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है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है,, वह कैसे, छूट, सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ ।, जो चंदन और पानी में होता है । चंदन के संपर्क में रहने से पानी, में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा, प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले, बादल के समान हो , मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ । जैसे, बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है ,, उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो, जाता हूँ । जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता, रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता, रहता हूँ ।, है प्रभु ! तुम दीपक हो , मैं तुम्हारी बाती के समान सदा, तुम्हारे प्रेम जलता हूँ । प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र, और सुंदर हो । मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ । तुम्हारा और मेरा, मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे, सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है , उसी तरह मैं तुम्हारे, संपर्क से शुद्ध -बुद्ध हो जाता हूँ । हे प्रभु ! तुम स्वामी हो मैं, तुम्हारा दास हूँ।
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कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई कहती हैं, मुझे राम रूपी, बड़े धन की प्राप्ति हुई हैं। मेरे सद्गुरु ने कृपा करके ऐसी अमूल्य, वस्तु भेट की हैं, उसे मैंने पूरे मनोयोग से अपना लिया हैं। उसे पाकर, मुझे लगा मुझे ऐसी वस्तु प्राप्त हो गई हैं, जिसका जन्म-जन्मान्तर से, इन्तजार था। अनेक जन्मो में मुझे जो कुछ मिलता रहा हैं बस उनमे, से यही नाम मूल्यवान प्रतीत होता हैं।, यह नाम मुझे प्राप्त होते ही दुनिया की अन्य चीजे खो गई हैं। इस, नाम रूपी धन की यह विशेषता हैं कि यह खर्च करने पर कभी घटता, नहीं हैं, न ही इसे कोई चुरा सकता है, यह दिन पर दिन बढता जाता, हैं। यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं। इस नाम को अर्थात, श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी - ख़ुशी से उनका गुणगान किया, है।