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अध्याय 2, आखेट-खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक, 065SCH02, तुषार की रेलयात्रा, तुषार अपने एक रिश्तेदार की शादी में दिल्ली से चेन्नई जा रहा था। रेल में, उसे खिड़की वाली सीट मिल गई, जहाँ से वह बाहर का नजारा देखने में मग्न, हो गया। तेज़ दौड़ती गाड़ी से उसने देखा कि पेड़ -पौधे,, बड़ी तेज़ी से पीछे की ओर छूटते चले जा रहे थे। तभी उसके चाचा ने उसके, कंधे पर हाथ रख कर कहा, "पता है लोगों ने मात्र डेढ़ सौ साल पहले रेल, से यात्रा करनी शुरू की थी? बस तो इसके कुछ दशक बाद आई। " तुषार, सोचने लगा, कि जब लोगों के पास आने- जाने के लिए तेज़ रफ़्तार वाली, सवारियाँ नहीं थीं, तो क्या वे यात्रा ही नहीं करते थे। क्या वे अपनी सारी, जिंदगी एक ही जगह पर बिता दिया करते थे? नहीं, ऐसी बात नहीं थी।, घर,, खेत-खलिहान, आरंभिक मानव : आखिर वे इधर-उधर क्यों घूमते थे?, हम उन लोगों के बारे में जानते हैं, जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल, पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें आखेटक -खाद्य संग्राहक के नाम से जानते, हैं। भोजन का इंतज़ाम करने की विधि के आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा, जाता है। आमतौर पर खाने के लिए वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे,, मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने पौधे-पत्तियाँ,, अंडे, इकट्ठा, किया करते थे।, आखेटक-खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग एक जगह से दूसरी जगह पर, घूमते रहते थे। ऐसा करने के कई कारण थे।, पहला कारण यह कि अगर वे एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते, तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे ।, इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था।, दूसरा कारण यह कि जानवर अपने शिकार के लिए या फिर हिरण और, मवेशी अपना चारा ढूँढ़ने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते हैं।, इसीलिए, इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी इनके पीछे -पीछे जाया, करते होंगे।, 11 I, आखेट-खाद्य संग्रह से भोजन, उत्पादन तक, 2021-22
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तीसरा कारण यह कि पेड़ों और पौधों में फल - फूल अलग-अलग मौसम, में आते हैं, इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य, इलाकों में घूमते होंगे।, और चौथा कारण यह है कि पानी के बिना किसी भी प्राणी या पेड़ -पौधे, का जीवित रहना संभव नहीं होता और पानी झीलों, झरनों तथा नदियों में ही, मिलता है। यद्यपि कई नदियों और झीलों का पानी कभी नहीं सूखता, कुछ, झीलों और नदियों में पानी बारिश के बाद ही मिल पाता है । इसीलिए ऐसी, झीलों और नदियों के किनारे बसे लोगों को सूखे मौसम में पानी की तलाश, में इधर-उधर जाना पड़ता होगा।, आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है?, पुरातत्त्वविदों को कुछ ऐसी वस्तुएँ मिली हैं जिनका निर्माण और उपयोग, आखेटक-खाद्य संग्राहक किया करते थे। यह संभव है कि लोगों ने अपने, काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाए हों। इनमें से, पत्थरों के औज़ार आज भी बचे हैं।, इनमें से कुछ औज़ारों का उपयोग फल-फूल काटने, हड्डियाँ और मांस, काटने तथा पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए किया, जाता था। कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगा कर भाले और, बाण जैसे हथियार बनाए जाते थे। कुछ औज़ारों से लकड़ियाँ काटी जाती थीं |, लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ-साथ झोपड़ियाँ और औज़ार बनाने के, लिए भी किया जाता था।, पत्थर के औजारों का उपयोग, बाएँ : इंसान के खाने योग्य, जड़ों को खोदने के लिए, किया जाता था, और, दाएँ : जानवरों की खाल से, बने वस्त्रों को सिलने के, लिए किया जाता था।, 1 12, हमारे अतीत-I, 2021-22, ed
