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किरण गाइड, सामान्य हिन्दी, नोट:-, राष्ट्रभाषा -, राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है, समस्त शब्द प्रयुक्त होने वाली, भाषा अर्थात् जो भाषा जन -जन में विचार विनिमय के लिए प्रयुक्त की, जाती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है।, 1. राष्ट्रभाषा कोई संवैधानिक भाषा नहीं है, बल्कि यह प्रयोगात्मक, व्यावहारिक व जन मान्यता प्राप्त शब्द है।, मूल संविधान में 14 भाषाये थी (भाषा संविधान में 14 भाषाये, थी) सिंधी भाष को 21 वाँ संविधान, 1967 के तहत, 71 वे संविधन, संशोधन के तहत चार भाषाओं को क्रमशः 16 कोंकणी 17 मणिपुरी, 18 नेपाली को सम्मिलित किया गया । 92 वाँ संविधान संशोधन 2003, के तहत बोडो (19) डोंगरी, (20) मैथिली, (21 ) संथाली को शामिल, किया गया।, बोली -एक छोटे से क्षेत्र में (या सीमित क्षेत्र में) बोली जाने वाली, भाषा बोली कहलाती है। बोली मौखिक स्तर पर होती है । बोली की, कोई लिपि नहीं होती है।, भाषा- बोली के अगले, है। इसका क्षेत्र बोली से बहुत व्यापक होता है। इसमें व्यापक साहित्य, सृजन होता है। प्रत्येक भाषा की लिपि निर्धारित होती है । भाषा, लिखित स्तर पर होती है।, एक भाषा के अन्तर्गत कई उपभाषाएं होती है और एक उपभाषा, के अन्तर्गत कई बोलियां होती हैं।, सर्वप्रथम एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन, ने अपनी पुस्तक "भारतीय भाषा सर्वेक्षण", बोलियो में सर्वेक्षण वर्गीकरण विकसित किया।, विभाषा- बोली और भाषा के बीच की स्थिति को विभाषा कहते, हैं। विभाषा का क्षेत्र बोली से अधिक किन्तु भाषा से कम विस्तृत होता, है। इसमें साहित्य रचनायें प्राप्त होने लगती है ।, हिन्दी की विभाषा, 2. राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद संपर्क की, आवश्यकता की उपज होती है ।, 3. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया, गया।, 4. जॉर्ज ग्रियर्सन ने हिन्दी को आमबोलचाल की महाभाषा कहा है, राष्ट्रभाषा होने के लिए शर्ते या कसौटी, 1. शब्द भाषा सरल होनी चाहिए अर्थात् शब्द बोलने और लिखने, के दृष्टिकोण से सरल होने चाहिए ।, 2. भारत वर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हो तथा इसी, अनुपात में इसे समझते हो, यह देश की संस्कृति की वाहक होनी, चाहिए।, चरण के रूप में भाषा को जाना जाता, हिन्दी का उपभाषा व, T (OFFICIAL LANGUAGE), वह भाषा जो देश के राजकीय कार्यों के लिए प्रयोग में लाई, जाती है, राजभाषा कहलाती है।, 2. इसका शाब्दिक अर्थ है। "राजकाज की भाषा", 3. राजाओं, नवावो के समय इसे दरबारी भाषा कहते थे।, 4. राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है । संस्कृत और सिंधी को, किसी भी राज्य में राजभाषा का दर्जा नही दिया गया।, 1., हिन्दी की भाषा, उपभाषा एवं बोलिया :-, 5. राजभाषा एक संवैधानिक शब्द है। हिन्दी को 14 सितम्बर 1949, को संवैधानिक रूप से राजभाषा घोषित किया गया ।, 6. प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को "हिन्दी दिवस" मनाया जाता है।