमेरिका में फ्रेडरिक विन्सलों टेलर (Frederick Winslow Taylor (1856-1915) ने प्रबन्ध विषय, पर शोध कार्य किया। इसके पश्चात् 1908 में फ्रांस के हेनरी फेयोल (Henri Fayol) ने इस विषय को आगे बढ़ाया। पहले प्रबन्ध, के बारे में यह समझा जाता था कि यह एक कला है। कलाकार की भाँति अच्छा प्रबन्धक पैदा ही होता है, किसी स्कूल या, विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है। फेयोल ने यह नहीं माना और स्पष्ट किया कि प्रबन्धन के सिद्धान्तों को अन्य, विषयों की भाँति, वैज्ञानिक ढंग पर, कक्षाओं में पढ़ाया जा सकता है और अच्छे प्रबन्धक तैयार किये जा सकते हैं। सन् 1920, के बाद प्रबन्धन की विभिन्न शाखाओं में व्यवस्थित ढंग पर अध्ययन शुरू हुआ।, अब निर्माण प्रबन्ध एक पूर्ण रूप से विकसित विषय है। इन्जीनियरी क्षेत्र में इसके महत्त्व को देखते हुए, इसका अध्ययन अब, सभी इन्जीनियरी छात्रों के लिए अनिवार्य है, क्योंकि एक सुदक्ष इन्जीनियर वही कहा जा सकता है जो एक अच्छा प्रबन्धक भी है ।, बड़े-बड़े निर्माण कार्यों में अकेला व्यक्ति कुछ विशेष नहीं कर पाता है। अतः वह अपने अन्य सहयोगियों से मिलकर कार्य, आगे बढ़ाता है। 'एक अकेला-दो ग्यारह' को सत्य मानकर 'साथी मिलकर हाथ बढ़ाना' के सिद्धान्त पर वह एक निर्माण संगठन, बनाता है। व्यक्तियों के इस संगठन को नेतृत्व तथा दिशा प्रदान करने के लिए प्रबन्धक की भूमिका उभर कर सामने आती है, 2022-1-31 09:26, Scanned by Scanner Go
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। निर्माण प्रबन्ध, पवমक में गण-एक प्रबन्धक को जहाँ निर्माण प्रबन्ध की विभिन्न क्रियाओं का पूर्ण ज्ञान व अनुभव होना चाहितक, शह भी जरूरी है कि वह विभिन्न कार्यों में आवश्यक समन्वयन बनाये रखे, कार्यरत श्रमिकों से उनकी कार्य-ल स का कती, के अनकल काम ले, उनकी शारीरिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं का ध्यान रखें, उनको सुरक्षा प्रदान करे औीर কাদतা, के प्रति भावनात्मक दृष्टिकोण तथा लगन उत्पन्न करने की चेष्टा करे।, एक अच्छे प्रबन्धक से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह श्रमिकों के साथ-साथ परियोजना के मालिकों के न्याथ, हितों का भी ध्यान रखे, निर्माण सामग्री का अपव्यय रोके और निर्धारित अवधि के भीतर परियोजना का समापन करे।, s1.2. निर्माण उद्योग का वर्गीकरण (Classification of Construction Industry) :, निर्माण उद्योग को प्रबन्ध व्यवस्था की दृष्टि से निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जाता है ।, (i) हल्के या लघु निर्माण, (ii) भारी निर्माण (iii) औद्योगिक निर्माण।, वर्णन निम्नलिखित हैं-, (1) हल्के या लघु निर्माण (Light Construction) - लघु निर्माण के लिए किसी बड़े आयोजन व साधनों की आवश्यकता नहीं, पड़ती है। इन कार्यों के निर्माण में ईंट पत्थर, काष्ठ, इस्पात कंक्रीट, इत्यादि मैटीरियल का उपयोग किया जाता है। इनकी, लागत लाखों रुपयों तक होती है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के आवासीय भवन, स्कूल-कालेजों के भवन, सामाजिक तथा, व्यावसायिक भवन, सड़कें, जल आपूर्ति व सीवर प्रणाली का निर्माण, इत्यादि आते हैं।