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भारत में राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय आन्दोलन, राजा राममोहन राय व उनके अन्य अनुयायी बुद्धिजीवियों ने पार्चात्य संस्कृति का अध्ययन कर भारत में राष्ट्रवाद, को जन्म दिया।, > धर्म सुधार आन्दोलन के अलावा पार्चात्य शिक्षा समाचार पत्रों की स्थापना , संचार साधनों के विकास , ब्रिटिश, आर्थिक नीतियों जैसे तत्वों ने राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।, लिटन का वर्नाक्युलर प्रैस एक्ट , आम्म्स एक्ट आई सी एस परीक्षा में बैठने हेतु आयुसीमा में कमी , द्वितीय आंग्ल, अफगान युद्ध , दिल्ली दरबार का आयोजन भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तात्कालिक कारण थे ।, इल्बर्ट बिल विवाद :, इल्बर्ट बिल वायसराय के कानून सदस्य सर सी पी इल्बर्ट ने 1883 ई में पेश किया था। यह मुख्यतः अंग्रेज, अपराधियों के मामलों पर भारत के जजों द्वारा सुनवाई से संबंधित था । इल्बर्द बिल का उद्देश्य सरकारी, अधिकारियों और भारतीय प्रजा के बीच जातीय भेदभाव दूर करना था । अंग्रेजों ने इस् बिल का तीव्र विरोध किया ,, क्योंकि वे किसी भी भारतीय जज से अपने केस की सुनवाई नहीं चाहते थे। भारतीय जनता ने इस बिल का, जोरदार स्वागत किया। अंग्रेजों के तीव्र विरोध के आगे अन्ततः सरकार को झुकना पडा और उसने इल्बर्ट बिल में, संशोधन कर दिया। यह व्यवस्था कर दी गई कि किसी अंग्रेज़ अभियुक्त के भारतीय जज या मजिस्ट्रेट के सामने, उपस्थित किये जाने पर सेशन जज के सामने मुकदमा जूरी के, अंग्रेज होंगे।, 1., द्वारा सुना जाए और जूरियों में कम से कम आधे, कांग्रेस से पूर्व स्थापित होने वाली राजनीतिक संस्थाएं, 1838 ई में कोलकाता में स्थापित लैण्ड होल्डर्स सोसाइटी भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था थी । यह, द्वारकानाथ टैगोर के प्रयासों से स्थापित हुई थी। प्रसन्न कुमार ठाकुर और राधाकान्त देव इसके अन्य नेता थे।, 1843 ई में कलकत्ता में बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन की स्थापना हुई। इसकी स्थापना भी द्वारकानाथ टैगोर के, प्रयासों से हुई। इस संस्था के अंग्रेज भी सदस्य थे। जॉर्ज थामप्सन नामक अंग्रेज ने इसकी एक बार अध्यक्षता, की थी।, 28 अक्टूबर 1851 ई को ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की कलकत्ता में स्थापना हुई थी। राजेन्द्र लाल मित्र, राधाकान्त देव , देवेन्द्रनाथ टैगोर आदि इसके नेता थे। इसकी स्थापना भारतीयों के लिए राजनीतिक अधिकारों, की मांग को लेकर हुई थी।, 1866 ई में दादाभाई नौरोजी द्वारा लन्दन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की गई। इसके गठन का, डद्देश्य भारत से जुडे प्रश्नों पर विचार करना तथा भारतीय जनमत की भावना से ब्रिटिश नुताओं को अवगत, कराना था।, 26 जुलाई 1876 ई में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी व आनन्द मोहन बोस ने कलकत्ता में, की। यह कांग्रेस की स्थापना से पूर्व की अखिल भारतीय संस्था थी।, 1875 ई में शिशिर कुमार घोष द्वारा, 1877 ई में पूना में महादेव गोविंद रानाडे ने पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना की ।, 1884 ई में एम वी राघवाचारी , जी सुब्रमण्यम अय्यर और आनंद चारुलू ने मद्रास में मद्रास महाजन सभा का, गठन किया।, फिरोजशाह मेहता , बदरुद्दीन तैयब जी तथा के टी तैलंग के सम्मिलित प्रयासों से 1885 ई में बंबई प्रेसीडेंसी, एसोसिएशन की स्थापना की गई।, में इंडियन लीग की स्थापना की गई।, 1, PR, RLD, 7138
