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0 ४0४७0 ४४४४ ४७४ ४४०७४ ४७४४० ०, , “नहीं लाया हूँ, सरकार! मुझे पता नहीं था कि ये सब भी लगते हैं।", , बिजली साहब फुसफुसाए, “हूँ...पता नहीं था। आ जाते हैं मुँह उठाए। समझते हैं सरकारी दफ़्तरों में बिना, नियम-कायदे के काम हो जाता है।', , फिर भोलाराम से बोले, “ठीक है, नक्शा और प्रमाणपत्र लेकर आओ, फिर देखेंगे।", , पटवारी से प्रमाणपत्र प्राप्त करने में भोलाराम को जो भाग-दौड़ करनी पड़ी, उससे उसे यह समझ में आ, गया कि जब किसी अधिकारी को काम टालना होता है, तब वह पटवारी से प्रमाणपत्र लाने के काम में लगा, देता है। किसी इलेक्शन जीतने कौ खुशी हासिल हुई भोलागम को, जब उसे पटवारी से प्रमाणपत्र प्राप्त हो गया।, प्रमाणपत्र और नक्शा लेकर विधायक कौ-सी चाल से चलकर भोलाराम बिजली ऑफ़िस में पहुँचा और साहब, के हवाले किया। उसकी चाल में गर्व था। लेकिन साहब ने भोलागरम को पहचानने से इनकार कर दिया।, , कई तरह से याद दिलाए जाने के पश्चात् साहब ने पूछा, “'इन काग़ज़ों को लेकर क्यों आए हो?”, “आपने ही तो मँगवाया था, हुज्ूर!"', , “मैंने क्यों मगवाया था?”!, , “बिजली कनेक्शन देने के लिए साहब!” भोलागम ने याद दिलाते हुए कहा।, , “अच्छा, तो सब काग़ज्ञ तैयार हो गए?", , “हाँ, सरकार, सब तैयार हो गए।", , बिजली साहब ने घुड़कतें हुए कहा, “तुम्हारे कहने से मान लें कि तैयार हो गए। यह सरकारी दफ़्तर है,, वहाँ काग़ज़ सही करने का एक तरीका होता है, इसी बात कौ तो हम लोग सरकार से तनखुवाह लेते हैं।'', , “तरीका तो आप लोग ही समझें, हुजूर, हम लोग तो केवल हुक्म बजाना जानते हैं।'' भोलाराम ने निरीहता, के साथ जवाब दिया।, , बिजली साहब ने अनमने ढंग से कुछ देर काग़ज़ों का निरीक्षण किया, फिर पूछा, “खेत भी तुम्हारे हैं, पंप, भी तुम्हारा है, लेकिन पानी कहाँ से खींचोगे, भोलागम?"', , “नदी से, साहब!" भोलाराम ने जवाब दिया।, , साहब ने पूछा, “नदी किसकी है?”, , भोलाराम हड़बड़ा गया-“पता नहीं किसकी है साहब!'', , किसी काम को अड़ाने से जो खुशी महसूस होती है, वह खुशी बिजली साहब के चेहरे पर दिखाई पड़ी।, व बोले, “नदी किसकी है, पता नहीं है तो उसमें से पानी कैसे ले सकते हो? जाओ, नदी जिसकी है, उससे, लिखवाकर लाओ कि पानी लेने में उसे कोई आपत्ति नहीं है।'', , “बहुत अच्छा, सरकार।" कहकर भोलाराम उस छात्र की तरह लौट आया जिसे शिक्षक स्कूल में पढ़ाता, कुछ नहीं है, लेकिन प्रतिदिन लंबा-चौड़ा होमवर्क सौंप देता है।, , लौटकर भोलागम यह पता लगाने में जुट गया कि नदी किसकी है। पूछताछ में प्रमुख नेताओं, प्रख्यात दादाओं, तक ने नदी का स्वामी बनने से इनकार कर दिया। इन रण-बाँकुरों से निशश होकर भोलाराम जंगल दफ़्तर की, , ज़जार्व ते लबते एण-बकु एस ने लक्ष कले के कक..., , ह--> 0", , , , अथथाह॥ प्र (शाकिकागााः, , क्, , कल आय आय तय तय तय तय कै तो जीत कै कै की
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देहरी पर मत्था टेकने पहुँचा। भोलागम ने जंगल साहब से कहा,, “'साहबजी! नदी आपके अंडर में आती है, आप मुझे पानी, ले जाने का नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट दिलवा दीजिए, बड़ी, कृपा होगी।", जंगल साहब ने कहा, “कोई नदी-बदी हमारे अंडर में, नहीं आती है। हमें जंगल काटने से ही फ़ुरसत नहीं है, नदी, का हिसाब लगाने कहाँ जाएँगे! अरे, नदी हमारी होती तो अब, तक केवल रिकॉर्ड में दिखाई देती। वास्तविकता में पेड़ों की, तरह कब की साफ़ हो गई होती। नदी पहाड़ से निकलकर, आती है। जाओ, खनिज विभाग वालों से पता करो।', भोलाराम भागा-भागा खनिज विभाग पहुँचा।, खनिज साहब ने कहा, “क्या हमें मूर्ख समझता है? सरकारी, कुर्सी पर बैठे हैं, कोई घास नहीं छील रहे हैं। अगर नदी खनिज, विभाग में आतो तो हम अभी उसकी बूँद-बूँद रायल्टी पर उठा, देते। जाओ, ऐसी सब मलाई का काम राजस्व विभाग के अंडर में आता है।””, भोलाराम तुरंत तहसीलदार शरणम् गच्छामि हुआ। उसने अपनी व्यथा तहसीलदार साहब से सुनाई।