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सचना बध, I. अपने मित्र/सहेली को साइंस सिटी देखने के लिए उत्साहित करते हुए प्र, लिखें।, अपने, उत्तर-, 18, मॉडल टाऊन,, जालन्धर ।, 10 अगस्त, 20...., बह, प्रिय मनप्रीत,, आशा है कि तृ ठीक होगी। मुझे पता है कि तेरी मासिक परीक्षाएँ पिछले सप्ताह समाप्त, हा गई थीं। तू अपने स्वभाव के अनुसार फिर से किताबों में डूबने ही वाली होगी पर मैंने, तुझ एक विशेष कारण से यह पत्र लिखा है। जालन्धर-कपूरथला सड़क पर बहुत बड़े, क्षेत्रफल में बने साइंस सिटी को एक बार अवश्य देख कर आ। जिस दिन भी तुझे समय, मिले तू माता-पिता जी को साथ लेकर वहाँ जा। जो कुछ तुमने अब तक अपनी किताबों, में पढ़ा है उसे अपनी आँखों से वहाँ देख कर जो मज़ा आएगा उसे जुबान से प्रकट नहीं, किया जा सकेगा पूरे एक सौ करोड़ रुपये की लागत से बना यह अपने आप में, अनूठा, है। इसका गोलाकार थियेटर इतना अद्भुत है कि दिखाई जाने वाली फिल्म में तू एक सूई।, गिरने की आवाज़ तक सुन सकेगी। तारामंडल, ग्रह-उपग्रह और मंदाकनियाँ अद्भुत ढंग, से घूमती दिखाई देती हैं। साइंस और भूगोल की पुस्तकों में जो पढ़ा है उसे अपनी आँों, से देखना अद्भुत-सा लगता है। एक मशीन पर बैठ कर तो ऐसा लगता है जैसे हम आकाश, में उड़ रहे हों जबकि मशीन कहीं नहीं उड़ती और न कहीं जाती है। भूकंप के झटके को, भी एक मशीन महसूस करा देती है। रंगबिरंगी लेज़र किरणों का शो तो मन को मोह लेता, है। 'अमेजिंग लिविंग मशीन' के द्वारा मानव शरीर की संरचना की वैसी झलक मिल जाती, है जैसी हमारी किताबों में नहीं लिखी हुई। एक गैलरी में तितलियाँ ऐसे लगती हैं जैसे, हमारी इच्छा से हिल रही हों। वे तो हमारे ऊपर आ कर बैठती-सी लगती हैं। डायनासोर, पार्क के मॉडल तो जूरैसिक पार्क फ़िल्म को याद करा देते हैं। तरह-तरह के हवाई जहाज, टैंक हमारे ज्ञान को बढ़ाते ही नहीं बल्कि मोह लेते हैं। मेरे कहने या लिखने से तुझे वह, मज़ा नहीं आ सकता जितना तुझे इसे देखने से आएगा। तू यहाँ जरूर जाना। जब में इस