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सुरेन्द्रनाथ बनर्जी व आनंद मोहन बोस द्वारा स्थापित की गई इंडियन एसोसिएशन द्वारा नेशनल कान्फ्रेंस नाम से, एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन 1883 ई में किया गया | 1885 में जब कांग्रेस का आयोजन बम्बई में, हो रहा था उसी समय नेशनल कान्फ्रेंस का सम्मेलन कलकत्ता में आयोजित हो रहा था इसी कारण सुरेन्द्रनाथ, बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में भाग नहीं ले सके।, सीमित अर्थों में ही सही इन संस्थाओं ने भारतीय जनमानस को राजनीतिक रूप से उद्वेलित करने में महत्वपूर्ण, भूमिका निभाई।, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, 138, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का श्रेय एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी एलन ऑक्टोवियन ह्यूम, को दिया जाता है।, इसकी स्थापना से पूर्व उन्होंने तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन से सलाह, व इसे एक सेफ्टी वाल्व के, रूप में देखा। ऐसा मत लाला लाजपत राय व सी पी दत्त का है।, ने 1884 ई में भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की थी । इसे ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अग्रदूत समझा, ह्यूम, जाता है। कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में 28 दिसम्बर 1885 ई को, हुआ था। इसी सम्मेलन में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर संघ का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखा गया। इसमें, 72 लोगों ने भाग लिया था। व्योमेश चन्द्र बनर्जी प्रथम अध्यक्ष बने थे।, ध्यातव्य है कि आरंभ में उपर्युक्त अधिवेशन पुणे में होना था, आयोजित हुआ।, वहाँ अकाल होने के कारण सम्मेलन मुंबई में, कांग्रेस के बारे में विभिन्न लोगों के कथन ।, कांग्रेस के बारे में डफरिन ने कहा था कि, संख्या सूक्ष्म है।", कर्जन ने कहा था कि "कांग्रेस अपनी मौत की घडियाँ गिन रही है, भारत में रहते हुए मेरी एक सबसे बडी इच्छा है, कि मैं उसे शान्तिपूर्वक मरने में मदद करूँ। कर्जन ने ही कांग्रेस को " गंदी चीज" और "देशद्रोही संगठन करार, दिया।, जनता के उस अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी, व्योमेश चन्द्र बनर्जी के अनुसार कांग्रेस वास्तव में डफरिन की देन थी ।, लाला लाजपत राय ने कांग्रेस को डफरिन के दिमाग की उपज बताया था।, राय ने ही कांग्रेस सम्मेलनों को शिक्षित भारतीयों के राष्ट्रीय मेले की संज्ञा दी थी ।, विपिन चन्द्र पाल ने कांग्रेस को "याचना संस्था" अश्विनी कुमार दत्त ने 'तीन दिनों का तमाशा कहा था। पाल ने, कांग्रेस की नीति को 'भिखमंगी नीति" की संज्ञा दी थी ।, नाथ बनर्जी के नेशनल कान्फ्रेंस का 1886 ई में कांग्रेस में विलय हो गया |, PRANAY GSORLD, आंदोलन का उदारवादी चरण (1885-1905 ई) :, 1885 से 1905, के बीच कांग्रेस की मुख्य भूमिका भारतीय राजनीतिज्ञों को एकता व प्रशिक्षण के लिए एक मंच, प्रदान करने के रूप में थी।, 2
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इस युग में कांग्रेस पर दादाभाई नौरोजी जो कांग्रेस के महासचिव थे , फिरोजशाह मेहता , रानाडे , व्योमेश चन्द्र, बनर्जी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , गोपाल कृष्ण गोखले , मदन मोहन मालवीय, दिनशा वाचा आदि लोगों का वर्चस्व था ।, इन्हें नरमपन्थी या उदारवादी कहा गया।, इनका विश्वास था कि अंग्रेज न्यायप्रिय लोग हैं और वे भारतीयों के साथ न्याय करेंगे। फलस्वरूप इन्होंने भारतीयों, के लिए केवल रियायतों की ही मांग की । इसमें विधान परिषदों का विस्तार , उनकी शक्ति में वृद्धि तथा, प्रतिनिधित्व देना सम्मिलित था।