, (2) भारी निर्माण (Heavy Construction) - इनकी निर्माण लागत करोड़ों रुपयों में आती है और बड़ी मात्रा में विभिन्न निर्माण, सामग्री, उपस्कर, मशीनें तथा श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर आयोजन व संसाधनों की, आवश्यकता रहती है। निर्माण कार्य में समय भी अधिक लगता है। भारी निर्माण के अन्तर्गत होटल, अस्पताल, महामार्ग,, रेलमार्ग, नहरें, बाँध, सुरंग, पुल, जलीय संरचनायें, विद्युत गृह, इत्यादि आते हैं।, (3) औद्योगिक निर्माण (Industrial Construction)-इन निर्माण कार्यों के लिए विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों तथा अभियन्ताओं., जैसे सिविल, यांत्रिक, विद्युत, रासायनिक, इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है। औद्योगिक निर्माण की बड़े पैमाने पर योजना, बनानी पड़ती है। कुछ मुख्य औद्योगिक निर्माण है ताप-बिजली उत्पादन गृह, इस्पात, तेल शोधक तथा पैट्रो-रासायनिक, कारखाने, उर्वरक प्लांट, चीनी मिल, इत्यादि।, ৪1.3. निर्माण परियोजना के चरण (Stages in Construction Project):, एक सामान्य निर्माण प्रोजेक्ट को परिकल्पना से लेकर मूर्तरूप तक पहुँचाने के निम्न तीन मुख्य चरण होते हैं-, (a) परिकल्पना (Conception),, (b) अभिकल्पन (Design),, (c) समापन (Realization)।, (a) विचार धारण या परिकल्पना (Conccption) - जब किसी वस्तु की आवश्यकता पड़ती है तो मनुष्य उसे पाने के लिए, सक्रिय हो जाता है। प्यास बुझानी है तो कुँआ खोदना ही पड़ता है। इसलिए किसी भी निर्माण के लिए सर्वप्रथम उसका विचार, बनता है। यह एक व्यक्ति का, कुछ लोगों का अथवा शासन का हो सकता है। कुछ विचार शीघ्र कार्य रूप ले लेते हैं,, कुछ वर्षों रूके रहते हैं। भाखड़ा बाँध का विचार 1902 में बना था और वास्तविक निर्माण 1946 में ही शुरू हो पाया।, परिकल्पना को मूर्तरूप देने से पहले, इसकी उपयोगिता व लाभों का गहरायी से अध्ययन करना चाहिए। यदि परियोजना, लाभप्रद सिद्ध नहीं होगी, तब उसे इसी चरण पर त्याग देना उत्तम रहता है।, किसी परियोजना का निर्णय लेने के बाद, इसकी अनुमानित लागत ज्ञात की जाती है और मूर्तरूप देने के लिए आवश्यक, वित्त (Finance) की व्यवस्था की जाती है। यह धनराशि एक मुश्त अथवा चरणों में उपलब्ध करायी जाती है।, वित्त की व्यवस्था होने पर, परियोजना के लिए आवश्यक भूमि का अधिग्रहण किया जाता है।, परियोजना की परिकल्पना का कार्य इसके मालिकों/विभाग द्वारा किया जाता है, जिसमें वास्तविद/अभियन्ता भी अपना, व्यवसायिक परामर्श देते हैं।, 2022-1-31 09:27, Scanned by Scanner Go
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सिविल निर्माण प्रबन्धन, চ) अभिकल्पन (Design)- परियोजना के लिए आवश्यक वित्त तथा भूमि उपलब्ध होने पर, संरचना का अभिकल्पन, नक्शे,, विस्तृत एस्टीमेट तथा निर्माण विशिष्टियाँ तैयार की जाती हैं। अवःभूमि की धारण-क्षमता ज्ञात करके, संरचना के लिए उपयुक्त, नींव का निर्णय लिया जाता है।, परियोजना का अभिकल्पन व्यावहारिक होना चाहिए. क्योंकि बाद में डिजाइन में परिवर्तन करने पर कई मुश्किलें, आती हैं।, अभिकल्पन कार्य वास्तुविद्/अभियन्ता द्वारा किया जाता है। संरचनात्मक अभिकल्पन के लिए स्ट्रक्चरल इन्जीनियर की, सेवायें ली जाती हैं।