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फैस गया, बेचारा!, शिकारी पौधे!, कुछ ऐसे पौधे भी होते हैं, जो चूहों, मेंढकों,, कीड़े-मकौड़ों और छोटे जीवों का शिकार करते हैं। इनमें, 'नीपेन्थिस' सबसे ज्यादा मशहूर है। यह ऑस्ट्रेलिया,, इंडोनेशिया और भारत के मेघालय राज्य में पाया जाता, है। इसका आकार लंबे घड़े जैसा होता है, जिसके ऊपर, पत्ती का ढक्कन लगा होता है। घड़े से खास खुशबू, निकलती है जिसकी वजह से कीड़े खिंचे चले आते हैं।, पौधे के ऊपर पहुँचते ही कीड़े अंदर फँस जाते हैं और, बाहर नहीं निकल पाते। देखा, ये पौधे भी शिकर, करते हैं और वह भी कितनी चतुराई से!, 3
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कौन कहाँ से आए जी?, बीज को बिखराने वाली सूची में क्या तुमने हमें, यानी इन्सानों, को शामिल किया है?, हाँ, हम भी बीजों को यहाँ से वहाँ पहुँचाते हैं। अनजाने में, और जान-बूझकर भी। कोई पौधा खूबसूरत लगे या कोई पौधा, दवाई में उपयोगी हो, तो हम उसके बीज अपने बगीचे में, उगाने के लिए ले आते हैं। ये पौधे बड़े होते हैं और दूर-दूर, तक बिखर जाते हैं। कई सालों बाद तो लोगों को यह याद ही, नहीं रहता कि ये पौधे हमेशा से यहाँ नहीं उगते थे ये तो, कहीं और से ही आए हैं। पता है, मिर्ची हमारे यहाँ कहाँ से, आई? इसे पुर्तगाल देश के व्यापारी दक्षिण अमरीका से भारत, लाए थे। अब यह सारे भारत में उगाई जाती है।, बीज, बीज़, बीज, 49, 2021-22, जानना चाहते हो, कौन कहाँ से आया है? इस कविता में पढ़ो।, आलू, मिर्ची, चाय जी, आलू, मिर्ची, चाय जी, कौन कहाँ से आए जी, नक्शे में यूरोप किधर, वहीं से आए गोभी-मटर, सात समुंदर पार से, दुनिया के बाज़ार से, चाय असम की बाई जी, आलू, मिर्ची, चाय जी, चली चीन से सोयाबीन, पहुँची अमरीका बजाती बीन, घूम-घाम लौटी अपने देश, उसमें हैं गुण कई विशेष, व्यापार से उपहार से, जंग-लड़ाई मार से, हर रस्ते से आए जी, आलू, मिर्ची, चाय जी, दक्षिण अमरीकी मिर्ची रानी, मसालों की है पटरानी, रोब जमाकर आई जी, आलू, मिर्ची, चाय जी, मूँगफली, आलू, अमरूद, धूम मचाते करते उछलकूद, बैंगन, मूली, सेम, करेला, आम, संतरा, बेर और केला, पालक, परवल, टिंडा, मेथी, हैं भाई-बहन ये सब देशी, साथ टमाटर आए जी, आलू, मिर्ची, चाय जी, भारत की पैदाइश जी, कौन कहाँ से आए जी, भिंडी है अफ्रीका की, भूरी-भूरी कॉफ़ी भी, आलू, मिर्ची, चाय जी, राजेश उत्साही, चकमक, मई-जून 2002, 4, Ged
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6:29 E, 7.00, KBIS E 491 55, बूँद-बूँद, दरिया-दरिया..., 61, 1, 6. बूंद-बूँद, दरिया-दरिया..., बात पुरानी, यह है 650 साल पुराना घड़सीसर। 'सर' यानी तालाब। इसे जैसलमेर के राजा घड़सी, ने लोगों के साथ मिलकर बनवाया था। इसके दोनों तरफ़ पक्के घाट, सजे हुए बरामदे,, कमरे, बड़े हॉल और न जाने क्या-क्या था । यहाँ लोग मिलते जुलते थे, जलसे होते थे,, और गाने-बजाने का प्रोग्राम भी होता था। इसके घाट पर बनाए गए स्कूल में आसपास, के बच्चे पढ़ने आते थे। सभी इस बात का ध्यान रखते थे कि तालाब गंदा न हो और, सफ़ाई में भी हाथ बँटाते थे।, मीलों तक फैले इस घडसीसर में बारिश का पानी इकट्ठा होता था। तालाब इस तरह, बनाया गया था कि जब वह पानी से भर जाता, तब बाकी पानी बहकर नीचे बने हुए, तालाब में चला जाता। जब वह भी लबालब भर जाता तो पानी तीसरे तालाब में चला, जाता। इस तरह नौ तालाब, एक-दूसरे से आपस में जुड़े, थे। पूरे साल पानी की कोई, परेशानी नहीं होती थी।, पर आज घड़सीसर जैसे, उजड़-सा गया है। नौ तालाबों, के रास्ते में मकान और, कॉलोनियाँ बन गई हैं। यहाँ, इकट्ठा होने वाला पानी अब, तालाब की तरफ़ न जाकर, बेकार बह जाता है।, 51, 2021-22, अल-बिरूनी की नज़र से, हज़ार से भी ज्यादा साल पहले एक यात्री भारत आए। इनका नाम था, अल-बिरूनी। अल-विरूनी जिस देश से आए थे उसे आजकल उज्वेकिस्तान, कहते हैं। अल-बिरूनी ने बहुत ही बारीकी से चीजों और जगहों को देखा, और उनके बारे में लिखा। खासतौर से वे जो उन्हें अपने देश से अलग लगीं।, चलो, देखें कि अल-विरूनी उस समय के तालाबों के बारे में क्या लिखते हैं।, यहाँ के लोग तालाब बनाने में तो माहिर हैं! अगर हमारे देश के लोग इन्हें, देखेंगे, तो हैरान ही रह जाएँगे। बहुत बड़े-बड़े भारी पत्थरों को लोहे के, कुण्डों और सरियों से जोड़कर तालाब के चारों तरफ़ चबूतरे बनाए जाते हैं।, इन चबूतरों के बीच में ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों की लंबी कतारें होती, हैं। लोगों के उतरने चढ़ने के रास्ते अलग-अलग होते हैं। यहाँ कभी भीड़, लगने से परेशानी नहीं होती है।, आज इतिहास पढ़ने वाले लोगों को अल-बिरूनी की किताबों से उस जमाने के बारे, eptristhed