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भीमबेटका (आधुनिक मध्य, प्रदेश), चूंकि पत्थर के उपकरण बहुत महत्वपूर्ण थे इसलिए लोग ऐसी जगह, ढूँढ़ते रहते थे, जहाँ अच्छे पत्थर मिल सकें, इस पुरास्थल पर गुफाएँ व, कंदराएँ मिली हैं। लोग इन, गुफाओं में इसलिए रहते थे,, क्योंकि यहाँ उन्हें बारिश, धूप, और हवाओं से राहत मिलती, शैल चित्रकला: इनसे हमें क्या पता चलता है?, थी। ये गुफाएँ नर्मदा घाटी के, पास हैं।, क्या तुम बता सकते हो कि, रहने के लिए लोगों ने यह, जगह क्यों चुनी होगी?, एक शैल चित्र।, इस चित्र के बारे में बताओ।, जिन गुफाओं में लोग रहते थे, उनमें से कुछ की दीवारों पर चित्र मिले हैं ।, इनमें कुछ सुन्दर उदाहरण मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं, से मिले चित्र हैं। इनमें जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण, किया गया है।, NGER, 1 14, हमारे अतीत-I, 2021-22, ted
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पुरास्थल, पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औजार बर्तन और, इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते हैं। ऐसी वस्तुओं का, निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वे, उन्हें वहीं छोड़ गए। ये ज़मीन के ऊपर, अन्दर, कभी-कभी, समुद्र और नदी के तल में भी पाए जाते हैं। इन पुरास्थलों के, बारे में आपको अगले अध्यायों में बताया जाएगा।, आग की खोज, कुरनूल गुफा ढूँढ़ो (पृष्ठ 13)। यहाँ राख के अवशेष मिले हैं ।, इसका मतलब यह है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे। आग का, इस्तेमाल कई कार्यों के लिए किया गया होगा जैसे कि प्रकाश के लिए,, भूनने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भगाने के लिए।, मानचित्र 2, मांस, आज हम आग का उपयोग किसलिए करते हैं?, नाम और तिथियाँ, हम जिस काल के बारे में पढ़ रहे हैं, पुरातत्त्वविदों ने उनके बड़े-बड़े नाम रखे हैं । आरंभिक काल को वे, पुरापाषाण काल कहते हैं। यह दो शब्दों पुरा यानी 'प्राचीन', और पाषाण यानी 'पत्थर' से बना है। यह नाम, पुरास्थलों से प्राप्त पत्थर के औज़ारों के महत्त्व को बताता है। पुरापाषाण काल बीस लाख साल पहले से 12,000, साल पहले के दौरान माना जाता है । इस काल को भी तीन भागों में विभाजित किया गया है : 'आरंभिक', 'मध्य', एवं 'उत्तर' पुरापाषाण युग। मानव इतिहास की लगभग 99 प्रतिशत कहानी इसी काल के दौरान घटित हुई।, जिस काल में हमें पर्यावरणीय बदलाव मिलते हैं, उसे 'मेसोलिथ' यानी मध्यपाषाण युग कहते हैं। इसका, समय लगभग 12,000 साल पहले से लेकर 10,000 साल पहले तक माना गया है। इस काल के पाषाण औज़ञार, आमतौर पर बहुत छोटे होते थे इन्हें 'माइक्रोलिथ' यानी लघुपाषाण कहा जाता है। प्राय: इन औज़ारों में हड्डियों, या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हँसिया और आरी जैसे औज़ार मिलते थे। साथ-साथ पुरापाषाण युग वाले औजार भी, इस दौरान बनाए जाते रहे।, अगले, युग, की, शुरुआत लगभग 10,000 साल पहले से होती है। इसे नवपाषाण युग कहा जाता है। नवपाषाण, का क्या मतलब होता होगा?, हमने कुछ स्थानों के नाम दिए हैं। अगले अध्यायों में तुम्हें ऐसे अनेक नाम मिलेंगे। अक्सर हम पुराने स्थानों, के लिए उन नामों का प्रयोग करते हैं, जो आज प्रचलित हैं, क्योंकि हमें ज्ञात नहीं है कि उस काल में इनके, क्या नाम रहे होंगे।, no, 15 I, आखेट-खाद्य संग्रह से भोजन, उत्पादन तक, 2021-22, ublished