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रस क्या होते हैं, , रस का शाब्दिक अर्थ होता है - आनन्द। काव्य को पढ़ते या, सुनते समय जो आनन्द मिलता है उसे रस कहते हैं। रस को, काव्य की आत्मा माना जाता है। प्राचीन भारतीय वर्ष में रस, का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। रस -संचार के बिना कोई भी, प्रयोग सफल नहीं किया जा सकता था। रस के कारण कविता, के पठन , श्रवण और नाटक के अभिनय से देखने वाले लोगों, को आनन्द मिलता है।, , रस के अंग :, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव, स्थायीभाव, , हनी हक हि हिई, , 4. विभाव:- जो व्यक्ति , पदार॒थ , अन्य व्यक्ति के हृदय के, भावों को जगाते हैं उन्हें विभाव कहते हैं। इनके आश्रय से, रस प्रकट होता है यह कारण निमित्त अथवा हेतु कहलाते हैं।, विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वालों को विभाव रस, कहते हैं। इन्हें कारण रूप भी कहते हैं।, , स्थायी भाव के प्रकट होने का मुख्य कारण आलम्बन विभाव, होता है। इसी की वजह से रस की स्थिति होती है। जब प्रकट, हुए स्थायी भावों को और ज्यादा प्रबुद्ध , उदीप्त और उत्तेजित, करने वाले कारणों को उद्दीपन विभाव कहते हैं।, , आलंबन विभाव के पक्ष :, ]. आश्रयालंबन, 2. विषयालंबन, , 2396 5 ०0 58 १00%, 56466 शा ७5९0
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. चरण या पाद:- एक छंद में चार चरण होते हैं। चरण, छंद का चौथा हिस्सा होता है। चरण को पाद भी कहा, जाता है। हर पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित, होती है।, , चरण के प्रकार :, ]. समचरण, , 2. विषमचरण, , . समचरण :- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते, हैं।, , 2. विषमचरण:- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण, कहा जाता है।, , 2. वर्ण और मात्रा :- छंद के चरणों को वर्णों की गणना, के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। छंद में जो अक्षर, प्रयोग होते हैं उन्हें वर्ण कहते हैं।, , मात्रा की दृष्टि से वर्ण के प्रकार :, . लघु या हस्व, , 2. गुरु या दीर्घ, , . लघुया हस्व:- जिन्हें बोलने में कम समय लगता है उसे, लघु या हस्व वर्ण कहते हैं। इसका चिन्ह ( ) होता है।, , 2. गुरु या दीर्घ:- जिन्हें बोलने में लघु वर्ण से ज्यादा, समय लगता है उन्हें गुरुया दीर्घ वर्ण कहते हैं। इसका चिन्ह, (:) होता है।, , छंद के अंग :, मात्रा, , यति, , गति, , तुक, , गण, , छंद में मात्रा का अर्थ :- वर्ण के उच्चारण में जो समय, लगता है उसे ही मात्रा कहा जाता है। अथार्त वर्ण को, , + णओी ७०० !, 2396 6 ० 58 7%, 56466 शा ७5९0