, ये प्रार्थनापत्र , स्मरण , प्रतिवेदन व शिष्टमण्डलों के द्वारा सरकार तक अपनी मांग पहुँचाते थे।, दादाभाई नौरोजी ने पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया" लिखकर अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को, उजागर किया और राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया |।, इन नेताओं ने अपनी मांगें मनवाने के लिए दादाभाई नौरोजी (ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया) की अध्यक्षता में 1887, में भारतीय सुधार समिति की स्थापना की।, 1888 ई में विलियम डिग्बी की अध्यक्षता में इंडियन एजेंसी की भी स्थापना की गई। 1889, ऑफ इंडिया की स्थापना की।, एक ब्रिटिश कमेटी, 171/138-, साम्राज्यवाद की अर्थशास्त्रीय मीमांसा जिसमें धन के निष्कासन जैसे सिद्धान्तों, थी। 1892 ई का एक्ट भी इन्हीं के प्रयासों से पारित हुआ।, 1889ई के बम्बई कांग्रेस अधिवेशन में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य चाल्ल्स ब्रेडला उपस्थित थे। भारतीय, मामलों में अधिक रुचि के कारण ब्रिटिश संसद के लोगों ने उन्हें, कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम मुस्लिम नेता बदरुद्दीन तैयब जी ( मद्रास अधिवेशन - 1887ई) थे।, कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम ब्रिटिश जॉर्ज यूल (चौथा अधिवेशन इलाहाबाद, अध्यक्षता करने वाले अन्य ब्रिटिश थे, (1894 - मद्रास) , हेनरी कॉटन (1904 - बंबई)।, कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला एनी बेसेंट (1917 - कलकत्ता) थीं ।, कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली प्रथम भारतीय महिला सरोजिनी नायडू (1925 - कानपुर ) थीं ।, महात्मा गांधी ने 1924 के बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।, भारत की स्वतन्त्रता के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष जे बी कृपलानी थे।, रमेश चन्द्र दत्त जिन्होंने भारत के आर्थिक इतिहास पर पहली पुस्तक 'इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया" लिखी ,, 1899 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।, प्रतिपादन इनकी प्रमुख उपलब्धि, के लिए सदस्य" के रूप में संबोधित किया।, 1888ई) थे। कांग्रेस की, विलियम बेडरबर्न (1889- बंबई तथा 1910 - अहमदाबाद) , अल्फ़रेड वेब, ने, आंदोलन का उग्रवादी चरण (1905-1919 ई):, नरमपंथी आँदोलन के पुरोधाओं को यह विश्वास था कि ब्रिटिश शासन को अंदर से सुधारा जा सकता है । लेकिन, धीरे धीरे इनका विश्वास कमजोर पडने लगा।, फारस , तुर्की का स्वतन्त्रता संघर्ष , 1896 में अबीसीनिया द्वारा इटली की पराजय , 1905 में जापान द्वारा, रूस की पराजय भारत में उग्रवादी नीतियों के प्रेरणा स्त्रोत थे ।, 1892 ई के कौंसिल एक्ट की असफलता , 1898 ई के कानून के तहत विदेशी शासन के प्रति असंतोष की भावना, फैलाने को अपराध घोषित करने , 1899 ई में कलकत्ता नगर निगम में भारतीय सदस्यों की संख्या को कम करना, 1904 ई में निर्मित इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के द्वारा प्रेस की स्वतन्त्रता को सीमित करने के प्रयास, तथा 1897 ई में नाटू भाईयों को बिना मुकदमा चलाए देश निकाला की सजा देने की घटनाओं ने राष्ट्रवादियों को, उद्वेलित करने का काम किया।, राजनीतिक रूप से चेतनाग्रस्त लोगों ने यह महसूस किय कि जब तक शासन में भारतीयों को भागीदारी नहीं, मिलेगी तब तक देश आर्थिक रूप से प्रगति नहीं कर सकता।, 3
