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दूसरी इकाई, पाठ के ऑगन में, (३) कविता के तृतीय चरण का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए ।, कविता के तृतीय चरण में पंत जी ने प्राकृतिक सौंदर्य और आनंद को मनुष्य जीवन के साथ जोड़ने, की कोशिश की है। कवि इन पंक्तियों के माध्यम से ईश्वर से कहते हैं कि हे ईश्वर प्रकृति के इस सौंदर्य, एवं क्रियाकलापों को देखकर ऐसा लगता है कि इसमें जीवन की इतनी सुंदरता होने के बावजूद भी, मानव, मन दुखी होकर हमेशा संघर्ष क्यों करता है? इस समस्या का समाधान ढूँढते हुए कवि हर एक मनुष्य को, अपनी प्रकृति के हर कार्य-कलाप फिर-फिर विश्लेषण-संश्लेषण करने की सलाह देते हैं ।, कवि कहते हैं कि शायद मनुष्य अपने जीवन में क्षुद्र-अहंकार के कारण वह सीमित, आत्मकेंद्रित बन, गया है । परिणामस्वरूप अपने खुशियों से ही हछिन्न-भिन्न हो गया है । अब तो ऐसा लगता है कि प्रकृति में, जो चेतना है शायद मानव के उपर्युक्त स्वभाव के कारण चेतना ही अचेतन हो गई है । यही कारण है।, मनुष्य इस प्रकृति के भाव सौंदर्य के सुख खोकर दुःख से घिरा हुआ है।
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दूसरी इकाई, पाठ के आँगन में, (२) कविता द्वारा प्राप्त संदेश लिखिए ।, प्रस्तुत कविता में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का रसास्वाद खुली आँखों से लेने की प्रेरणा दी है।, और आत्मकेंद्रित न बनकर सार्वभौम सोच रखकर जीने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को प्रकृति से हमेशा, खुश एवं प्रसन्न रहने की प्रेरणा लेनी चाहिए। मानव के मन में वैश्विक प्रेम व परोपकार की भावना, साकार करना ही इस कविता का उद्देश्य है।, Tutors