, (c) समापन (Realization)- परियोजना के विस्तृत डिजाइन व नक्शे तैयार होने के बाद, निर्माण कार्य शुरू किया जाता है।, निर्माण कार्य विभागीय एजेन्सी अथवा ठेकेदार द्वारा किया जाता है। ठेकेदार कार्य शुरू करने के लिए आवश्यक निर्माण सामग्री,, उपस्कर, मशीनें तथा श्रमिकों की व्यवस्था करता है और ठेके की शर्तों के अनुसार कार्य सम्पन्न करता है। निर्माण काल, में परियोजना का पर्यवेक्षण (Supervision) व निरीक्षण (Inspection) आवश्यक है। निरीक्षण द्वारा संरचना की गुणता,, सामर्थ्य व टिकाऊपन पर नजर रखी जा सकती है।, निरीक्षण का कार्य वास्तुविद्/अभियन्ता द्वारा होना चाहिए, जो संरचना की स्थिरता के लिए जिम्मेदार होते हैं।, निर्माण कार्य के समापन पर संरचना विभाग/स्वामी को सौंप दी जाती है। संरचना हस्तान्तरण के समय सभी आवश्यक, जैसे समापन प्लान, मापन माप पुस्तिका आदि भी देनी होती है, क्योंकि इस अभिलेख की अनुरक्षण व मरम्मत के, समय आवश्यकता पड़ती है।, प्रपत्र;, ৪ 1.4. निर्माण उद्योग के लिए आवश्यक संसाधन (Resources Needed for Construction, Industry):, निर्माण उद्योग के लिए निम्नलिखित संसाधनों की नितान्त आवश्यकता है-, (i) पूँजी, (ii) सामग्री, ( iii) औजार एवं मशीनरी, (iv) श्रमिक तथा (v) प्रबन्धन (अंग्रेजी भाषा के अनुसार ये, Money, Material, Machinery, Man Power and Management-five M कहलाते हैं)। वर्णन अग्रलिखित हैं-, (1) पूँजी-किसी परियोजना को मूर्तरूप देने के लिए सर्वप्रथम धन की आवश्यकता रहती है। यदि निर्माण के लिए आवश्यक, धन की समय पर व्यवस्था नहीं होती है तो कार्य उसी चरण पर रुक जायेगा और तब परियोजना पर उस काल तक व्यय, किया गया धन तथा समय दोनों व्यर्थ चले जायेंगे।, (2) सामग्री-परियोजना की लागत का 60%-70% धन निर्माण सामग्री पर व्यय करना पड़ता है। कार्य स्थल पर आवश्यक सामग्री, उपलब्ध रहे, तभी कार्य की प्रगति बनी रह सकती है। यदि निर्माण सामग्री बाहर से आ रही है तब यह देखना होगा कि, परिवहन प्रणाली में कोई गड़बड़ होने के कारण, सामग्री पहुँचने में बाधा न पड़े।, (3) औजार तथा मशीनरी- बड़े निर्माण कार्यों को आधुनिक ढंग पर तथा न्यूनतम अवधि में पूर्ण करने, की छोटी-बड़ी मशीनों-संयन्त्रों की आवश्यकता पड़ती है; जैसे-मिट्टी काटने, ढोने, उठाने, कंक्रीट तैयार करने, डालने तथा, कूटने वाली मशीनें-ट्रक, क्रेन, रोलर, कम्पक, वाहक, संपीडक, इत्यादि। मशीनों की व्यवस्था पहले से ही की जाती है,, क्योंकि कुछ मशीनों को किराये पर लेना पड़ता है अथवा बाहर से मंगवाना होता है।, (4) श्रमिक-हस्त कार्यों तथा यंत्रों-संयन्त्रों द्वारा कार्य करने के लिए प्रोजेक्ट पर बड़ी संख्या में कुशल - अकुशल श्रमिकों की, आवश्यकता रहती है। श्रमिक निर्माण स्थल के निकट ही वास करें, यह कार्य के हित में रहता है।, (5) प्रबन्धन-परियोजना को प्रारम्भ करके समापन तक पहुँचाने के लिए सुदृढ़ प्रबन्धन आवश्यक है। विभिन्न साधनों को एक, स्थल पर लाकर खड़ा करना, उनको दिशा प्रदान करना, उनके बीच समन्वय स्थापित करना तथा उनसे सन्तोषजनक प्रगति, प्राप्त करना प्रबन्धन ही तो है। प्रबन्धन के बगैर निर्माण, निर्माण नहीं कहलाता है, ईट-पत्थरों का ढेर तथा मजदूरों का मेला, लिए विभिन्न प्रकार, बन जाता है।, 2022-1-31 09:27, Scanned by Scanner Go