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1905 से 1919 के बीच कांग्रेस में नए लोगों का प्रवेश हुआ जिसमें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक , विपिन चन्द्र, पाल , अरविन्द घोष तथा लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। इन्होंने सरकार के सामने 'स्वराज्य" की मांग रखी ।, इन नेता ओं ने उदारवादी नेताओं की अनुनय विनय की नीतियों को राजनीतिक भिक्षावृत्ति की संज्ञा दी थी ।, अरविंद ने 'भवानी मंदिर ' में लिखा कि "हमारी भारत माता पृथ्वी का एक टुकडा नहीं है, बंगवासी , केसरी व काल जैसे समाचार पत्रों ने कांग्रेस की उदारवादी नीति की आलोचना की।, तिलक ने 1884 ई में गणपति उत्सव व 1886 ई में शिवाजी उत्सव की शुरुआत की।, स्वराज , स्वदेशी और बहिष्कार का नारा सर्वप्रथम तिलक ने दिया| उनके अनुसार 'हमारा राष्ट्र एक ृक्ष की तरह, है जिसका मूल तना स्वराज है और स्वदेशी तथा बहिष्कार इसकी उसकी शाखाएं हैं ।", लाल(लाला लाजपत राय) की पंजाबी , बाल ( बाल गंगाधर तिलक) की केसरी तथा पाल (विपिन, इंडिया ने इस दौरान ब्रिटिश पर हमले कर, ल) की न्यू, कोई कसर नहीं छोडी।, बंगाल का विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन :, दिसंबर 1903 ई में बंगाल विभाजन के प्रस्ताव की जानकारी सामने, वायसराय लॉर्ड कर्जन ने देशभक्ति के उफनते सैलाब को रोकने के लिए राष्ट्रीय गतिविधियों के केन्द्र बंगाल को दो, प्रान्तों पश्चिम बंगाल (बिहार , उडीसा सहित) और पूर्वी बंगाल (असम सहित) में विभाजित करने की घोषणा की, 3617171, थी।, बंगाल के विभाजन की घोषणा 20 जुलाई 1905 को, बंगाल विभाजन के विरुद्ध स्वदेशी आंदोलन आरम्भ, किया गया।, का निर्णय कलकत्ता टाउन हॉल में 7 अगस्त 1905 को, बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 को लोगू, कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन का अनुमोदन किया गया।, विभाजन के दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर, SORED, इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया गया।, आमार सोनार बांग्ला' नामक प्रसिद्ध गीत लिखा जिसे जुलूस में शामिल, | आगे चलकर 1971 ई में बांग्लादेश की स्वतन्त्रता के बाद यह बांग्लादेश, जनता सडकों पर गाती, का राष्ट्रीय गीत बना ।, स्वदेशी आन्दोलन के दौरान लोगों ने सामूहिक रूप से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया ।, विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई । लोगों ने विदेशी पदवियों आदि का त्याग कर दिया। विद्यार्थियों ने अंग्रेजी, स्कूल व कॉलेजों को छोड दिया। स्वदेशी वस्तुओं के छोटे छोटे कारखाने खोले गए ।, अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार सर्वप्रथम कृष्णकुमार मित्र की साप्ताहिक पत्रिका 'संजीवनी ' में सुझाया गया ।, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने राखीबन्धन व रमेन्द्र सुंदर त्रिवेदी ने आराधन का विचार रखा।, बंगालियों में अटूट एकता को दर्शाने के लिए हिन्दू और मुसलमानों ने एक दूसरे की कलाईयों पर राखी बाँधी।, अल्प समय में ही अनेक राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना की गई। अगस्त 1906 ई में राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का गठन, किया गया। "बंगाल नेशनल कॉलेज" तथा बंगाल टेक्नीकल इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई ।, अरविन्द घोष को बंगाल नेशनल कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया ।, पी सी रॉय ने बंगाल केमिकल्स की स्थापना की ।, धरना देने वाले विद्यार्थियों को डराने के लिए अंग्रेजी सरकार ने कार्लाइल सर्कुलर (22 अक्टूबर) जैसे कदम उठाये, 9 नवम्बर को सुबोध मलिक ने 1 लाख रुपये की बड़ी राशि का दान देकर इस आन्दोलन को बड़ा प्रोत्साहन दिया ।, सतीश चन्द्र मुखर्जी की डॉन सोसाइटी व डॉन पत्रिका ने राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन में योगदान दिया।, 4
