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अध्याय 2, 3 और 4 में आपने देखा कि किस प्रकार राज्यों का उत्थान और, पतन हुआ। इस उठापटक के बीच ही कलाओं, दस्तकारियों और उत्पादक, गतिविधियों की नयी किसमें शहरों और गाँवों में फल-फूल रही थीं। एक लंबे, अंतराल में कई महत्त्वपूर्ण राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए।, लेकिन सामाजिक परिवर्तन हर जगह एक समान नहीं थे,, क्योंकि अलग-अलग किस्म के समाज अलग-अलग तरीकों, से विकसित हुए। ऐसा कैसे और क्यों हुआ, यह समझना, महत्त्वपूर्ण है।, , इस उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से में समाज, वर्ण के, नियमानुसार पहले से ही विभाजित था। ब्राह्मणों द्वारा सुझाए, गए ये नियम, बड़े-बड़े राज्यों के राजाओं द्वारा स्वीकार किए, गए थे। इससे ऊँच और नीच तथा अमीर और गरीब के बीच, का फ़ासला बढ़ा। दिल्ली के सुलतानों और मुग़लों के काल, में श्रेणीबद्ध समाज ज़्यादा जटिल हो गया।, , बड़े शहरों से परे - जनजातीय समाज, , अलबत्ता, दूसरे तरह के समाज भी उस समय मौजूद थे।, उपमहाद्वीप के कई समाज ब्राह्मणों द्वारा सुआाए गए सामाजिक, नियमों और कर्मकांडों को नहीं मानते थे और न ही वे कई, असमान वर्गों में विभाजित थे। अकसर ऐसे समाजों को, जनजातियाँ कहा जाता रहा है।, , प्रत्येक जनजाति के सदस्य नातेदारी के बंधन से जुड़े, होते थे। कई जनजातियाँ खेती से अपना जीविकोपार्जन करती, थीं। कुछ दूसरी जनजातियों के लोग शिकारी, संग्राहक या, , 2021-22
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उपमहाद्वीप का एक, भौतिक मानचित्र लेकर, वे इलाके बताइए जहाँ, जनजातीय लोग रहते रहे, होंगे।, , हमारे अतीत, , पशुपालक थे। प्रायः वे अपने निवासस्थान के प्राकृतिक संसाधनों का, पूरा-पूरा इस्तेमाल करने के लिए इन गतिविधियों का मिला-जुला रूप, अपनाते थे। कुछ जनजातियाँ खानाबदोश थीं और वे एक जगह से दूसरी जगह, घूमती रहती थीं। जनजातीय समूह, संयुक्त रूप से भूमि और चरागाहों पर, नियंत्रण रखते थे और अपने खुद के बनाए नियमों के आधार पर परिवारों के, बीच इनका बँटवारा करते थे।, , इस उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में कई बड़ी जनजातियाँ फली-फूलीं।, सामान्यतः ये जंगलों, पहाड़ों, रेगिस्तानों और दूसरी दुर्गण जगहों पर निवास, करती थीं। कभी-कभी जाति विभाजन पर आधारित अधिक शक्तिशाली, समाजों के साथ उनका टकराव होता था। कई मायनों में इन जनजातियों ने, अपनी आज़ादी को बरकरार रखा और अपनी अलहदा संस्कृति को बचाया।, , लेकिन जाति-आधारित और जनजातीय समाज दोनों अपनी विविध किस्म, की ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर भी रहे। टकराव और निर्भरता के, इस संबंध ने दोनों तरह के समाजों को धीरे-धीरे बदलने का काम भी किया।, , , , , , जनजातीय लोग कौन थे?, , समकालीन इतिहासकारों और मुसाफ़िरों ने जनजातियों के बारे में बहुत कम, जानकारी दी है। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो जनजातीय लोग भी लिखित, , दस्तावेज नहीं रखते थे। लेकिन समृद्ध रीति-रिवाजों और वाचिक/मौखिक, परंपराओं का वे संरक्षण करते थे। ये परंपराएँ हर नयी पीढ़ी को विरासत में, मिलती थीं। आज के इतिहासकार जनजातियों का इतिहास लिखने के लिए, इन वाचिक परंपराओं को इस्तेमाल करने लगे हें।, , जनजातीय लोग भारत के लगभग हर क्षेत्र में पाए जाते थे। किसी भी, एक जनजाति का इलाका और प्रभाव समय के साथ-साथ बदलता रहता, था। कुछ शक्तिशाली जनजातियों का बडे इलाकों पर नियंत्रण था। पंजाब, में खोखर जनजाति तेरहवीं और चौदहवीं सदी के दौरान बहुत प्रभावशाली, थी। यहाँ बाद में गक्खर लोग ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गए। उनके मुखिया,, कमाल खान गक्खर को बादशाह अकबर ने मनसबदार बनाया था। मुल्तान, और सिंध में मुग़लों द्वार अधीन कर लिए जाने से पहले लंगाह और अरघुन, , , , , , 2021-22