, 7. अनुच्छेद 120 के अनुसार, संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा, हिन्दी या अंग्रेजी होगी। किन्तु लोकसभा या राज्यसभा अध्यक्ष, किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने, के लिये बाध्य नही कर सकता।, ब्रज, खड़ी, अवधी, मैथली, भोजपुरी, विभाषा सूत्र- इस सूत्र के द्वारा भारत की एकता भावना को, बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।, विभाषा सूत्र, राष्ट्रभाषा/ हिन्दी भाषी राज्यों के लिए दक्षिण की, राजभाषा/ भाषा और दक्षिण भाषी राज्यों के, सम्पर्कभाषा लिए उत्तर भारत की कोई भाषा, मातृभाषा, ৪. संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तो 15 वर्ष की अवधि, के पश्चात् 'या अंग्रेजी में' शब्दो का लोप किया जा सकेगा |।, 9. अनुच्छेछ 210 के अनुसार, राज्य विधान मण्डल में प्रयोग की, जाने वाली भाषा कौन सी होगी? यह चुनने का अधिकार राज्यों, को है अर्थात् राज्य अपने अनुसार अपनी राज्यभाषा को चुन, सकता है।, 10. अनुच्छेद 343 के अनुसार, संघ की राज्य भाषा हिन्दी और लिपि, देवनागिरी होगी। अंको का रूप भारतीय अंको का अन्तर्राष्ट्रीय, रूप होगा।, 1. जिस भाषा में आचार विचार (आपस में बात करते है ) खड़ी, बोली जो लिखते है - देवनागरी लिपि, 2. मुख से कोई ध्वनि निकलती है वह-अक्षर कहलाता है।, 3. अक्षर का लिखित रूप-वर्ण, 4. वर्ण के समूह को वर्णमाला, ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, भोजपुरी, मैथिली।, लिपि, हम जब संकेत या चिन्हों के रूप में प्रदर्शित करते है, तब उसे लिपि, कहा जाता है। प्रत्येक भाषा के लिखने के लिए उसकी अपनी एक, लिपि होती है। जैसे हिन्दी, मराठी और नेपाली की देवनागरी है ।, पंजाबी की गुरूमुखी, अंग्रेजी की लिपि रोमन है।, भारत की सभी लिपियाँ ब्राहमी लिपि से ही निकली है ब्राह्हमी, लिपि का प्रयोग वेदिक आर्यो ने शुरू किया है । देवनागरी लिपि को, लोकनागरी एवं हिन्दी लिपि भी कहा जाता है। यह लिपि बायी से, दायीं ओर लिखी जाती है।, :- बोली और भाषा ध्वनि रूप से होते है । इन ध्वनियों को, 11. अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य की भाषा प्रादेशिक भाषा या, हिन्दी ना होने पर ऐसी व्यवस्था होने पर अंग्रेजी बनी रहेगी ।, 12. अनुच्छेद 348 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यालय, और संसद और राज्य विधान मण्डल में विधेयकों व अधिनियमों, के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा, यदि किसी भाषा का, प्रावधान न होतो, अंग्रेजी में उपयुक्त कार्य लिये जा सकते हैं ।, 13. अनुच्छेद 350 के अनुसार व्यवस्था के निवारण के लिए प्रार्थना, पत्र में प्रयोग कि जाने वाली भाषा किसी भी भाषा में।, 14. अनुच्छेद 351 के अनुसार, हिन्दी के विकास के लिए निर्देश यह, कि संघ हिन्दी भाषा का विकास और प्रसार करें।, हिन्दी साहित्य, :- संविधान की आठवी अनुसूची में उल्लेखित, 15. 8 वीं अनुसूची, 22 भाषाओं का स्त्रोत संस्कृत को माना गया है।, 16. 