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बारीसाल में स्थित अश्विनी कुमार दत्त की बांधव समिति ने अपनी प्रथम वार्षिक रिपोर्ट में 89 न्यायिक समितियों के, माध्यम से 523 ग्रामीण विवादों का निपटारा करने का दावा किया।, सुरेन्द्रनाथ स्वदेशी प्रतिज्ञाओं की पद्धति को मंदिरों में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे, न्यू इंडिया , वंदेमातरम , संध्या व युगांतर ने स्वदेशी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।, संजीवनी व प्रवासी जैसी ब्रह्मसमाजी पत्रिकाएं पोंगापंथी की आलोचना करती थी।, कृष्णकुमार मित्र की एंटी सर्कुलर सोसाइटी ने अनेक मुसलमान कार्यकर्ताओं व शुभचिंतकों की भावनाओं का आदर, करते, शिवाजी उत्सव का बहिष्कार किया।, हुए, 1904 में जोगेन्द्र कुमार घोष ने विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षा हेतु बाहर भेजने के लिए एक समिति की स्थापना, की।, ढाका अनुशीलन समिति की स्थापना पुलिन दास ने की थी ।, कडे विरोध के कारण 1911 ई में सरकार को बंगभंग का आदेश वापस लेना पडा। यह निर्णय जार्ज पंचम के, दिल्ली दरबार (1911) में लिया गया , जो 1912 ई में लागू हो गया।, * कलकत्ता अधिवेशन 1906 : -1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने पहली बार, 'स्वराज' शब्द का उल्लेख किया। इसी अधिवेशन में स्वदेशी बहिष्कार , राष्ट्रीय शिक्षा व स्वायत्त शासन से जुडे, चार प्रस्ताव पारित किये गए । जिला समितियों की गठन की सिफारिश की, मुस्लिम लीग (1906) :, भारतीय मुसलमानों में अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी, में 30 दिसम्बर 1906 को ढाका में ब्रिटिश समर्थक मुसलमानों ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की ।, नवाब बकारुल मुल्क मुस्ताक हुसैन ने मुस्लिम लीग के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता की।, 1908 में मुस्लिम लीग के वार्षिक अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की माँग की।, 1911 ई तक लीग साम्प्रदायिकृता की नीति पर चलती रही, 1913 ई के मुस्लिम लीग के, 1916 ई में लखनऊ समझौते के पश्चात कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने एक ही मंच पर कार्य करने का निर्णय लिया।, के उद्देश्य से ढाका के नवाब सलीमुल्लाह के नेतृत्व, NORLD' 97617., लखनऊ अधिवेशन में पहली बार जिन्ना ने हिस्सा लिया ।, कांग्रेस का सूरत अधिवेशन 1907, यह अधिवेशन नागपुर में प्रस्तावित था परन्तु फिरोजशाह मेहता के प्रयासों से यह 26 दिसम्बर 1907 को ताप्ती, नदी, तट पर सूरत में आयोजित हुआ।, सूरत अधिवेशन के अध्यक्ष रासबिहारी बोस थे।, 1907, PRNA, स्वदेशी, बहिष्कार , राष्ट्रीय शिक्षा व स्वायत्त शासन से जुडे चार प्रस्ताव पर राष्ट्रीय आन्दोलन की उग्रता के, साथ साथ कांग्रेस के उदारवादियों (दादाभाई नौरोजी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी , गोपालकृष्ण गोरखले) एवं गरमदल, (लाल बाल पाल) के मध्य मतभेद व्यापक होते जा रहे थे फलतः कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस दो अलग, अलग गुटों (नरमपंथी व गरमपंथी) में बँट गई । 1908 के इलाहाबाद अधिवेशन ने इस विभाजन को पक्का कर, दिया।, दिल्ली दरबार (1911ई) :, 5