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G-16, चूँ-चूँ करती आई चिड़या, बाल मंदिर, भावनगर, 13 अप्रैल 1936, प्यारे बच्चो,, दोपहर के ठीक तीन बजे हैं। आकाश में एक भी बादल नहीं, है।, CER, सूरज, तेज़ चमक रहा है।, गोरैया, फ़ाख्ता, शक्कर-खोरा सब अपनी-अपनी जोड़ी, बनाकर, अपना घोंसला बनाने की तैयारी में लगे हैं।, पक्षियों ने तो अपना घोंसला बना भी लिया है ।, कुछ, फ़ाख्ता, है। कुछ, घोंसलों, में अंडों से बच्चे भी निकल आए हैं उन नन्हें बच्चों के, माँ-बाप उन्हें तरह-तरह के कीड़े और अन्य चीज़ें खिलाने में व्यस्त हैं।, हमारे आँगन में भी फ़ाख्ता का एक बच्चा हुआ है। उसके घोंसले में अभी एक, अंडा और पड़ा है। लगता है, उसकी माँ ने इसे अभी ठीक से सेया नहीं है।, अध्यापक के लिए-गिजुभाई बर्धेका गुजरात में रहते थे। वे बच्चों के लिए मजेदार किस्से-कहानियाँ और पत्र, लिखते थे। उनके द्वारा बच्चों को लिखे इस पत्र में आस-पास के पश्षियों के बारे में बताया गया है इस पत्र को, पढ़ने के बाद बत्चों को अपने आस-पास के पक्षियों को देखने के लिए प्रोत्साहित करें तथा उन पर चर्चा करें।, 2021-22, 3
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आस-पास, गोपालभाई के घर वाली सड़क के किनारे बहुत सारे, पत्थर हैं। इन पत्थरों के बीच खाली जगह में कलचिड़ी, (इंडियन रोबिन) ने अंडे दिए हैं। बच्चुभाई ने मुझे वह, जगह दिखाई थी। मैंने दूरबीन से घोंसले में देखा । घोंसला, घास से बना है। उसके ऊपर पौधों की नाजुक टहनी,, जड़ें, ऊन, बाल, रूई सब विछा है। कलचिड़ी का, घोंसला ऐसा ही होता है। आखिर उसके बच्चों को, आरामदायक घर और बिस्तर चाहिए न! कलचिड़ी कौए, जैसी नहीं है! कौए के घोंसले में तो लोहे के तार और, लकड़ी की शाखाएँ जैसी चीजें भी होती हैं।, कलचिड़ौ, कलचिड़ी के घोंसले में मैंने एक बच्चा भी देखा।, वह अपनी चोंच फाड़कर बैठा था। उसकी चोंच अंदर, से लाल थी। कुछ देर बाद कलचिड़ी कहीं से उड़कर, आई और बच्चे के मुँह में कुछ रखा। शायद कुछ छोटे-छोटे कीड़े होंगे। तब तक शाम, हो गई। कलचिड़ी भी अब अपने बच्चे के साथ घोंसले में बैठ गई।, कौआ, तुम जानते ही हो, कोयल बहुत मीठा गाती है पर क्या, तुम्हें पता है, वह अपना घोंसला बनाती नहीं है। वह कौए के, घोंसले में अंडे दे देती है। कौआ अपने अंडों के साथ कोयल, के अंडों को भी सेता है।, कोयल, नज़दीक में एक छोटा-सा पेड़ है। उसकी एक डाल से, घोंसला लटका हुआ है। पक्षियों में भी कितना अंतर है! कौआ, पेड़ की ऊँची डाल पर घोंसला बनाता है, जबकि फ़ाख्ता, कैकटस के काँटो के बीच या मेंहदी की मेंढ़ में। गोरैया, 128, आमतौर पर घर में या आस-पास दिखाई देती है। वह कहीं, भी घोंसला बना लेती है-अलमारी के ऊपर, आईने के पीछे,, बसंत गौरी, 2021-22, 4, huthed
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चूँ-चूँ करती आई चिड़िया, घर की दीवार के आले में कबूतर भी ऐसे ही अपना, घोंसला बनाता है-पुराने मकान या खंडहरों में। बसंत, गौरी, जो गर्मियों में 'टुक टुक' करते रहते हैं, पेड़ के, तने में गहरा छेद बनाकर उसमें अंडे रखते हैं।, दर्जिन चिड़िया का तो, जैसा नाम वैसा काम। वह, अपनी नुकीली चोंच से पत्तों, को सी लेती है और उसके, बीच में बनी थैली को अंडे, घोंसला, दर्जिन चिड़िया, देने के लिए तैयार करती है। यही है उसका घोंसला।, शक्कर खोरा किसी छोटे पेड़ या झाड़ी की डाली पर, अपना लटकता घोंसला बनाते हैं। उसी शाम हमने एक डाल, शक्कर-खोरा, से टैगा शक्कर-खोरा का घोंसला, देखा। क्या तुम जानते हो कि, यह घोंसला किन चीज़ों से बनता है? घोंसले में बाल,, बारीक घास, पतली टहनियाँ, सूखे पत्ते, रूई, पेड़ की, छाल के टुकड़े और कपड़ों के चीथड़े होते हैं। यहाँ तक, कि मकड़ी के जाले भी होते हैं।, मैंने दूरबीन से देखा, उस घोंसले में एक बच्चा भी, था। घोंसले की एक तरफ़ छोटा-सा छेद था। वहीं बच्चा, बैठा था, अपनी माँ और खाने के इंतज़ार में। उसको और, वीवर पक्षी, काम भी क्या होगा-खाना और सोना!, to, क्या तुम वीवर पक्षी के बारे में यह बात जानते हो? सभी नर वीवर पक्षी, अपने-अपने घोंसले बनाते हैं। मादा वीवर उन सभी घोंसलो को देखती है। उनमें, से जो उसे सबसे अच्छा लगता है, उसमें ही वह अंडे देती है, 129, 2021-22, hed