1. असमिया, 2. बंगला, 3. गुजराती, 4. कश्मीरी, 5., मलयालम, 6. कन्नड, 7. मराठी, 8. उड़िया, 9. पंजाबी, 10., संस्कृत, 11. तमिल, 12. तेलगू, 13. उर्दू, 14 हिन्दी।, साहित्य की निश्चित (संक्षिप्त) परिभाषा देना संभव नही है ।, क्योंकि परिभाषा का निर्माण वस्तुनिष्ठता के आधार पर होता है, जबकि साहित्य की मूल प्रकृति आत्मनिष्ठ है । पुराने समय में इसकी, परिभाषा देना का एक प्रयास आचार्य कुंतक ने किया उन्होंने आचार्य, किरण गाइड, सामान्य हिन्दी, 3
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किरण गाइड, सामान्य हिन्दी, भामक द्वारा दी गई परिभाषा "शब्दार्थो सहितो काव्य" की व्याख्या, करते हुए कहा कि वाड्मय (वाणी/भाषा) तीन प्रकार का होता है ।, 1. वार्ता, वह वाडूमय है। जिसमें अर्थ का महत्व शब्द से अधिक होता है।, लौकिक जीवन की बातचीत और लोकसाहित्य में ऐसा ही दिखता है।, मुहावरो की भाषा जैसे, 1. नाकों चने चवाना, 1. उदात्त या महत्त्व पूर्ण कथानक होना चाहिए।, 2. उदात्त भाव होना चाहिए।, 3. उदात्त चरित्र होना चाहिए।, 4. उदात्त कार्य होना चाहिए (अन्तिम भाग) में गरिमा होनी चाहिए।, 5. उदात्त शैली होना चाहिए (तरीका होना), महाकाव्य के तत्व - 4 प्रकार के महाकाव्य होते हैं।, 1. भाव प्रधान - कामायनी ( जयशंकर प्रसाद), रामचरित मानस (तुलसी दास), रामचन्द्रिका (केशव दास), सबसे अच्छे महाकाव्य चरित्र प्रधान महाकाव्य माने जाते हैं।, 2. दांत खटूटे करना, इत्यादि अर्थ की प्रधानता पर आधारित है ।, 2. चरित्र प्रधान -, 3. वर्णन प्रधान, 2. शास्त्र, वाड्मय का वह हिस्सा जिसमें शब्द का महत्व अर्थ से बहुत, अधिक होता है इसमें शब्द का जरा सा परिवर्तन अर्थ को क्षति, पहुंचता है। वैज्ञानिक विषयों का वाड्मय इसी का उदाहरण है।, साहित्य/काव्य, यह इन दोनों से अलग इस अर्थ में है कि यहाँ शब्द और अर्थ, दोनों में से कुछ भी अत्यंत गौण नहीं होता। इसमें शब्द और अर्थ, दोनों महत्वपूर्ण होते है । तथा उनमें महत्व हेतु परस्पर प्रतिस्पर्धा होती, है।, 4. घटना प्रधान - पृथ्वीराजरासो, खण्डकाव्य, खण्डकाव्य -, (1) एक पक्ष को लेकर चलता, जैसे, यह व्यक्ति या एक पक्ष पर ही केन्द्रित होते है न कि समाज, पर। ऐसी स्थिति में कविता के लिए सिर्फ भावों का है क्षेत्र बचा ।, द्विवेदी युग के कवि इस चुनौती को नहीं समझ सके इसीलिए, कविताओं में विचारों और वर्णनों की प्रस्तुति करके गद्य से लोहा लेते, रहे। इस प्रक्रिया में कविता को लाभ तो नही हुआ बल्कि उनकी, कविताएँ अपने स्वरूप में गद्यात्मक तथा इतिवृतात्मक हो गई ।, छायावाद के कवियों ने बदलते हुए समय की नब्ज को पहचाना, कविता के स्वरूप में संशोधन किया और उन्होने मुख्यतः गीत और, प्रगति लिखे तो तीप्त भावनाओं के बाहर थे इसके अतिरिक्त उन्होने, पारम्परिक प्रबंध काव्यों के इतिवृत्तात्मका प्ररांगों को कम करते हुए, भावात्मक प्रसंगों को बनाये रखे हुए ऐसी कविताऐ रची जो आकार में, पुराने प्रबंधो काव्यों से आकार में छोटी थी । किन्तु मुक्तक कविताओं, से लंबी थी। कोई उपयुक्त नाम न मिलने