, तहसीलदार साहब ने कहा, “राजस्व विभाग तो ठोस धरातल वाला विभाग है, नदी का हमसे क्या स, परेशान भोलाराम ने जवाब दिया, “बहती नदी में हाथ धोना भी तो आपके भाग्य में ही बा हैं,, तहसीलदार ने भोलाराम को घूरकर देखा, लेकिन भोलाराम ने परवाह न करते हुए कहा, “नदी में सा, फल बोने का ठेका भी आप ही देते हैं। सरकारी टैक्स कौ वसूली कर बिना रसीद काटे ही यह सब हो., है। ज़रूर नदी आपके ही अंडर में आती होगी।'', तहसीलदार ने स्थिति को स्पष्ट समझ लेने के इरादे से पूछा, “यह नदी बहकर सीधे समुद्र में मिल, है, या बीच में कहीं गुम हो जाती है?”', भोलाराम ने बताया, “हुज्ूर, आगे जाकर सिंचाई वालों ने इस नदी पर बाँध बना दिया है।", यह सुनकर तहसीलदार का नियम-मोह जाग उठा। बोले, “यदि तुम्हें पंप का कनेक्शन मिल जा, बाँध में पानी कम हो जाएगा। लाखों-करोड़ों रुपयों कौ लागत से बना बाँध बेकार हो जाएगा।", भोलाराम ने समझाया, “लेकिन पाँच हॉर्सपावर के पंप से इतने बड़े बाँध को क्या फ़र्क पड़ जाएगा,, तहसीलदार ने कहा, “फ़र्क पड़े या न पड़े, यह नियम का सवाल है। काम भले हौ देर से, , पुख्ता होना चाहिए। जाओ, पहले सिंचाई विभाग से लिखवाकर लाओ कि पाँच एच.पी, का पंप चलाने, बाँध को कोई नुकसान नहीं होगा।'', , , , शब्बार्थ -नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफ्रिकेट-अनारपात प्रमाणपत्र, राजस्व- भूमि आदि का कह कर जो सक्कर को देय जगएे करणन, में जाना, पुद्ा-पक्का, , ++---- &0)-----्प०, , , , कल आय आय तय तय तय तय कै तो जीत कै कै की
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॥, , |, , सरकारी नियमों के प्रति भोलाराम नतपस्तक हो उठा। काम देर से हो, इतनी देर से हो कि उसकी आवश्यकता, , हो समाप्त हो जाए। लेकिन काम पुदुता होने का विश्वास बना रहे, यही है सरकारी नियम। धन्य है सरकार,, और धन्य है तुम्हारा सरकारी नियमा, , मरता क्या न करता। भोलाराम भागा-भागा सिंचाई दफ़्तर पहुँचा।, , सिंचाई साहब ने अरज़ी पढ़ते ही ज़ोर से मुँह बिचकाया और कहा, “नदी से तुम्हें पानी दे देंगे और बाँध, में पानी कम हुआ तो कमांड एरिया के खेतों को पानी कहाँ से देंगे?”, , इस बार भोलाराम ने झल्लाकर कहा, “मेगा पाँच हॉर्सपावर का पंप कोई अगत्म्य मुनि नहीं है साहब, जो, नदी का पूरा पानी पी जाएगा।'", , सिंचाई साहब ने चिढ़ते हुए कहा, “हम कोई मंत्री नहीं... सरकारी अफ़सर हैं। लिखित में कुछ देते हैं तो, पहले पूरो जाँच-पड़ताल कर लेते हैं। अभी हम अपने एस.डी.ओ. के ज़रिए सब-इंजीनियर को खबर भिजवाएँगे।, वह इस बात को जाँच करेगा कि बाँध के जलग्रहण क्षेत्र के कितने क्यूसेक पानी के आधार पर बाँध को डिज़ाइन, किया गया है। इसके बाद वह इस बात की जाँच करेगा कि पाँच हॉर्सपावर का पंप लगाने से बाँध की भरण-श्षमता, को कोई खतरा तो नहीं है? तब तुम्हें 'नो ऑब्जेक्शन' सर्टिफिकेट मिल सकता है।', , इस लंबी खानापूरी को सुनकर भोलाराम भरयाक्रांत हो उठा। सहमते हुए उसने पूछा, '“इस कार्यवाही में कितना, समय लग जाएगा, साहब?”, , साहब गुर्रए, “क्या हम लोग तुम्हारे ही काम के लिए खाली बैठे हैं? सरकारी नौकर हैं। सरकारी बैठकों,, दौरों से फुर्सत मिलेगी तब सोचेंगे। कम-से-कम एक माह का समय तो लग ही जाएगा।'”, , भोलाराम को बेहोशी-सी आने लगी। कुछ कहे बिना ही वह लौट आया और महान भारतीय परंपरा के अनुसार,, बिना किसी अनुमति के उसने पंप फिट कर पानी लेना शुरू, ज कर दिया। लाइनमैन ने विद्युत कनेक्शन देने में खुशी प्रकट, की।, , पंप मज़े से चल रहा है। फसल अच्छी है। उलत कृषि का, , कभी बिजली साहब आते रहते हैं। कृषि साहब दूसरे कृषकों, को भी ऐसे ही उपाय कर आत्मनिर्भर बनने का महत्त्व समझाते, रहते हैं।, , भोलागम जब भी पंप को पानी की मोटी धार फेंकते देखता, है, तब-तब सरकारी नियमों के प्रति उसको श्रद्धा दृढ़ होती, , जाती है।, -ईश्वर शर्मा, , , , , , अबश0आआ एज) (ध्ाशक्शएवः, , , , , , कल आय आय तय तय तय तय कै तो जीत कै कै की