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लोगों के कई किलों पर कब्जा किया और इस, जनजाति को अपना अधीनस्थ बना लिया। इस, 1 क्षेत्र में रहने वाली महत्त्वपूर्ण जनजातियों में मुंडा, और संताल थे, यद्यपि ये उड़ीसा और बंगाल में, भी रहते थे।, , कर्नाटक और महाराष्ट्र की पहाडियाँ-कोली,, बेराद तथा कई दूसरी जनजातियों के निवासस्थान, थे। कोली लोग गुजरात के कई इलाकों में भी रहते, थे। कुछ और दक्षिण में कोरागा, वेतर, मारवार, और दूसरी जनजातियों की विशाल आबादी थी।, , भीलों की बड़ी जनजाति पश्चिमी और मध्य, | भारत में फैली हुई थी। सोलहवीं सदी का अंत, आते-आते उनमें से कई एक जगह बसे हुए, खेतिहर और यहाँ तक कि ज़मींदार बन चुके थे।, तब भी भीलों के कई कुल शिकारी-संग्राहक बने, £ रहे। मौजूदा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और, 6 आंध्र प्रदेश में गोंड लोग बड़ी तादाद में फैले, हुए थे।, , 7 ; खानाबदोश और घुमंतू लोग कैसे, रहते थे, , | खानाबदोश चरवाहे अपने जानवरों के साथ, | दूर-दूर तक घूमते थे। उनका जीवन दूध और, अन्य पशुचारी उत्पादों पर निर्भर था। वे खेतिहर, गृहस्थों से अनाज, कपड़े, बर्तन और ऐसी ही, , , , , , चित्र 2 : रात में भील लोग हिरन का शिकार कर रहे, , 52०2 (2-7/%४2:५०५-८*, , चित्र 3, , घुमतू व्यापारियों की श्रृंखलाएँ भारत को बाहरी दुनिया, से जोड़ती थीं। यहाँ मेवा इकट्ठा करके उसे ऊँटों पर, लादा जा रहा है। मध्य एशिया के व्यापारी ऐसी वस्तुएँ, भारत लाते थे और बंजारे एवं अन्य व्यापारी उन्हें, स्थानीय बाजारों तक पहुँचाते थे।, , हमारे अतीत 94, , 2021-22
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चीज़ों के लिए ऊन, घी इत्यादि का विनिमय भी करते थे। कुछ, खानाबदोश अपने जानवरों पर सामानों की ढुलाई का काम भी करते, थे। एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते वे सामानों की खरीद-फ़रोख्त, करते थे।, , बंजारा लोग सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारी-खानाबदोश थे। उनका कारवाँ, “टांडा' कहलाता था। सुलतान अलाउद्दीन ख़लजी (अध्याय 3) बंजारों का ही, इस्तेमाल नगर के बाज़ारों तक अनाज की ढुलाई के लिए करते थे। बादशाह, जहाँगीर ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि बंजारे विभिन्न इलाकों से अपने, बैलों पर अनाज ले जाकर शहरों में बेचते थे। सैन्य अभियानों के दौरान वे, मुग़ल सेना के लिए खाद्यान्नों की ढुलाई का काम करते थे। किसी भी, विशाल सेना के लिए 1,00,000 बैल अनाज ढोठते होंगे।, , सत्रहवीं सदी के आरंभ में भारत आने वाले एक अँग्रेज़ व्यापारी, पीटर मंडी,, ने बंजारों का वर्णन किया:, , सुबह हमारी मुलाकात बंजारों की एक टांडा से हुई जिसमें 14,000 बेल, , थे। सारे पशु गेहूँ और चावल जैसे अनाजों से लदे हुए थे।... ये बंजारे लोग..., , अपनी पूरी घर-ग्रहस्थी-बीवी और बच्चे--अपने साथ लेकर चलतें हैं। एक, टांडा में कई परिवार होते हैं। उनका जीने का तरीका उन भारवाहकों से, मिलता-जुलता है जो लगातार एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं।, गाय-बैल उनके अपने होते हैं। कई बार वे सौदागरों के द्वारा थाड़े पर, नियुक्त किए जाते हैं, लेकिन ज्यादातर वे खुद सोदागर होते हैं। अनाज जहाँ, सस्ता उपलब्ध है, वहाँ से वे खरीदते हैं और उस जगह ले जाते हैं जहाँ वह, महँगा हे। वहाँ से वे फिर ऐसी चीज़ें लाद लेते हैं जो किसी और जगह, मुनाफे के साथ बेची जा सकती हैं।... टांडा में छह से सात सो तक लोग, हो सकते हैं।.. वे एक दिन में 6 या 7 मील से ज़्यादा सफर नहीं, करते-यहाँ तक कि ठंडे मौसम में भी। अपने गाय-बेलों पर से सामान, उतारने के बाद वे उन्हें चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं, क्योंकि यहाँ ज़मीन, पर्याप्त है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं।, , पता करें कि आजकल गाँव से शहरों तक अनाज ले जाने का काम, ? कैसे होता है। बंजारों के तौर-तरीकों से यह किन मायनों में भिन्न या, समान हैं?, , 95, , 2021-22, , खानाबदोश और, भ्रमणशील समूह, खानाबदोश घुम॑तू लोग होते, हैं। उनमें से कई पशुचारी, होते हैं जो अपनी रेवड़, और पशुवृद के साथ एक, चरागाह से दूसरे चरागाह, घूमते रहते हैं। इसी तरह, दस्तकार, फेरीवाले और, नृतक-गायक एवं अन्य, तमाशबीन श्रमणशील समूह, अपना कामध॑धा, करते-करतें एक जगह से, दूसरी जगह की यात्रा पर, रहते हैं। खानाबदोश ओर, अ्रमणशील समूह, दोनों, अकसर उस जगह लौट कर, आते हैं जहाँ उन्होंने पिछले, साल दौरा किया था।, , , , जनजातियाँ , खानाबदोश ...