के कारण उस समय इन्हे, लंबी कविता कह दिया गया और यही नाम आज तक प्रचलित है, नोट :-, आत्मनिष्ठ/व्यक्तिनिष्ठ - स्वयं पर निर्भर, व्यक्ति, घटना, स्थिति, आधुनिक काल में साहित्य शब्द का अर्थ बदलने लगा है । अब, साहित्य सिर्फ कला या विकास की वस्तु नहीं रहा वल्कि समाज के, यथार्थ से जुड़ने लगा। यहां साहित्य का अर्थ समाज का व्यापक हित, है। इस शब्द के अनुसार साहित्य वही रचना है जो समाज के व्यापक, हित को ध्यान में रखकर की गई है।, इन दोनों परिभाषाओं में साहित्य की बताई हुई विशेषताओं में, एक और विशेषता है सौंदर्य और रमणियता । साहित्यिक रचना सौंदर्य, से उक्त होती है। जो हमारे चित्त को प्रभावित करती है ।, इन सभी लक्षणों के आधार पर साहित्य की परिभाषा देने का, प्रयास किया जा सकता है "हम कह सकते है। कि साहित्य वाडूमय, का वह रूप है जिसमें सौंदर्य के साथ समाज के व्यापक हित की, भावना विद्यमान होती है तथा जिसमें शब्द और अर्थ दोनों के महत्व, में प्रतिस्पर्धा लगी रहती है।, 1. वस्तुनिष्ठ - वस्तु पर निर्भर और सभी के लिए समान।, जिसे मानने के लिए सभी वाध्य हो ।, 3. एक आदेश अनुसारी होता है । अर्थात् केवल एक पक्ष को लेकर, चलता है।, जैसे - व्यक्ति, घटना, काल, स्थिति, इसमें छन्द परिवर्तन जरूरी नहीं होता है।, काव्य, काव्य, 2. तथ्य -, प्रबंध काव्य, मुक्तक काव्य, 1.महाकाव्य-पूर्व पर सम्बन्ध, मैथिली शरण गुप्त, मैथिली शरण गुप्त, ऐसा काव्य जो विस्तार पूर्ण व्यास शैली में लिखा, 2.खण्ड काव्य, जयद्रथ वध, भारत भारती, 3. गद्यकाव्य -, जाता है। जिसमें गेयता नही होती।, उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, एकाकी, गद्य की विद्या है, 1. प्रबन्ध काव्य - महाकाव्य के नियम या पारम्परिक नियम, 1. महाकाव्य का नायक धीरोदत्त दात होना चाहिए।, 2. चारों पुरूषार्थों का वर्णन होना चाहिए।, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, 3. छन्दों की वैविध्य /विवधिता होनी चाहिए । एक सर्ग में एक, ही छन्द होना चाहिए। उसी सर्ग का अन्तिम छन्द अलग, होना चाहिए।, 4. रचना की शुरूआत में मंगलाचरण होना चाहिए।, 5. सज्जन की प्रशंसा और दुर्जन की निन्दा होना चाहिए।, 6. समाज या संस्कृति का सम्पूर्ण चित्रण होना चाहिए।, 7. रचना में आठ या अधिक सर्ग होना चाहिए।, 8. पढ़ने वाले को (पाठक) नैतिक रूप से उत्कर्ष होना चाहिए।, सर्ग (अध्याय), महाकाव्य के आधुनिक नियम :-, डॉ. नगेन्द्र के नियम अनुसार, पद्य काव्य मुख्यतः भावनाओं से प्रभावित होकर, 1., 4. पद्यकाव्य, लिखा जाता है। इसमें गेयता एवं संगीतात्मकता होती है।, उदा. गीत, प्रगीत, पहेली, मुकरी, ढकोसला, गद्य और पद्य काव्य की मिश्रित शैली को चंपू काव्य कहते है ।, 5. मुक्तक काव्य - मुक्तक काव्य के निम्न भेद है।, 1. गीत -, 1. यह भावना कि चरण तीव्रता में लिखे जाते हैं ।, 2. इसे गाया जा सकता है।, 3. इसमें भाव ऐक्यता होती है।, 4. इसमे भाव वैयक्तिकता होती है।, 5. गीत और पद समान होते है । किन्तु पद में भक्ति भाव, होता है।, किरण गाइड, सामान्य हिन्दी, 4.